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मोदी के सीएम रहते गुजरात ने किया था ‘रहस्यमय निवेश’, कनाडाई कंपनी में लगाए 250 करोड़, आज 8 करोड़ रह गई कीमत

गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अलेक्जेंडर ल्यूक ने एक लेख में इस निवेश पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि 250 करोड़ रुपये कोई छोटी राशि नहीं है और लोगों को यह जानने का अधिकार है कि इस पैसे को कैसे खर्च किया गया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर एंड केमिकल कॉरपोरेशन (जीएसएफसी) ने कनाडा की एक कंपनी में 250 करोड़ का निवेश क्यों किया? इससे जीएसएफसी को क्या फायदा हुआ, क्योंकि 2013 में इसने कंपनी के जो शेयर 250 करोड़ में खरीदे, 2020 में उसकी कीमत तो सिर्फ आठ करोड़ रुपये रह गई? यह भी सवाल वाजिब है कि इस सौदे से किस व्यक्ति को फायदा हुआ? यह सवाल इसलिए कि इस सौदे में शामिल लोगों के साथ एक अजीब-सा संयोग जुड़ा है। कनाडा की उस कंपनी के एक स्वतंत्र निदेशक का वही नाम है, जो जीएसएफसी के चीफ फाइनेंस ऑफिसर का है।

इसके अलावा भी तमाम सवाल हैं जिनका जवाब जीएसएफसी को देना चाहिए। जीएसएफसी की सालाना रिपोर्ट या उसके वित्तीय लेखाजोखा में न तो इस निवेश की कोई जानकारी है और न ही कनाडाई कंपनी में जीएसएफसी के शेयरों की मौजूदा कीमत की। 2014 के आम चुनाव से करीब एक साल पहले यह रहस्यमय निवेश हुआ था और पहली बार इसकी खबर आई अभी नवंबर 2020 के शुरू में। न्यूज पोर्टल counterview.net ने यह खुलासा किया।

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गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अलेक्जेंडर ल्यूक ने एक हस्ताक्षरित लेख में इस निवेश पर सवाल उठाया है। द इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में अलेक्जेंडर ने कहा कि वह 2013 से इस निवेश के बारे में जानते थे और इस मुद्दे को सामने लाने से पहले उन्होंने सात साल तक इंतजार किया। खास बात यह भी है कि जिस वक्त निवेश किया गया, उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

इस संवाददाता ने जब अलेक्जेंडर ल्यूक से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, “250 करोड़ रुपये कोई छोटी राशि नहीं है और लोगों को यह जानने का अधिकार है कि इस पैसे को कैसे खर्च किया गया।” यहां यह बताना जरूरी है कि अलेक्जेंडर ल्यूक जीएसएफसी में प्रबंध निदेशक के तौर पर काम कर चुके हैं और उन्होंने ही घाटे में चलने वाली इस कंपनी को मुनाफा कमाने की स्थिति में लाने का काम किया था

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जीएसएफसी ने जनवरी, 2013 में कनाडा में रजिस्टर्ड कार्नेलाइट रिसोर्सेज के शेयर खरीदे। कुल 54.9 लाख शेयर खरीदकर जीएसएफसी ने कनाडाई कंपनी में 20% हिस्सेदारी हासिल कर ली। लेकिन हैरानी की बात है कि इस निवेश के बाद कनाडाई कंपनी के शेयर में तेज गिरावट आई। जीएसएफसी ने जब कनाडाई कंपनी के शेयर खरीदे थे, उस समय उसकी कीमत प्रति शेयर सात ऑस्ट्रेलियाई डॉलर थी, जबकि जीएसएफसी ने उन्हें आठ डॉलर के हिसाब से खरीदा। अब नवंबर, 2020 में इसके शेयर की कीमत 0.24 डॉलर रह गई है।

जीएसएफसी ने यह दावा करते हुए निवेश को सही ठहराया था कि कनाडाई कंपनी ने भविष्य में 3,50,000 टन पोटाश की आपूर्ति करने का वादा किया है और इसी के बदले यह निवेश किया गया। मजेदार बात है कि उस समय कनाडाई कंपनी के पास पोटाश उत्पादन की कोई सुविधा नहीं थी।

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उसके बाद से कनाडाई कंपनी में जीएसएफसी की हिस्सेदारी बढ़कर 38% तक हो गई जिसकी वर्तमान सीएमडी ने दि इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पुष्टि भी की है। लेकिन सारे दस्तावेजों को खंगालने के बाद भी इस बात का कोई सबूत नहीं मिलता कि कनाडाई कंपनी ने पिछले सात साल के दौरान जीएसएफसी को पोटाश की कोई भी आपूर्ति की। लेकिन जीएसएफसी आज कार्नेलाइट की सबसे बड़ी शेयरधारक है।

