गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी हादसे को लेकर गुजरात सरकार पर सवाल उठाए हैं। प्रधान न्यायाधीश अरविंद कुमार ने सुनवाई के दौरान राज्य के शीर्ष नौकरशाह और मुख्य सचिव से पूछा कि सार्वजनिक पुल के मरम्मत कार्य का टेंडर क्यों नहीं निकाला गया? बोलियां क्यों नहीं आमंत्रित की गईं?" अदालत ने आगे कहा, इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए एक समझौता मात्र डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया?" क्या बिना किसी टेंडर के अजंता कंपनी को राज्य की उदारता दी गई थी?"
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बता दें कि गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना पुल टूट गया था। इस हादसे में 134 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद गुजरात हाईकोर्ट ने मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए गुजरात सरकार, मोरबी नगर पालिका समेत तमाम विभागों से जवाब मांगा था।
इससे पहले उच्च न्यायालय ने सात नवंबर को कहा था कि उसने पुल गिरने की घटना पर एक समाचार रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया है और इसे एक जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा था, ‘‘प्रतिवादी एक और दो (मुख्य सचिव और गृह सचिव) अगले सोमवार तक एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेंगे। राज्य मानवाधिकार आयोग इस संबंध में सुनवाई की अगली तारीख तक रिपोर्ट दाखिल करेगा।''
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हाईकोर्ट ने इस मामले में मंगलवार को सुनवाई की। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि मोरबी नगर पालिका होशियार बनने की कोशिश कर रही है। हाईकोर्ट ने पूछा कि 2016 में टेंडर खत्म होने के बाद भी ब्रिज का टेंडर क्यों जारी नहीं किया गया?
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हाईकोर्ट ने पूछा कि इस हादसे से पहले क्या कदम उठाए गए थे। इतना नहीं बेंच ने पूछा कि ब्रिज की मरम्मत को लेकर प्राइवेट ठेकेदार और नगर पालिका में क्या समझौता हुआ था। हाईकोर्ट ने कहा कि कॉन्ट्रैक्टर का कार्यकाल 2016 में खत्म हो गया था। इसके बावजूद नगर पालिका ने कोई टेंडर नहीं उठाया। हाईकोर्ट ने कहा कि नगर पालिका होशियार बनने की कोशिश कर रहा है।
हाईकोर्ट ने मोरबी के जिला जज को यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी किया कि नगर पालिका को नोटिस भेजा जाए कि कल फिर से सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि बिना टेंडर कंपनी को राज्य की उदारता दी गई।
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