हालात

यूपी-पंजाब-गोवा में बड़े-बड़े वादे, लेकिन दिल्ली को 2013 से अब तक न तो सुरक्षित और न ही बेहतर कर पाए केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जो नहीं किया, वह पंजाब, गोवा और उत्तराखंड जैसे चुनावी राज्यों में भी नहीं कर सकते है। उन्होंने रोजगार, नकद राशि, वकीलों के लिए बीमा और भ्रष्टाचार और ड्रग माफिया से लड़ने जैसा वादा कर रखा है। क्या ऐसा नहीं लगता कि हम बात किसी ‘छोटे मोदी’ की कर रहे हैं?

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Getty Images Mayank Makhija
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर क्या दो बातें सबसे पहले ध्यान आती हैं? यही कि वह नए-नए तरीके से लोगों के सामने आते हैं और हिन्दुत्व की अपनी छवि का जब-तब प्रदर्शन करते रहते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उनसे पीछे नहीं हैं। वादे और दावे तो वह मोदी की तरह करते ही रहते हैं, अभी पंजाब दौरे के समय उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल रही जिसमें वह प्रचार से पहले अपना चेहरा- मोहरा ठीक करा रहे हैं। दिल्ली दंगे के दौरान उन्होंने पीड़ितों का जिस तरह साथ छोड़ दिया, वह तो सबने देखा ही। पूजा-पाठ का सार्वजनिक प्रदर्शन करना भी वह कभी नहीं भूलते।

एक दूसरे के लिए तलवारें खींचे रहने वाले दो नेताओं के बीच कितनी समानता हो सकती है, इसका बेहतरीन उदाहरण हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। दोनों को ही बखूबी पता है कि किसी को कब ‘गाजर’ खिलाना है और कब ‘डंडा’। मीडिया को कैसे अपनी धुन पर नचाना है। हां, मोदी की तरह केजरीवाल प्रेस का सामना करने से भागते नहीं लेकिन नतीजे में ढेले भर का फर्क नहीं पड़ता- एक ऐसे नेता से मीडिया असहज करने वाला कोई सवाल नहीं करता जिसे सरेराह थप्पड़ मारा गया हो, गालियां दी गई हों, जिसका मुंह काला किया गया हो, जिस पर चप्पलें फेंकी गई हों।

ऐसी तमाम बातें हैं जो आज के समय में अहम हो जाती हैं क्योंकि यह वक्त है पांचराज्यों में चुनाव का। चार राज्यों में मोदी के साथ-साथ केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी मुकाबले में है और अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री को देखने-समझने के लिए ‘छोटे मोदी’ के चश्मे का इस्तेमाल करें तो शायद कुछ बेहतर नजर आए। वजह साफ है, केजरीवाल जो काम दिल्ली में नहीं कर सके, किसी और राज्य में भला कैसे कर सकते हैं?

तमाम सामाजिक पैमानों पर जिस तरह नरेन्द्र मोदी का प्रदर्शन सवालों के घेरे में रहा है, वैसा ही कुछ हाल दिल्ली के मुख्यमंत्री का भी है। अरविंद केजरीवाल ने तमाम बड़ी-बड़ी बातें कीं लेकिन 2013 के बाद से युवाओं के लिए रोजगार पैदा नहीं कर सके। न उन्होंने दिल्ली की महिलाओं को मासिक एक हजार रुपये दिए, न वकीलों को बीमा का प्रीमियम और न ही जरूरतमंद रोगियों को ऑक्सीजन सिलेंडर। दिल्ली को नशीले पदार्थों की चंगुल से भी वह नहीं बचा सके हैं। और तो और, उन्होंने दिल्ली को शराब के ‘अड्डे’ में बदल दिया है। शराब की दुकानों की संख्या 250 से बढ़ाकर 850 कर दी है और उन्हें उपभोक्ताओं से ज्यादा कीमत वसूलने की इजाजत दे दी गई है।

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तब नशे में थे या अब?