यह भी हैरानी की बात है कि 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में पोटाश आसानी से उपलब्ध था। 2020 में तो इसकी उपलब्धता जरूरत से काफी अधिक है। जीएसएफसी को कभी भी बड़ी मात्रा में पोटाश की जरूरत नहीं थी और वह 250 करोड़ रुपये से काफी कम खर्च करके बाजार से अपनी जरूरत का पोटाश खरीद सकती थी, लेकिन उसने एक ऐसी कंपनी में इतनी भारी-भरकम राशि खर्च करने का फैसला किया जिसने भविष्य में कभी पोटाश की आपूर्ति करने का वादा किया था।

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यह भी गौर करने वाली बात है कि इसके बावजूद कि कार्नेलाइट ने पिछले 7 साल के दौरान पोटाश देने का अपना वादा पूरा नहीं किया और जीएसएफसी को इस दौरान पोटाश की कमी भी नहीं हुई। आखिर ये क्या माजरा है? अब तो ऐसा ही लगता है कि कनाडाई कंपनी ने पोटाश परियोजना को छोड़ ही दिया है! इसकी जगह अब कंपनी की रुचि ‘नाइट्रोजन’ परियोजना में हो गई है और संभवतः उसे जीएसएफसी की ओर से निवेश की एक और खुराक का इंतजार है।

ऐसा लगता है कि लंबी-चौड़ी बातें करने वाली इस कनाडाई कंपनी ने पिछले 12 महीनों के दौरान कोई मुनाफा नहीं कमाया है। यह भी बात सामने आ रही है कि इसमें केवल तीन कर्मचारी हैं। कार्नेलाइट रिसोर्सेज इंक ने अपनी वेबसाइट में बताया है कि इसकी स्थापना 2007 में हुई थी। कार्नेलाइट के निदेशक मंडल के अध्यक्ष विश्वेश डी. नानावटी हैं, जो जीएसएफसी में मुख्य वित्त अधिकारी भी हैं। इस आशय का खुलासा करती हुई खबर 10 नवंबर को दि इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित की है।

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counterview.net के लेख में अलेक्जेंडर ल्यूक ने लिखा है, “जब जीएसएफसी ने निवेश किया, कार्नेलाइट के सीईओ रॉबिन फिन्नी थे। कंपनी ने 2018 में उन्हें उनके पद से हटा दिया। कार्नेलाइट की वेबसाइट पर इसकी वजह नैतिकता से जुड़ा मुद्दा बताया है। कंपनी के नए सीएफओ क्रिस्टी ग्रेडिन है। सीईओ कौन है, पता नहीं। अब बोर्ड के अध्यक्ष वी. नानावटी हैं और बोर्ड में डीसी अंजारिया भी हैं।”

यह बात भी काबिले गौर है कि जीएसएफसी के सीएमडी ने कार्नेलाइट में अपने शेयरों को डंप करने की किसी भी योजना से इनकार किया है। इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में वह कहते हैं कि “यह कंपनी का दायित्व है कि वह करार की शर्तों को पूरा करे। वह कहते हैं, “कंपनी के रोजमर्रा के कामकाज से हमारा वास्ता नहीं... अब जब कंपनी को पोटाश का बाजार उपयुक्त लगेगा तो वह इस परियोजना को पूरा करेगी।”

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पूर्व आईएएस अधिकारी ने इस प्रकरण में 2 नवंबर को गुजरात के मुख्य सचिव अनिल मुकीम और जीएसएफसी के सीएमडी अरविंद अग्रवाल को पत्र लिखा, जिसका 18 नवंबर तक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला और न ही यह संदेश मिला कि पत्र उन्हें प्राप्त हो गया। हालांकि, जब दि इंडियन एक्सप्रेस ने सीएमडी से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वह अभी पत्र नहीं देख सके हैं क्योंकि एक तो यह काफी लंबा है और दूसरे इसमें कई लिंक दिए गए हैं। सीएमडी ने कहा, “यह सात साल पुराना मामला है और गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई तुक नहीं। मुझे नहीं पता कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं...।”

नेशनल हेरल्ड ने जीएसएफसी से मेल पर कई सवालों पर उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन खबर लिखे जाने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया था।

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