कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सोमवार को कहा कि निर्वाचन आयोग को शर्मिंदा करने की जरूरत है क्योंकि उसने आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करने के शीर्ष अदालत के पहले के निर्देश का निर्लज्जता के साथ उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और आयोग को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।
शीर्ष कोर्ट के आज के आदेश पर जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करने के उच्चतम न्यायालय के निर्देश का निर्लज्जता के साथ अनुपालन नहीं करने के लिए निर्वाचन आयोग को शर्मिंदा किया जाना चाहिए। आज एक बार फिर उच्चतम न्यायालय ने तीसरी बार यह बात दोहराई कि मतदाताओं को पंजीकृत करने के लिए आधार को वैध पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।’’
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उन्होंने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग द्वारा जानबूझकर वैध मतदाताओं के पंजीकरण को असुविधाजनक बनाने के लिए बार-बार बाधाएं पैदा की जा रही हैं। रमेश ने कहा, ‘‘आयोग ने राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त बीएलए को मान्यता देने से इनकार कर दिया, आधार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और यहां तक कि अधिकारियों को केवल उसके द्वारा निर्धारित दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिए नोटिस भेजा।’’
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जयराम रमेश ने दावा किया, ‘‘ध्यान रखें कि यह निर्वाचन आयोग द्वारा खुद की पैदा की गई गड़बड़ी है। चुनाव के इतने करीब ‘जी2’ के अलावा किसी ने भी एसआईआर की मांग नहीं की। ‘जी2’ के अलावा किसी ने भी इसे इतनी अयोग्यता से संचालित करने के लिए नहीं कहा कि उच्चतम न्यायालय को बुनियादी छानबीन और संतुलन सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘समझने में कोई गलती न करें, हम सत्तारूढ़ शासन के खिलाफ और निर्वाचन आयोग के होने के बावजूद चुनाव लड़ रहे हैं। सीईसी और जिस संस्थान के वह प्रमुख हैं, उसे इतिहास माफ नहीं करेगा।’’
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उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह चुनावी राज्य बिहार में एसआईआर में मतदाता की पहचान सुनिश्चित करने के लिए ‘आधार’ को 12वें निर्धारित दस्तावेज के रूप में शामिल करे। फिलहाल, बिहार में एसआईआर के लिए 11 निर्धारित दस्तावेज हैं जिन्हें मतदाताओं को अपने प्रपत्रों के साथ जमा करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट में आज एसआईआर पर हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘आधार’ नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा और आयोग मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए मतदाता द्वारा प्रस्तुत आधार कार्ड संख्या की वास्तविकता का पता लगा सकता है।
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