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इंटरव्यू: 'चिराग अभी बुझा नहीं', तल्खियां, तन्हाई और राजनीति से लेकर भविष्य की रणनीति पर क्या बोले आजम खान? पढ़िए

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में जेल जीवन, सुरक्षा, अखिलेश यादव से रिश्ते, मुस्लिम प्रतिनिधित्व और अपने राजनीतिक भविष्य पर खुलकर बात की। कहा- “चिराग अभी बुझा नहीं, हम इंसाफ के पक्ष में हैं, बदले के नहीं।”

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने आईएएनएस के साथ एक विशेष इंटरव्यू में अपनी सुरक्षा, जेल जीवन, मुस्लिम प्रतिनिधित्व, पार्टी संबंधों और राजनीतिक भविष्य पर खुलकर बात की। जेल से रिहाई के बाद पहली बार विशेष बातचीत में सपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं और 'चिराग अभी बुझा नहीं है'। इंटरव्यू के प्रमुख अंश कुछ इस प्रकार है। 

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सवाल: बिहार चुनाव में आपका आकलन क्या है? एनडीए या महागठबंधन कौन जीतेगा? आपको स्टार प्रचारक बनाया गया है।

जवाब: यह एक तरह से राजनीतिक दलों की रस्म सी होती है, सीनियर लोगों को सम्मान दिया जाता है। जेल के दिनों में भी स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मेरा नाम था, लेकिन जाहिर है, जेल से बाहर नहीं जा सकते थे। अब तबीयत और सुरक्षा कारणों से भी नहीं जा पा रहा हूं। मेरे पास अब किसी तरह की सुरक्षा नहीं है। जो वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली थी, वह कुछ कमी और कारणों से मैंने खुद ही वापस कर दी। बिहार की हालत अच्छी नहीं है। मेरा दिल चाहता है कि न सिर्फ मैं वहां जाऊं, बल्कि अगर किसी तरह मेरा योगदान हो सके, तो उसमें हिस्सा लूं। बिहार के हालात जितने जटिल हैं, उतने ही जागरूक लोग वहां हैं। जब-जब मुल्क पर खतरा हुआ है, बिहार ने उसकी अगुवाई की है। वहां के लोग चैंपियन हैं। जो भी फैसला होगा, अच्छा होगा।

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सवाल: सुरक्षा वापस लौटाने की वजह?

जवाब: देखिए, मुझे जब जेड सिक्योरिटी मिली थी, तो वो किसी राजनीतिक दल ने नहीं दी थी, बल्कि राज्यपाल ने महसूस किया कि मुझे सिक्योरिटी की जरूरत है। उस वक्त के एसपी ने लिखा था कि मेरे लिए जेड सिक्योरिटी भी कम है, इन्हें जेड प्लस दी जाए, जो नहीं दी गई। अब जेड देना तो दूर की बात है, कोई सुरक्षा नहीं है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए वाई श्रेणी की सुरक्षा काफी नहीं है। वजह यह है कि बिना वजह लोग मेरा विरोध करते हैं। कोई भी बहाना बनाकर मेरे ऊपर ओपन फायर करा सकते हैं। कम से कम इतनी सुरक्षा तो हो जहां मैं खुद को सुरक्षित महसूस कर सकूं।

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सवाल: बिहार में सवाल उठ रहे हैं कि 14 फीसदी यादव आबादी वाले को सीएम घोषित कर दिया गया और 2.5 फीसदी मल्लाह आबादी वाले को डिप्टी सीएम, मगर 19 फीसदी मुसलमान आबादी से कोई नहीं। उनसे पूछा तक नहीं गया। क्या कहेंगे?

जवाब: मैं जानता हूं कि यह सवाल कहां से आया है और जिन्होंने सवाल उठाया, मैं उन्हें भी जानता हूं। मैं उन पर कोई कटाक्ष नहीं कर रहा हूं, उनसे मेरे बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं। उनसे मेरा पुराना रिश्ता रहा है। उनका रिश्ता और उनकी सियासत से मेरा नाता हमेशा गहरा रहा है। लेकिन इतने ताकतवर होने के बावजूद भी वे अपने राज्य में कोई बड़ा इंकलाब नहीं ला सके। इस पर बहस करने का अभी समय नहीं है। सवाल यह नहीं है कि हमारी जनसंख्या ज्यादा है तो वजीर-ए-आजम की दावेदारी करना किसी हद तक ठीक हो सकता है। आज उससे बड़ी चीज है, हमें कोई पद मिले न मिले, सुकून-ए-दिल मिले, दहशत की जिंदगी न मिले। हमारे सामने डिप्टी सीएम बनना कोई बड़ी बात नहीं है।

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सवाल: मुसलमान वोट के लिए इस्तेमाल होते हैं?