शराब खरीदने के लिए उम्र सीमा 24 साल से घटाकर 21 साल कर दी गई है। केजरीवाल जब विपक्ष में थे, तो उन्होंने मांग की थी कि शराब की दुकानों की इजाजत इलाके के लोगों, रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और मोहल्ला सभा द्वारा दी जानी चाहिए। लेकिन मोदी की तरह ही वादे को धुएं में उड़ाने के महारथी!

केजरीवाल से अलग राह अख्तियार कर चुके उनके पुराने सहयोगी कुमार विश्वास की नई आबकारी नीति पर प्रतिक्रिया गौर करने वाली है। ट्वीट कर बताया कि आम आदमी पार्टी के पहले कार्यकाल के दौरान शराब माफिया ने उनसे संपर्क करके आबकारी नीति बदलने की पेशकश की थी लेकिन तब विश्वास ने उन्हें निकाल बाहर किया था।

स्वीकृत पदों पर शिक्षक नहीं भरे

केजरीवाल दावा करते हैं कि दिल्ली में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे ज्यादा सीसीटीवी कैमरे हैं। लेकिन 2.75 लाख कैमरे लगाने के उनके दावे पर सवाल हैं क्योंकि नहीं लगता कि इससे महिलाएं सुरक्षित हो गई हैं और जबकि केजरीवाल ने महिलाओं के लिए बस यात्रा मुफ्त कर दी है, डीटीसी बसों का बेड़ा कम हो गया है और जो कुछ सड़क पर हैं, वे शायद ही कभी महिलाओं को बैठाने के लिए रुकती हैं।

आरटीआई आवेदनों के जवाबों से पता चला है कि दिल्ली सरकार ने 2015 के बाद से वास्तव में 16 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया। 2015 में उन्होंने वादा किया था कि 20 और सरकारी कॉलेज खोले जाएंगे लेकिन उन्होंने एक भी कॉलेज नहीं खोला। दिल्ली में टीजीटी (प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक) के स्वीकृत पद 34 हजार हैं लेकिन इन शिक्षकों की संख्या महज 16 हजार है। हैं। वायु प्रदूषण को काबू करने के लिए दिल्ली सरकार सालाना जो कुछ करती है, वह लंबे समय से मजाक बना हुआ है। केजरीवाल ने दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया, फिर गाजे-बाजे के साथ बायो-डीकंपोजर पेश किए। इस सिलसिले में आधी-अधूरी कोशिशों के बाद उछलकर ‘ऑड-ईवन’ पर आ गए। अंत में, जब कुछ भी काम नहीं आया तो पिछले साल तीन स्मॉग टावर लगा दिए और यह दावा किया कि पंखे वातावरण से प्रदूषित हवा को सोख लेंगे और साफ हवा देंगे। उसके बाद से स्मॉग टावरों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं सुना गया है।

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70 करोड़ का घर

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस आरोप पर कि दिल्ली सरकार और केजरीवाल विज्ञापनों पर बहुत अधिक खर्च कर रहे हैं, केजरीवाल ने जवाब दिया कि दिल्ली में उनकी तस्वीर वाले केवल 108 होर्डिंग पर हैं जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मोदी की कहीं ज्यादा हैं।

अनुमान है कि दिल्ली सरकार ने 2019 के बाद महज दो सालों में विज्ञापन अभियानों पर 872 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन हैरत की बात है कि शिक्षकों, डॉक्टरों, नर्सों और नगर निगम को किए वादे को पूरा नहीं कर रहे हैं। दिल्ली के पास पैसे की कमी नहीं। दिल्ली सरकार का बजट 70,000 करोड़ रुपये का है जो कई राज्यों से ज्यादा है। और फिर दिल्ली सरकार की जिम्मेदारियां भी कम हैं क्योंकि उसे दिल्ली पुलिस, अपने स्वयं के कर्मचारियों, दिल्ली विकास प्राधिकरण, एनडीएमसी और नगर निगमों की पेंशन का बोझ भी उठाना नहीं पड़ता। इन खर्चों का पूरी तरह या काफी हद तक वहन केन्द्र सरकार करती है।

