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केजरीवाल सरकार फिर पहुंची सुप्रीम कोर्ट, कहा- आदेश का पालन नहीं कर रहे वरिष्ठ नौकरशाह, मामले की तुरंत करें सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि लोक सेवक न तो आदेशों को सुन रहे हैं और न ही उनका पालन कर रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने यह कहते हुए एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है कि वरिष्ठ नौकरशाह उसके आदेशों को नहीं सुन रहे हैं। ऐसे में इस मामले की अदालत तुरंत सुनवाई करे। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि वरिष्ठ नौकरशाह निर्वाचित सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं। केजरीवाल सरकार ने राजधानी में वरिष्ठ अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग से संबंधित मामलों में उपराज्यपाल को सुप्रीम अधिकार देने वाले विवादास्पद कानून के खिलाफ उसकी याचिका पर तत्काल सुनवाई की अपील की है।

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मैं शासन की पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकता। लोक सेवक न तो आदेशों को सुन रहे हैं और न ही उनका पालन कर रहे हैं। वहीं, चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेवाओं के नियंत्रण पर संसद द्वारा लाए गए कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार द्वारा दायर याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।

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सीजेआई चंद्रचूड़ ने सिंघवी से कहा कि पुरानी संविधान पीठ के मामले हैं, जिन्हें हम सूचीबद्ध कर रहे हैं और अगले दो हफ्ते में 7 जजों की पीठ के दो मामले आने वाले हैं। वे वर्षों से लंबित हैं। उन्होंने चार सप्ताह के बाद मामले का नए सिरे से उल्लेख करने की छूट देते हुए कहा कि मुझे फैसला लेने दीजिए। मैं यह भी देख सकूँगा कि कौन सी पीठ उपलब्ध है।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस बीच मामले में दलीलें पूरी कर ली जाएं। इसने दोनों पक्षों के लिए नोडल वकील भी नियुक्त किया और सामान्य संकलन तैयार करने का निर्देश दिया।

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वहीं, दिल्ली उपराज्यपाल की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि निर्धारण के लिए प्रश्न नए सिरे से तैयार करने होंगे। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “डॉ. सिंघवी और आप (श्री जैन) एक साथ बैठ सकते हैं और हमें सहमत मुद्दे बता सकते हैं।''

सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अधिनियम, 2023 के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करेगी, जो राष्ट्रीय राजधानी में वरिष्ठ नौकरशाहों के तबादलों और पोस्टिंग पर केंद्र द्वारा पहले घोषित अध्यादेश की जगह लेगी।

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अध्यादेश, जिसे अब एक कानून द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं पर नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंपने के बाद लाया गया था।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और कहा था कि यह अनुच्छेद 239एए में दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए निहित संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करता है और स्पष्ट रूप से मनमाना है।

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