जवाब: बिलकुल नहीं। जो लोग इस्तेमाल होते हैं, उनके पीछे कोई वजह होती होगी। लेकिन यह कहना कि मुसलमान सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल होते हैं, बहुत तौहीन की बात है। हम अपने हक के लिए काम करते हैं। अगर उत्तर प्रदेश में हमसे कहा गया कि हम “इस्तेमाल हुए”, तो यह गलत है, हमने तो अपने वोट का सही इस्तेमाल किया और जिन सरकारों को हमने चुना, उनसे बुनियादी काम करवाए।

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सवाल: क्या आप चाहेंगे कि अखिलेश यादव यूपी में किसी मुस्लिम को डिप्टी सीएम घोषित करें?

जवाब: संविधान में ऐसा कोई पद नहीं है, यह तो सिर्फ दिल बहलाने के लिए बना दिया जाता है। डिप्टी सीएम असल में कोई पद होता ही नहीं है।

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सवाल : जब आप जेल में थे, तो क्या आपको उम्मीद थी कि अखिलेश यादव जेल में मिलने आएंगे?

जवाब: आए तो थे, जेल में भी कई बार आए हैं। पिछली बार जब मैं तीन साल जेल में रहा था, तब भी आए थे, और अभी हाल ही में भी आए। किसी के आने या न आने से रिश्ते बनते या बिगड़ते नहीं हैं। जब किसी से हमारा वैचारिक और ऐतिहासिक लगाव हो, तो वह रिश्ता बना रहता है। उनके परिवार के साथ मेरा नाता लगभग 45 साल पुराना है। रिश्ते नहीं टूट जाते। जिस घर से 45 साल से रिश्ते हों, उन्हें कैसे छोड़ सकता हूं? शिकवा, शिकायत, गलतफहमी हो सकती है, वह कल भी थी, आज भी है, कल भी होगी। हम तब नहीं गए जब निकाले गए, फिल्म अदाकारा की वजह से। हमने उन्हें चुनाव लड़वाया, फिर वापसी भी हुई थी। फिर सोचा था कि संन्यास ले लेंगे, लेकिन उसे नहीं छोड़ेंगे जिससे अच्छे संबंध थे।

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सवाल: बीच में नाराजगी की जो बातें सामने आई थीं?

जवाब: यह सब मीडिया के लोगों ने बनाई थीं, और हमें इससे नुकसान भी हुआ। मीडिया ट्रायल मेरे खिलाफ किया गया। हमें उन बातों की सजा मिली, जिनका गुनाह हमने नहीं किया था।

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सवाल: अगर आज मुलायम सिंह होते और आपको जेल में रखा गया होता, तो इस पूरे प्रदेश में आंदोलन हो उठता?

जवाब: देखिए, जब मैं पिछली बार जेल में था, तब नेताजी जिंदा थे। लेकिन अब जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य है, उसमें कानून का सहारा लेकर पुलिस द्वारा झूठे मुकदमे कायम किए जाते हैं। चार्जशीट का सहारा लेकर कानून की आड़ में होता है। ऐसे हालात में किसी आंदोलन से हमें फायदा नहीं, बल्कि नुकसान ही होता है। कई मौकों पर मुझे पहले से एहसास हुआ कि कुछ होने वाला है और मैंने उसे रोक भी दिया, क्योंकि हमें सड़कों पर नहीं, अदालतों में ट्रायल फेस करना था। इसलिए बहुत सी बातें खुद नहीं होने दीं।

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सवाल: मुलायम सिंह अगर सक्रिय होते, तो क्या आपको इतना कष्ट झेलना पड़ता?

जवाब: जुल्म तो मेरा मुकद्दर था। लेकिन क्या आपके पास इस बात की गारंटी है कि अब मेरे साथ कुछ नहीं होगा? जमानत के मौके पर कपिल सिब्बल ने बहुत प्रयास किए। लेकिन क्या गारंटी है कि अगला मुकदमा कायम नहीं होगा? जहां इतना जुल्म बर्दाश्त किया है, जिंदा रहे तो और भी जुल्म बर्दाश्त कर लेंगे।

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सवाल: यूपी पुलिस में एक अधिकारी अनुज चौधरी हैं। क्या यह सच है कि जब आपकी सरकार थी, तो आपने उनकी बहुत मदद की थी?

