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कोरोना कहर में भी काग़ज़ी घोड़े दौड़ाती रही खट्टर सरकार, कागजों में ही विलेज आइसोलेशन सेंटर बने, वहीं दफन हो गए

सोनीपत के गोहाना से विधायक जगबीर सिंह मलिक का कहना है कि उन्हें ऐसा कोई विलेज आइसोलेशन सेंटर दिखा ही नहीं। न ही कोई व्‍यक्ति ऐसा मिला, जिसने ऐसे किसी सेंटर में जाकर इलाज करवाया हो। सरकार ने इस तरह के सेंटर कागजों में ही बनाए और कागजों में ही यह दफन हो गए।

फोटोः दैनिक ट्रिब्यून से साभार
फोटोः दैनिक ट्रिब्यून से साभार 

क्‍या हरियाणा सरकार कोरोना की दूसरी लहर में महज कागजी घोड़े दौड़ाती रही? जी हां, खुद सरकार के दस्‍तावेज भी यही कह रहे हैं। शहरों में कोरोना की दूसरी लहर की तबाही से कम बदतरीन हालात गांवों में नहीं थे। सरकार जमीन पर कहीं थी नहीं। लिहाजा, कागजों में फैसले दौड़ाने का फैसला हुआ। हर गांव में कोरोना पीडि़तों के लिए विलेज आइसोलेशन सेंटर बनाने का ऐलान कर दिया गया। कागजों में चंद गांवों में इसे अंजाम भी दे दिया गया। लेकिन इन केंद्रों की हालत सरकार की मंशा की तस्‍दीक कर रही थी। कहीं विलेज आइसोलेशन सेंटर दिखाया भी गया तो वहां बेड नहीं था। कहीं बेड था तो बिस्‍तर नहीं था। स्‍टाफ की तैनाती के नाम पर तो बस भगवान थे।

हरियाणा में कोरोना की दूसरी लहर में मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की संजीदगी की असलियत जानने के लिए चार तारीखें बेहद अहम हैं। सबसे पहले 4 मई की तिथि है जब प्रदेश में सर्वाधिक 15786 कोरोना के पॉजिटिव केस आए थे। फिर 5 मई वह तारीख थी, जब प्रदेश में सर्वाधिक 181 मौतें कोरोना से हुईं। 9 मई को राज्‍य में सर्वाधिक 116867 कोरोना के सक्रिय मरीज थे और चौथी तारीख है 11 मई, जब सरकार के कान में जूं रेंगी और मुख्‍यमंत्री ने खुद घोषणा किया कि महामारी के हॉटस्पॉट वाले गांवों में 15 मई से आइसोलेशन सेंटर बनाकर लोगों की जांच शुरू की जाएगी।

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मतलब साफ है कि जिस वक्‍त सरकार जागी उस वक्‍त तक प्रदेश के गांवों से कोरोना का तूफान गुजर चुका था। अब सरकार के पास कुछ करते दिखने के लिए कागजी घोड़े दौड़ाने के अलावा कुछ बचा भी नहीं था। उसने किया भी वही। 15 मई से गांवों में शुरू हुई हेल्‍थ चेकअप स्‍कीम के बाद 18 मई को पहली बार सरकार ने बताया कि चार दिन में ग्रामीण क्षेत्रों में 24084 लोग इंफ्लुएंजा की तरह के लक्षणों वाले पाए गए हैं। 16787 लोगों ने विलेज आइसोलेशन सेंटर में रिपोर्ट किया है। 25407 लोगों का इन ग्रामीण केंद्रों में रैपिड एंटीजन टेस्‍ट किया गया।

अब सरकार के ही दिए इन हर आंकड़ों में भारी विरोधाभास है। 1410 लोग रैपिड एंटीजन टेस्‍ट में पॉजिटिव पाए गए। 5041 लोगों का आरटीपीसीआर टेस्‍ट किया गया, जिसमें से 101 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इस दौरान 318 लोगों को इन आइसोलेशन सेंटर में रखा गया, जबकि महज 69 लोगों को आगे रेफर किया गया। यह चार दिनों की सरकारी कहानी है। इस वक्‍त तक सरकार ने यह नहीं बताया था कि प्रदेश में कितने विलेज आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं।

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सरकार की इस कवायद के हफ्ते भर बाद की स्‍टोरी और दिलचस्‍प है। 21 मई को सरकार के आंकड़े कह रहे थे कि पूरे प्रदेश में 20 मई तक 1310 विलेज आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं, जिनमें से 1272 ऐसे सेंटर थे, जहां बेड उपलब्‍ध थे। मतलब 38 ऐसे सेंटर थे, जहां बेड भी नहीं थे। इनमें भी 1186 सेंटर ऐसे थे, जहां बिस्‍तर उपलब्‍ध थे। मतलब 86 सेंटर ऐसे थे, जहां बिस्‍तर भी उपलब्‍ध नहीं थे। साफ है कि कागजों में सेंटर तो बना दिए गए, लेकिन मरीजों की देखभाल और सुविधाओं के नाम पर वहां सिफर था।

राज्‍य के 22 में से नौ जिले ऐसे थे, जहां सभी केंद्रों में बेड तक नहीं थे। इसमें भी 18 जिले ऐसे थे, जहां सभी सेंटर में बिस्‍तर उपलब्‍ध नहीं थे। भिवानी में 40 विलेज आइसोलेशन सेंटर में से महज 28 केंद्रों में बेड थे, जबकि नूंह में 84 में से 79 सेंटर में बेड थे। रेवाड़ी में 56 में 47 और रोहतक में 39 में से 35 सेंटर में ही बेड उपलब्‍ध थे। भिवानी में 40 में से 25 और चरखीदादरी में 40 में से 31 केंद्रों में ही बिस्‍तर थे। कैथल में 46 में से 36, कुरुक्षेत्र में 60 में से 50 और नूंह में 84 में से 72 ऐसे सेंटर थे, जहां बिस्‍तर उपलब्‍ध थे।

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इसके एक हफ्ते बाद 28 मई को ग्रामीण क्षेत्रों में आइसोलेशन सेंटर की संख्‍या तो कुछ बढ़ी नजर आई, लेकिन उनके हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ। 1825 में से महज 1531 विलेज आइसोलेशन सेंटर ही ऐसे थे, जहां बेड उपलब्‍ध थे। मतलब तकरीबन तीन सौ सेंटर ऐसे थे, जहां बेड तक नहीं थे। सरकार के आंकड़ों में ही विरोधाभास इतना है कि इन पर यकीन करना मुश्किल है। 1825 में से 1584 सेंटर ऐसे बताए गए, जहां बिस्‍तर उपलब्‍ध थे। तो फिर यह मान लेना चाहिए कि इसमें से 53 सेंटर ऐसे थे, जहां बिना बेड के बिस्‍तर उपलब्‍ध थे।

सरकार के आंकड़ों से ही साफ है कि तमाम सेंटर ऐसे थे, जहां बेड तक नहीं था। कहीं बेड था तो बिस्‍तर नहीं थे। कहीं बिस्‍तर थे तो बेड नहीं थे। इसके करीब सप्‍ताह भर बाद 5 जून को भी स्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ। सरकार के आंकड़े बता रहे थे कि विलेज आइसोलेशन सेंटर की संख्‍या 42 बढ़कर बेशक 1867 हो गई थी, लेकिन इन सेंटर के हालात बदलना सरकार ने मुनासिब नहीं समझा।

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5 जून वह अंतिम तिथि थी, जिसके बाद सरकार ने कोरोना मरीजों के लिए गांवों में बनाए गए इन कथित केंद्रों के बारे में बताना भी उचित नहीं समझा। स्‍पष्‍ट है कि कोरोना की तबाही गुजर जाने के बाद 15 मई से प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में आरंभ हुई यह कागजी कवायद भी महज 20 दिन बाद ही अपने अंजाम को पहुंच चुकी थी। अब 21 जून को सरकार का रजिस्‍टर कह रहा है कि हरियाणा के गांवों में स्‍क्रीनिंग के बाद रि-स्‍क्रीनिंग की प्रक्रिया भी 14 जून को पूरी हो चुकी है। जाहिर है कि सरकार ने अब इस चैप्‍टर को ही बंद कर दिया है। उसने दावा कर दिया है कि उसके प्रयासों से कोरोना की जंग जीती जा चुकी है।

सोनीपत जिले के गोहाना से विधायक जगबीर सिंह मलिक का कहना है कि हमें तो कोई ऐसा विलेज आइसोलेशन सेंटर दिखा नहीं। न ही कोई व्‍यक्ति ऐसा मिला, जिसने इस तरह के किसी सेंटर में जाकर अपना इलाज करवाया हो। मलिक का कहना है कि सरकार ने इस तरह के सेंटर कागजों में ही बनाए और कागजों में ही यह दफन हो गए।

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