जम्मू-कश्मीर में दूरसंचार सेवाएं और इंटरनेट बंद करने, रेडियो और सैटेलाइट टीवी सेवाओं पर पाबंदी, पर्यटकों को राज्य से बाहर जाने और राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लेने का फैसला किसने दिया, इस बारे में गृह मंत्रालय के पास कोई जानकारी नहीं है। गृह मंत्रालय का कहना है कि उसके पास हिरासत में लिए गए न तो नेताओं के नाम हैं और उन्हें कहां रखा गया है, इसकी कोई जानकारी है। मंत्रालय ने ये बातें एक आरटीआई में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए इस बारे में जम्मू-कश्मीर प्रशासन से संपर्क करने को कहा है।
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एक आरटीआई कार्यकर्ता ने मंत्रालय को अर्जी देकर इस बारे में जारी आदेशों-निर्देशों या सलाह की प्रति मांगी थी। लेकिन गृह मंत्रालय के जम्मू-कश्मीर डिवीज़न के दो केंद्रीय जनसूचना अधिकारियों ने साफ कह दिया है कि उनके पास इन सबके बारे में कोई सूचना या जानकारी उपलब्ध नहीं है।
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द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने कहा है, “ये सारी सूचनाएं या जानकारियां जम्मू-कश्मीर सरकार के पास हो सकती हैं।” लेकिन आरटीआई अर्जी को जम्मू-कश्मीर सरकार के पास प्रेषित नहीं किया जा सकता क्योंकि वहां आरटीआई एक्ट 2005 लागू ही नहीं है। जवाब के मुताबिक इस बारे में अर्जी जम्मू-कश्मीर के आरटीआई कानून के मुताबिक दाखिल की जा सकती है, लेकिन ऐसा सिर्फ जम्मू-कश्मीर के निवासी ही कर सकते हैं।
अखबार के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के एक अधिकारी ने बताया कि, आरटीआई एक्ट 2005 समेत सभी केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होंगे जब 31 अक्टूबर 2019 को राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने का फैसल प्रभावी होगा।
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आरटीआई अर्जी दाखिल करने वाले वेंकटेश नायक ने द हिंदू अखबार को बताया कि जम्मू-कश्मीर में बीते 19 दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू है, ऐसे में यह कैसे संभव है कि गृह मंत्रालय के पास इन सब पाबंदियों के बारे में कोई सूचना नहीं है।
वेंकटेश ने द हिंदू को बताया, “राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्यपाल और राज्य विधायिका के सारे अधिकार राष्ट्रपति के पास आ गए हैं। राज्य शासन का काम केंद्र सरकार के निर्देशन में काम करना रह गया है, जो कि इस वक्त राज्यपाल के जरिए हो रहा है, और सिर्फ अफसर ही काम कर रहे हैं।”
वेंकटेश कहा है कि “जम्मू-कश्मीर के बारे में दिए गए किसी भी आदेश की प्रति गृह मंत्रालय के जम्मू-कश्मीर डिवीजन को भी भेजी जानी चाहिए, वह भी तब जब दूरसंतार सेवाओं के बंद करने या पर्यटकों को राज्य छोड़ने के आदेश अगर गृह मंत्रालय ने नहीं दिए हैं। ऐसे में केंद्रीय सूचना अधिकारियों का जवाब सच से परे लगता है।“
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नायक ने यह आरटीआई अर्जी 30 अगस्त को दायर की थी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के संबंध में जारी आदेशों की प्रतियों के अलावा उन नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नाम भी मांगे थे जिन्हें राज्य में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के सिलसिले में हिरासत में लिया गया है। साथ ही उन्हें जहां रखा गया है उस जगह के नाम भी पूछे गए थे।
इस अर्जी के जवाब में मंत्रालय के पहले सीपीआईओ टी श्रीकांत ने यह कहते हुए अर्जी को दूसरे सीपीआईओ के पास भेज दिया था कि उनके पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। दूसरे सीपीआईओ ने भी यह कहकर अर्जी का जवाब दे दिया कि उनके पास भी ऐसी जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं। इतना ही नहीं इस सीपीआईओ ने याचिका कर्ता को इस बारे में जम्मू-कश्मीर सरकार से संपर्क करने को कहा है।
गौरतलब है कि इससे पहले आरटीआई एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर की अर्जी पर भी गृह मंत्रालय ने बिना कोई खास कारण बताए कोई भी जवाब देने से इनकार कर दिया था।
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