भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के दौरान कश्मीर के अपने विश्वविद्यालयों को छोड़कर दिल्ली के विभिन्न राज्य भवनों में शरण लेने वाले दक्षिण भारत के कई विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लौटने को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं।
भारत द्वारा सात मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किये जाने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने से विद्यार्थियों को घाटी से निकाला गया था।
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इस अभियान में 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए हमले का बदला लेने के लिए पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर हमला किया गया था। पहलगाम हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश पर्यटक थे।
इस हमले के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारी गोलाबारी की थी।
एनआईटी श्रीनगर में पढ़ने वाले आंध्र प्रदेश के एक छात्र ने बताया, “जब भी बिजली कटती थी, तो संदेश आते थे और हमें भूतल की ओर भागना पड़ता था। बिजली गुल होने के दौरान हमें समझ नहीं आता था कि क्या करें।”
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छात्र ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी मदद नहीं की। उन्होंने बताया, “हमने अपनी यात्रा की व्यवस्था खुद की और अब दिल्ली में हमारे राज्य भवन में हमारी देखभाल की जा रही है।”
राष्ट्रीय राजधानी में शरण लेने के बाद, छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए घाटी लौटने को लेकर अनिश्चित हैं।
तमिलनाडु की रहने वाली एक छात्रा आनंदी ने जम्मू-कश्मीर से निकाले गए दक्षिणी राज्यों के कई छात्रों के सामने आने वाली दुविधा को दर्शाते हुए कहा, “हमें कश्मीर में पढ़ाई करने के लिए अपने माता-पिता से लड़ना पड़ा, अब हमें उन्हें लौटने और अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए फिर से मनाना होगा।”
‘शेर-ए-कश्मीर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी’ से एमएससी कर रही आनंदी ने उस डर को याद किया जो धीरे-धीरे उनके अंदर घर कर गया।
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आनंदी ने कहा, “पहलगाम हमले के बाद हमें परिसर में ही रहने को कहा गया। फिर हमें सायरन, मिसाइल की आवाजें, ड्रोन की आवाजें सुनाई देने लगीं। हमें यकीन नहीं था कि यह क्या है।”
उन्होंने बताया, “हमने अंधेरे में मॉक ड्रिल की। विश्वविद्यालय ने कुछ नहीं किया। हमें तमिलनाडु सरकार के जरिए उन पर दबाव बनाना पड़ा।”
आनंदी ने बताया, “हमें अपने माता-पिता को कश्मीर में दाखिला लेने के लिए मनाना पड़ा और अब फिर से हमें अपने माता-पिता को वहां वापस भेजने के लिए मनाना पड़ेगा।”
तमिलनाडु की एक अन्य छात्रा माहेश्वरी ने बताया कि उनका परिसर काफी हद तक सुरक्षित है, लेकिन ड्रोन और मिसाइलों की आवाजों ने स्थिति को भयावह बना दिया।
बेंगलुरू के रहने वाले गणेश ने बताया, “हमने शनिवार दोपहर को परिसर छोड़ दिया। जम्मू पार करने तक हम सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे। दिल्ली पहुंचने के बाद, हम आखिरकार सुरक्षित महसूस करने लगे।”
उन्होंने बताया, “हमारे माता-पिता ने हमसे कहा था कि जरा भी जोखिम होने पर वहां से निकलने के लिए कहा था, खासकर तब जब हवाई और सड़क मार्ग अवरुद्ध थे। हम कुछ महीनों में हालात ठीक होने के बाद ही वापस लौट सकते हैं।”
भारत और पाकिस्तान ने शनिवार को सीमा पार से चार दिनों तक ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद तत्काल प्रभाव से जमीन, हवा और समुद्र पर सभी तरह की गोलीबारी और सैन्य कार्रवाइयों को रोकने के लिए सहमति जताई।
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हालांकि, कुछ घंटों बाद नई दिल्ली ने इस्लामाबाद पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। अधिकारियों ने संवेदनशील क्षेत्रों से हजारों नागरिकों को स्थानांतरित कर दिया। हालांकि दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है लेकिन सुरक्षा बलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
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