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भारत एक बेहद जलवायु संवेदनशील देश, ज्यादातर भारतीयों को है ग्लोबल वॉर्मिग की चिंता, रिपोर्ट में दावा

ग्लोबल वॉर्मिग फोर इंडियाज, 2022 में चार तरह के भारतीयों की पहचान की गई है जिनकी ग्लोबल वॉर्मिग को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं - वे सतर्क, चिंतित, सचेत और निश्चिंत की श्रेणी में हैं।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

ग्लोबल वॉर्मिग को लेकर ज्यादातर भारतीय चिंतित या सचेत हैं। जलवायु परिवर्तन संचार पर येल प्रोग्राम और सीवोटर इंटरनेशनल की गुरुवार को जारी रिपोर्ट में यह बात कही गई है। ग्लोबल वॉर्मिग फोर इंडियाज, 2022 में चार तरह के भारतीयों की पहचान की गई है जिनकी ग्लोबल वॉर्मिग को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं - वे सतर्क, चिंतित, सचेत और निश्चिंत की श्रेणी में हैं।

अधिकांश भारतीय सतर्क (54 प्रतिशत) हैं। यह समूह ग्लोबल वामिर्ंग की वास्तविकता और खतरों में सबसे ज्यादा यकीन करता है। वे इससे निपटने के लिए राजनीतिक और राष्ट्रीय स्तर की पहलों का समर्थन करते हैं तथा निजी स्तर पर काम करने के लिए प्रेरित होते हैं।

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चिंतित श्रेणी में 29 प्रतिशत लोग हैं। उन्हें भी पता है कि ग्लोबल वॉर्मिग हो रहा है और यह एक गंभीर खतरा है, लेकिन वे इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। उन्हें लगता है कि इसका असर फिलहाल नहीं होने वाला है।

ग्लोबल वॉर्मिग के प्रति 11 प्रतिशत भारतीय सचेत हैं जबकि अन्य सात प्रतिशत निश्चिंत हैं। सचेत श्रेणी के लोग सोचते हैं कि ग्लोबल वामिर्ंग हो रहा है, लेकिन उन्हें इसके कारणों के बारे में निश्चित जानकारी नहीं है। उनके इसे एक ऐसे गंभीर खतरे के रूप में देखने की संभावना कम है जो उन्हें निजी तौर पर प्रभावित कर सकता है।

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वे जलवायु और ऊर्जा नीतियों का समर्थन करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय कार्रवाई के कम समर्थक हैं और सतर्क या चिंतित लोगों की तुलना में व्यक्तिगत कार्रवाई करने के लिए कम प्रेरित हैं।

निश्चिंत श्रेणी के लोग ग्लोबल वामिर्ंग के बारे में बहुत कम जानते हैं, इस मुद्दे से कभी-कभार या बिल्कुल नहीं जुड़ते हैं और अक्सर इससे जुड़े सवालों के जवाब में कहते हैं कि उन्हें जानकारी नहीं है या कोई जवाब नहीं देते हैं।

जलवायु परिवर्तन संचार पर येल कार्यक्रम में परियोजना सह-प्रमुख एंथनी लीसेरोविट्ज ने कहा, इस विश्लेषण से सरकारों, पत्रकारों, कंपनियों और अधिवक्ताओं को जलवायु परिवर्तन और इसके समाधान के मुद्दे पर लोगों को बेहतर ढंग से समझने और संलग्न करने में मदद मिलेगी।

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में प्रोजेक्ट के सह-प्रमुख जगदीश ठाकर ने कहा, सभी चार श्रेणी के लोगों में अधिकतर ने वर्षा सहित स्थानीय मौसम पैटर्न में बदलाव देखा है।

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रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने बताया, भारत एक बेहद जलवायु संवेदनशील देश है। इस अध्ययन से यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन को अब दूर भविष्य की समस्या के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह वर्तमान का अनुभव है।

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले चारों श्रेणी के लोगों ने जिस प्रकार की नीतियों का समर्थन किया है उससे पता चलता है कि वे न सिर्फ जलवायु परिवर्तन के मानवीय कारणों से परिचित हैं उन्हें यह भी पता है कि इससे निपटने के लिए किस तरह की नीतियों की जरूरत है, जैसे - पेरिस समझौता, जीवाश्म ईंधन का कम उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए भारत के संक्रमण के लिए समर्थन, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में नौकरियों में लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम आदि।

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