जवाब: उनके साथ मैंने कुछ नहीं किया। अखिलेश यादव ने उन्हें प्रमोट किया था, क्योंकि वे पहलवानी में मेडल जीतकर आए थे। जरूरी नहीं था कि ऐसा किया ही जाए, लेकिन उन्होंने कर दिया, वह उनका नसीब था।

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सवाल: आपने बताया था कि आपको लाखों रुपए मुकदमे की फीस और पेनाल्टी के तौर पर देने हैं। क्या पार्टी मदद कर रही है?

जवाब: क्या मेरी गैरत इस बात की इजाजत देगी? मुझसे तो यह नहीं हो सका। लोग ईमान का सौदा कर लेते होंगे, हमसे नहीं होगा।

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सवाल: अभी आपकी आमदनी का स्रोत क्या रह गया है? घर का खर्चा-पानी कैसे चल रहा है?

जवाब: मुझे यूपी में सबसे ज्यादा पेंशन मिलती है। अब तक देश में ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं बना है कि कोई व्यक्ति एक ही संसदीय क्षेत्र से लगातार 13-14 बार चुना गया हो। लोग संसदीय क्षेत्र बदलकर 8 बार पहुंचे हैं, लेकिन एक ही संसदीय क्षेत्र से लगातार चुना जाना रिकॉर्ड है। मेरा वोट हर बार बढ़ा है। मैं हाइवे पर खड़ा हो जाऊं तो रास्ता रुक जाएगा। ये लोगों की मोहब्बत है। कुछ तो मैंने किया होगा जो मोहब्बत होती थी। मैंने एक ही क्षेत्र से आठ बार जीत दर्ज की है।

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सवाल: अभी हाल ही में एक घटना घटी है। पूर्व विधायक राघवेंद्र सिंह ने हिंदू लड़कों को मुस्लिम लड़कियां उठा लाने का चैलेंज दिया है। उन्होंने कहा है कि जो ऐसा करेगा, उसे नौकरी देंगे। इस पर मायावती ने खेद जताया और मुसलमानों के हक में बोला है। क्या कहेंगे?

जवाब: उन्होंने जो कहा, उसके लिए उनका शुक्रिया, लेकिन ऐसी बातों पर खामोश रहना ही ज्यादा बेहतर होता है। फारसी में एक कहावत है कि जाहिल का जवाब देने से अच्छा है कि खामोश रहा जाए, क्योंकि अगर हम किसी बेहूदा बात पर टिप्पणी करते हैं, तो हम उसका प्रोपेगैंडा और बढ़ा देते हैं। जो घटिया सोच वाले लोग होते हैं, वे यही चाहते हैं कि उनकी नीची बातों पर रिएक्शन मिले। वह मुद्दा बहस का बन जाता है।

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सवाल: यूपी में 2027 में आपकी सरकार आई तो क्या आंजनेय सिंह जैसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी?

जवाब: अभी तो हम अभी की बात देख रहे हैं। लेकिन हम किसी से बदला नहीं लेते, क्योंकि अगर हम भी वही करें जो उसने किया, तो फिर हममें और उनमें फर्क क्या रह जाएगा? इसलिए हम बदला नहीं, इंसाफ पर यकीन रखते हैं, और वही करेंगे। लेकिन इंसाफ जरूर करेंगे।

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सवाल: आपकी सरकार आई तो क्या संभल और बरेली में हुई नाइंसाफी का बदला लिया जाएगा?

जवाब: जैसे मैंने पिछले सवाल के जवाब में कहा, हम बदले की भावना से काम नहीं करते हैं। हां, हम इंसाफ करेंगे।

सवाल: आपके रामपुर के सांसद मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी पर कई महिलाओं से निकाह करके उन्हें धोखा देने के संगीन आरोप लग रहे हैं। क्या कहेंगे?

जवाब: एक से गुजारा नहीं हो पाता, और एक की शिकायतें भी बर्दाश्त नहीं हो पातीं, लेकिन नसीब अपना-अपना होता है। वह उनकी जिंदगी है, उनका तरीका, उसमें आपको या मुझे क्या एतराज हो सकता है?

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सवाल: क्या आपको लगता है कि ऐसे व्यक्ति को रामपुर से टिकट देना चाहिए था?

जवाब: इसमें व्यक्ति की क्या गलती थी? चार की इजाजत है। एक खातून ने मुकदमा किया है, वह न करती तो ज्यादा बेहतर होता। यह निजी मामला है, इस पर हम क्या टिप्पणी करें? मुकद्दर से टिकट मिला और सांसद बने।

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सवाल: क्या आपने राजनीति से संन्यास ले लिया है या फिर अभी एक पारी और खेलेंगे?

जवाब: अगर मैंने संन्यास ले लिया होता, तो क्या आप लोग आते? आप तो सिर्फ यह देखने आते हैं कि बुझे हुए चिराग के पास जाने की क्या जरूरत है। चिराग में लौ कितनी है? हां, चिरागों का जलना अब मेरे हाथ में नहीं है। रोशन होने के पक्ष में हूं।

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सवाल: क्या आपके जीवन पर कोई किताब लिखी जाएगी?

जवाब: हम खुद एक किताब हैं, और एक किताब नहीं, जाने कितनी किताबें हैं जो हमारे जीवन के तौर पर किताब का हिस्सा बन सकती है।

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सवाल: योगी आदित्यनाथ के दौर में आप वर्षों जेल में रहे हैं। क्या आपकी सरकार आई तो उन पर भी एक्शन होगा?

जवाब: यह तो बदले की बात हो गई। हमारे साथ तो बिना बदले के हुआ है। या सरकार नहीं जान सकती कि हमारी गलती क्या है, सिवाय इसके कि सपा से जुड़े रहे थे, या फिर मैं एक मुसलमान था, और आज भी हमारे दमन पर बेईमानी का कोई दाग नहीं है। 114 मुकदमे होने के बावजूद कोई मुकदमा करप्शन या कमीशन का नहीं है। इससे बड़ी मेरी राजनीतिक जिंदगी का कोई दाग नहीं हो सकता। मैं कैसे वक्त के साथ गुजर रहा हूं। अगर हम भी वही करें जो हमारे साथ हुआ है, तो हममें और उनमें क्या फर्क रह जाएगा? मेरा मजहब मुझे बदला लेने की इजाजत नहीं देता है।

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सवाल: क्या आपको लगता है कि आपको जान का खतरा है?

जवाब: किसी को हमने नुकसान नहीं पहुंचाया है। मैंने कभी जाति-धर्म के आधार पर लोगों का काम नहीं किया। अगर किया होता तो रामपुर में मुझे इतनी मोहब्बत नहीं मिलती। मैंने दो कुंभ सफलतापूर्वक कराए, सभी जानते हैं। मेरी जिंदगी ऐसी रही है। मेरा दुश्मन मेरी जान ले सकता है, इससे ज्यादा क्या लेगा? पैसा तो है ही नहीं। वैसे भी जिस दिन मौत लिखी होगी, वह होनी है। मेरे ऊपर पहले गोलियां चलाई गईं, लेकिन 'जाखों रखां सैयां मार सके न कोई'।

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सवाल: जेल से पहले वाले आज़म में और जेल के बाद वाले में एक खामोशी सी है, इसकी क्या वजह है?

जवाब: बस थोड़ी सेहत की वजह से आवाज में कमजोरी है, बाकी जब मैच शुरू होगा तो बैटिंग होगी।

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सवाल: आपको सुरक्षा ले लेनी चाहिए।

जवाब: अगर आप दिलवा सकते हैं, तो दिलवा दीजिए। जब मैं राज्यसभा का सदस्य था, तो मुझे कोठी नहीं मिली थी। सुप्रीम कोर्ट गया, तो टाइप-7 कोठी मिली तालकटोरा रोड पर। जब मैं उत्तर प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष हुआ, तो सरकार बीजेपी की थी। उस वक्त भी आवास नहीं मिला। हमारी सरकार आई, तो लालजी टंडन जिस कोठी में रहते थे, उसे ही लीडर ऑफ ऑपोजिशन कर दिया। मैं भारतीय राजनीति में पहला शख्स हूं, जिसने करीब डेढ़ करोड़ रुपए अस्पताल का खर्चा खुद से उठाया, जब मुझे कोरोना हुआ। रिम्बर्समेंट के तौर पर एक रुपया भी नहीं दिया गया।

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