
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक फैसले में सभी चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित कर दिया। इस प्रमुख सुधार के जरिये 29 मौजूदा श्रम कानूनों को तर्कसंगत बनाने का दावा किया गया है। वहीं देश के 10 मजदूर संगठनों के एक संयुक्त मंच ने गए श्रम सुधारों की निंदा की है और इस कदम को कर्मचारी विरोधी बताते हुए कहा कि यह नियोक्ताओं का समर्थन करता है। दूसरी ओर आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने इन सुधारों का स्वागत किया और इन्हें लंबे समय से प्रतीक्षित कदम बताया है।
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एक बयान में, 10 श्रमिक संघों के संयुक्त मंच ने कहा कि वे आज एकतरफा तरीके से लागू की गई मजदूर विरोधी, नियोक्ता समर्थक श्रम संहिताओं की कड़ी निंदा करते हैं। संयुक्त मंच ने कहा, ''चार श्रम संहिताओं की यह मनमानी और अलोकतांत्रिक अधिसूचना सभी लोकतांत्रिक लोकाचारों का उल्लंघन करती है।'' आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने एक अलग बयान में कहा कि ये चार श्रम संहिताएं श्रमिक बाजार की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई हैं।
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इससे पहले आज श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ''चारों श्रम संहिताओं को अधिसूचित कर दिया गया है और अब ये देश का कानून हैं।'' इस प्रमुख सुधार के जरिये 29 मौजूदा श्रम कानूनों को तर्कसंगत बनाने का दावा किया गया है। इसमें गिग यानी अल्पकालिक अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज, सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य नियुक्ति पत्र और सभी क्षेत्रों में वैधानिक न्यूनतम मजदूरी और समय पर भुगतान जैसे प्रावधान शामिल हैं। साथ ही लंबे कार्य घंटे, व्यापक निश्चित अवधि के रोजगार और नियोक्ता-अनुकूल छंटनी नियमों की अनुमति भी है जिसकी श्रमिक संगठनों ने आलोचना की है।
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ये चार श्रम संहिताएं - वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 तथा व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता, 2020 हैं। इन्हें पांच साल पहले संसद ने पास किया था। चार संहिताओं में 29 श्रम कानून शामिल किए गए हैं। वेतन संहिता में चार, सामाजिक सुरक्षा संहिता में नौ, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता में 13 और औद्योगिक संबंध संहिता में तीन कानूनों को मिलाया गया है।
हालांकि, श्रमिक संगठनों ने छंटनी संबंधी अस्पष्ट प्रावधानों और केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वयन के दौरान संभावित मनमाने व्यवहार को लेकर इन संहिताओं की आलोचना की है।श्रम संहिताओं में बंदी, छंटनी या लागत कटौती के लिए अनिवार्य सरकारी अनुमति की सीमा बढ़ा दी गई है। मौजूदा प्रावधान में 100 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को सरकारी अनुमति की जरूरत थी। अब नई संहिता में यह सीमा 300 श्रमिकों तक बढ़ा दी गई है। इसके अलावा, फैक्टरियों में काम के घंटे नौ से बढ़ाकर 12 घंटे और दुकानों तथा प्रतिष्ठानों में नौ घंटे से बढ़ाकर 10 घंटे कर दिए गए हैं।
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सुधारों में महिलाओं के लिए विस्तारित अधिकार और सुरक्षा शामिल हैं। इनमें रात की पाली में काम, 40 वर्ष से अधिक आयु के श्रमिकों के लिए मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच, खतरनाक प्रक्रिया इकाइयों सहित पूरे भारत में ईएसआईसी कवरेज और एकल पंजीकरण, लाइसेंस प्रणाली शामिल हैं। अब इन संहिताओं के आधार पर नियम बनाने होंगे। चूंकि श्रम समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए केंद्र और राज्य दोनों को कानून एवं नियम बनाने होंगे। पश्चिम बंगाल को छोड़कर अधिकांश राज्यों ने पिछले कुछ वर्षों में श्रम कानूनों से संबंधित बदलाव कर लिए हैं।
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