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केजरीवाल ने 2011-12 के बाद से एक लंबा सफर तय किया है जब वह वैकल्पिक राजनीति का वादा करने वाले पोस्टर बॉय थे। आयकर अधिकारी और आईआईटी इंजीनियर होने के बावजूद वैगन आर में घूमते थे। सत्ता में बैठे राजनेताओं के सामने खड़े होने और उन्हें गाली देने से नहीं डरते थे। उन्होंने गरीबों, रेहड़ी-पटरी वालों और ऑटो रिक्शा चालकों को सशक्त बनाने का वादा किया। उन्होंने जन लोकपाल लाकर भ्रष्टाचार को खत्म करने का भी वादा किया था। ऐप्पल कंपनी के पूर्व सीईओ और द्वारका से आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक आदर्श शास्त्री कहते हैं, ‘दिल्ली में हर कोई उनके जादू में आ गया और मैं भी नौकरी छोड़कर उनके साथ जुड़ गया।’ शास्त्री आज केजरीवाल से काफी निराश हैं। उस समय केजरीवाल अपने पुराने जर्जर वैगन आर में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए रामलीला मैदान गए थे। वह तब वीआईपी संस्कृति के खिलाफ थे और मेट्रो से भी यात्रा किया करते। शास्त्री कहते हैं, ‘अब 70 करोड़ रुपये की लागत से मुख्यमंत्री के लिए एक नया आवास बनाया जा रहा है। मुझे बताया गया है कि सिर्फ बिजली फिटिंग पर 6.5 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।’ सीएम के घर के बिजली बिल और एयरकंडीशनर की संख्या को लंबे समय से अरविंद केजरीवाल के फिजूलखर्ची के सबूत के तौर पर देखा जा रहा है।

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सड़क पर मरते बेघरबार

दिल्ली तो वैसे भी कड़ाके की सर्दी के लिए जानी जाती है लेकिन इस साल जनवरी में रिकॉर्ड बारिश ने तो जैसे हड्डी ही गला डाली। इतने मुश्किल हालात में दिल्ली सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही कि उसने 300 से ज्यादा शेल्टर होम बनवाए। लेकिन गहराती रात के साथ दिल्ली की सड़कों पर छोटी-छोटी ओट लेकर खुले में सोते लोगों को देखा जा सकता है। सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट (सीएचडी) नाम के एनजीओ ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर इस बात पर चिंता जताई कि एक माह के भीतर 172 बेघरबार लोगों की मौत हो गई।

सीएचडी का दावा है कि वह सालों से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का ध्यान इस ओर खींचते हुए और शेल्टर होम बनाने का अनुरोध करता रहा है लेकिन कुछ नहीं किया गया और यह दावा किया गया कि सबकुछ ठीक है। अरविंद केजरीवाल की नजर में तो सभी राज्यों की तुलना में दिल्ली सरकार सबसे अच्छी है, सबसे ईमानदार, सबसे सक्षम, सबसे जन-सरोकारी है। इसकी सारी एजेंसियां ‘बेहतरीन’ काम कर रही हैं। बेशक दिल्ली में महिलाएं 2012 की तुलना में ज्यादा सुरक्षित महसूस न करती हों लेकिन दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष को उनके ‘शानदार काम’ के लिए पिछले साल लगातार तीसरी बार तीन साल का सेवा विस्तार दिया गया।

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इन सबको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि केजरीवाल या आम आदमी पार्टी की शासन करने की सलाहियत की तो जांच-परख हुई ही नहीं। तमाम बातें इशारा करती हैं कि केजरीवाल एक घटिया प्रशासक रहे हैं और उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है।

पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में वह कर्मचारियों को नियमित करने का वादा कर रहे हैं जबकि दिल्ली में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के अलावा 22 हजार टीचर आरोप लगा रहे हैं कि सात साल से शासन कर रहे केजरीवाल ने अब तक उन्हें दिया वादा पूरा नहीं किया। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जो नहीं किया, वह पंजाब, गोवा और उत्तराखंड जैसे चुनावी राज्यों में भी नहीं कर सकते है। उन्होंने रोजगार, नकद राशि, वकीलों के लिए बीमा और भ्रष्टाचार और ड्रग माफिया से लड़ने जैसा वादा कर रखा है। क्या ऐसा नहीं लगता कि हम बात किसी ‘छोटे मोदी’ की कर रहे हैं?

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