आप भूल रहे है कि मैं एक प्रतिष्ठित भारतीय राज्य की निर्वाचित मुख्यमंत्री हूं। आप शायद यह भी भूल रहे है कि आप मनोनीत राज्यपाल हैं। आप मेरे और मेरी मंत्रिपरिषद के तमाम सुझावों और इनपुट्स को नजरअंदाज करते रहें (जैसा कि आपने अपने पदस्थापन के बाद से ही किया है), लेकिन आपको बाबा साहब आंबेडकर द्वारा 31 मई 1949 को संविधान सभा में दिए गए विवेकपूर्ण भाषण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हमें लगता है कि राज्यपाल के अधिकार बहुत सीमित और कम हैं। यह पद दरअसल ओर्नामेंटल (आभूषणी) है। इसलिए इसके चुनाव के लिए कोई आगे नहीं आएगा।‘
ये पंक्तियां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा राज्यपाल जगदीप धनकर को भेजे गए उस पंत्र का हिस्सा हैं, जो उन्होंने गुरुवार की शाम उन्हें लिखा।
Published: undefined
ममता बनर्जी ने अपने पत्र में बाबा साहब डा आंबेडकर को उद्धृत करते हुए लिखा है कि गवर्नर का पद पूरी तरह संवैधानिक और न्यूनतम अधिकारों वाला है। इसी कारण उन्होंने राज्यपाल के लिए चुनाव कराने के बजाय उन्हे मनोनीत करने का सुझाव संविधान सभा को दिया था। वे मानते थे कि अगर इसका चुनाव कराया जाए, तो कोई आगे नहीं आएगा। ममता बनर्जी ने डा आंबेडकर द्वारा 2 जून 1949 को दिए गए संबोधन के उस हिस्से का भी जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संविधान के तहत गवर्नर के पास करने के लिए कोई काम नहीं है।
ममता बनर्जी ने यह भी लिखा है कि शायद आपको (राज्यपाल को) सरकारिया कमीशन की सिफारिशों का भी ख्याल नहीं है। उन्होंने अपने पांच पन्नों की चिट्ठी में राज्यपाल को कई जगहों पर उनके अधिकारों और सीमाओं का एहसास कराया है। उन्होंने लिखा है कि सरकारिया कमीशन ने शायद इसी कारण सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार में सत्तासीन पार्टी से जुड़े रहे किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए जहां विपक्ष या विपक्षी दलों के गठबंधन की निर्वाचित सरकार हो। बकौल ममता बनर्जी, आयोग ने कहा था कि राष्ट्रपति को अपनी पाक्षिक रिपोर्ट भेजते वक्त राज्यपाल को अपने राज्य के मुख्यमंत्री को तब तक विश्वास में लेना चाहिए, जबतक कि उनसे असहमत होने का कोई बड़ा संवैधानिक कारण नहीं उत्पन्न हो।
Published: undefined
इन उद्धरणों के उल्लेख के बाद ममता बनर्जी ने लिखा है कि आपके (राज्यपाल) लगातार और अवांक्षित हस्तक्षेप के कारण अब मेरे पास यही चारा है कि मैं इस चिट्ठी को जनता के बीच सार्वजनिक कर दूं, ताकि वे अपना निर्णय ले सकें और समझ सके कि कौन संवैधानिक आचरण का उल्लंघन कर रहा है।
ममता बनर्जी का यह पत्र अब सार्वजनिक हो चुका है और न केवल कोलकाता बल्कि देश के विभिनन हिस्सों में इसपर चर्चाएं हो रही हैं। यह पत्र सोशल मीडिया मे वायरल हो रहा है और लोग राज्यपाल के अधिकारों और उनकी सीमाओं पर बहस भी कर रहे हैं।
Published: undefined
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और वहां के राज्यपालों के बीच तनातनी कोई नई बात नहीं है। उन्होंने उस हर मौके पर राज्यपाल का विरोध किया है, जब उन्हें लगा कि वे सरकार के कामकाज में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहे हैं। बात चाहे एम के नारायणन की हो, केशरीनाथ त्रिपाठी की, या अब जगदीप धनकर की। जब भी उन्हें लगा कि उनके अधिकारों पर हमले हो रहे हैं, उन्होंने राज्यपालों को उनकी सीमाओं का एहसास कराया।
अब जब राज्यपाल जगदीप धनकर ने ट्वीट कर कहा है कि उन्होंने ममता बनर्जी के पत्र का जवाब दे दिया है। उन्होंने दावा किया है कि मुख्यमंत्री के पत्र में कथित तौर पर तथ्यों की गलतियां हैं। ऐसे में यह लड़ाई कहां जाकर खत्म होगी, इसका पूर्वानुमान करना किसी भा राजनीतिक टीकाकार के लिए मुश्किल काम है। अभी लाकडाउन है और लोग अपने घरों में बंद हैं। लिहाजा, संभव है कि राज्यपाल के खिलाफ कोई बड़ा जन प्रदर्शन नहीं होगा। लेकिन, यह लड़ाई कानूनी और बौद्धिक स्तर पर लंबे वक्त तक लड़ी जाएगी। इसमें न केवल बंगाल, बल्कि पूरा देश शामिल होगा।
राज्यपाल जगदीप धनकर ने कोविड संक्रमण को लेकर सरकार के कामकाज की आलोचना टीवी चैनलो पर आकर की थी। उन्होंने ममता बनर्जी को कुछ एसएमएस और पत्र भी भेजे थे। ताजा तनातनी की वजह यही है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined