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लोकसभा चुनाव: चंबल में डाकुओं का दौर हुआ खत्म, लेकिन जाति का मुद्दा अब भी हावी

राज्य के उत्तरी भाग में स्थित ग्वालियर-चंबल क्षेत्र उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा के निकट है और इसमें तीन सीट, ग्वालियर, मुरैना और भिंड आती हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। तीनों सीट पर अन्य पिछड़ा वर्ग का वर्चस्व है, जहां इनकी बड़ी आबादी है।

चंबल में डाकुओं का दौर हुआ खत्म, लेकिन जाति का मुद्दा अब भी हावी
चंबल में डाकुओं का दौर हुआ खत्म, लेकिन जाति का मुद्दा अब भी हावी फोटोः सोशल मीडिया

कभी बॉलीवुड की फिल्मों में डकैतों और बंदूकधारियों के गढ़ के तौर पर दिखाए जाने वाले मध्य प्रदेश के चंबल क्षेत्र में डाकुओं का दौर तो अब खत्म हो गया है, लेकिन जाति का मुद्दा अब भी हावी है। हालांकि आधुनिकीकरण के कारण यहां बदलाव देखा जा रहा है, लेकिन जाति अभी भी यहां एक प्रमुख फैक्टर है।

राज्य के उत्तरी भाग में स्थित ग्वालियर-चंबल क्षेत्र उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा के निकट है और इसमें तीन सीट, ग्वालियर, मुरैना और भिंड आती हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। ग्वालियर, मुरैना और भिंड (सुरक्षित) लोकसभा सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग का वर्चस्व है, जहां अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी है।

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नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में इन तीन लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले 24 विधानसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस ने 13 और बीजेपी ने 12 सीटें जीती थीं। हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। ग्वालियर और भिंड लोकसभा सीट के तहत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से बीजेपी और कांग्रेस ने चार-चार सीट जीतीं, जबकि मुरैना में कांग्रेस ने पांच और बीजेपी ने चार सीट जीतीं। शिवपुरी की तीन विधानसभा सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी।

ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर भुवनेश सिंह तोमर ने बताया कि जातिगत भावनाएं तब भी निहित थीं, जब ग्वालियर-चंबल क्षेत्र डाकुओं, डकैतों या "बागियों" गढ़ हुआ करता था। तोमर ने कहा, "राजनीति में जातिवाद कोई नई बात नहीं है। चंबल क्षेत्र में उन मौकों को छोड़कर यह हमेशा मौजूद रहा है, जब सिंधिया परिवार के नेताओं समेत बड़े नेताओं ने चुनाव लड़ा है। लेकिन पिछले तीन दशक में बढ़ती सड़क कनेक्टिविटी और आधुनिकीकरण के कारण बहुत सारे सामाजिक परिवर्तन हुए हैं।”

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उन्होंने कहा कि पिछले दो दशकों में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग मुखर हो गए हैं और राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। तोमर ने कहा, “इस क्षेत्र में पिछले दो लोकसभा चुनाव भाजपा द्वारा निर्धारित विमर्श के इर्द-गिर्द लड़े गए। इस बार संकेत स्पष्ट नहीं है क्योंकि चुनाव प्रचार बहुत कम है। भाजपा उम्मीदवार पहले कमजोर दिख रहे हैं क्योंकि पार्टी ने ग्वालियर और मुरैना से उन नेताओं को मैदान में उतारा था जो पहले चुनाव हार गए थे।”

हालांकि तोमर ने दावा किया कि एक मजबूत संगठनात्मक ढांचे और नरेन्द्र मोदी प्रभाव से बीजेपी उम्मीदवारों को फायदा होगा। उन्होंने कहा कि विजयपुर (मुरैना लोकसभा सीट) से पार्टी के मौजूदा विधायक रामनिवास रावत समेत कांग्रेस के कई नेता सत्तारूढ़ दल बीजेपी में शामिल हो गए हैं।

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मुरैना में रहने वाले वकील देवेश शर्मा ने दावा किया कि पिछले तीन से चार दशक में स्थिति काफी बदली है। उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र के लोगों के लिए पहले जाति आई और फिर राष्ट्रवाद। अपने बीहड़ों और डाकुओं के कारण इस क्षेत्र पर कई फिल्म बनीं। ये डाकू पहले ग्रामीण इलाकों में राजनीति को प्रभावित करते थे लेकिन अब वे दिन नहीं रहे।”

प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीतू पटवारी के मीडिया सलाहकार केके मिश्रा ने बताया कि उनकी पार्टी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में आधी लोकसभा सीटें जीतेगी। मिश्रा ने आरोप लगाया, "ग्वालियर-चंबल क्षेत्र पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थन करता रहा है और हम यहां आधी सीटें जीतेंगे। बीजेपी इस तथ्य को जानती है और ईवीएम के माध्यम से चुनावों में हेरफेर करने की कोशिश करेगी। बीजेपी केवल प्रचार में आगे है।" उन्होंने कहा कि कांग्रेस बहुत मजबूत स्थिति में है जैसा कि विधानसभा चुनाव परिणामों से स्पष्ट है।

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हालांकि, प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि उनकी पार्टी क्षेत्र की सभी लोकसभा सीटें जीतेगी। उन्होंने दावा किया, "बीजेपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारंटी और उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों के साथ-साथ गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लेकर मतदाताओं के पास गई है। हम कांग्रेस की तरह जाति या धर्म के आधार पर चुनाव नहीं लड़ते हैं।" चतुर्वेदी ने दावा किया कि लोग जानते हैं कि कांग्रेस ओबीसी का आरक्षण छीनना चाहती है और धर्म के आधार पर मुसलमानों को देना चाहती है जैसा कि उन्होंने आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में किया था।

चंबल पर बनीं ब्लॉकबस्टर फिल्मों में "शोले", "मेरा गांव मेरा देश", "गंगा जमना", "मुझे जीने दो" और "बैंडिट क्वीन" शामिल हैं। बीजेपी नेता के मुताबिक, ग्वालियर लोकसभा सीट पर 46 फीसदी ओबीसी और 20 फीसदी एससी हैं, जबकि पांच फीसदी आबादी एसटी की है। बाकी सामान्य वर्ग से हैं।

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1971 में इस सीट से सांसद रहे थे। जनसंघ की दिग्गज नेता और बीजेपी की संस्थापक सदस्य राजमाता विजया राजे सिंधिया 1962 में कांग्रेस के टिकट पर ग्वालियर सीट से जीती थीं, जबकि उनके बेटे माधवराव सिंधिया चार बार कांग्रेस जबकि एक बार खुद की पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस से जीते थे।

मुरैना लोकसभा सीट पर 44 प्रतिशत ओबीसी, 20 प्रतिशत एससी, छह प्रतिशत एसटी और शेष सामान्य वर्ग की आबादी है। मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर 2009 और 2014 में मुरैना से चुने गए थे। उन्होंने 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

भिंड में 43 प्रतिशत मतदाता ओबीसी वर्ग से हैं, 23 प्रतिशत एससी हैं, 21 प्रतिशत सामान्य वर्ग से हैं और 1 प्रतिशत एसटी हैं। विजयाराजे सिंधिया 1971 में भिंड लोकसभा सीट से चुनाव जीतीं। संयोग से उनकी बेटी और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को 1984 में इस सीट पर कांग्रेस के कृष्णा सिंह जूदेव के हाथों हार का सामना करना पड़ा, जो दतिया के शाही परिवार के सदस्य थे।

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