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भोपाल में कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रही हैं कई रोजेदार महिलाएं, गर्मी में भी रोजा रखकर निभा रही हैं ड्यूटी

भोपाल में सर्वे के काम में लगी एएनएम, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं में कई रमजान का रोजा भी रख रही हैं। यहां गर्मी बढ़ती जा रही है, जिससे सिर से पांव तक ढंकने वाले पीपीई किट में इन महिलाओं को घुटन होती है। फिर भी ये रोजेदार अपनी ड्यूटी निभा रही हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कोरोना महामारी के खिलाफ मिलकर और एकजुटता के साथ लड़ाई लड़ी जा रही है, जिसे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में देखा जा सकता है। यहां कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने का लोगों में गजब का जज्बा है। मैदान में मोर्चा संभाले कई महिलाएं ऐसी हैं जो रमजान का रोजा रख रही हैं और अपनी ड्यूटी भी निभा रही हैं। रोजे की हालत में हर दिन के साथ बढ़ती गर्मी भी उन्हें ड्यूटी करने से रोक नहीं पा रही है।

मध्यप्रदेश में इंदौर के बाद राजधानी भोपाल वह शहर है, जहां कोरोना के सबसे ज्यादा मरीज हैं और यहां के कुछ खास इलाकों में मरीजों की संख्या ज्यादा है। इसलिए, इन्हें हॉटस्पॉट घोषित किया गया है। इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण का कार्य जारी है। इस कार्य में एएनएम, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा कार्यकर्ता लगी हुई हैं।

एक तरफ गर्मी बढ़ती जा रही है, ऊपर से इन महिलाओं को पीपीई किट पहननना पड़ता है। सिर से पांव तक ढकने वाला यह किट घुटन पैदा करता है। इतना ही नहीं, ड्यूटी कर रही इन महिलाओं में से कई ऐसी हैं जो रमजान का रोजा भी रखे हुई हैं। बढ़ती गर्मी रोजेदार महिलाओं का गला सुखा देती है, लेकिन फिर भी वे अपनी ड्यूटी पूरी शिद्दत के साथ किये जा रही हैं।

राजधानी के जहांगीराबाद इलाके में सर्वेक्षण के काम में लगी आशा कार्यकर्ता शबाना खान का कहना है, "रमजान का पवित्र महिना चल रहा है, यह साल में एक बार आता है। रमजान भी जरूरी है। वहीं हमारा फर्ज बनता है कि हमारे क्षेत्र में कोई बीमार है तो उसकी सेवा करें, उसे सहयोग करें। रोजा चल रहा है, पीपीई किट पहनने से बहुत गर्मी लगती है, उसे बर्दाश्त करते हुए अपनी ड्यूटी को पूरा कर रहे हैं।"

यहां आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम की टोली गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले पहुंचकर अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। ये कर्मचारी हर सुबह अपने काम पर निकल जाती हैं।इनमें से एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मेहनाज बेगम ने बताया, "इबादत भी जरूरी है और सेवा करना भी जरूरी है। साल में एक बार रमजान का महीना आता है, इबादत का। दोनों काम जरूरी हैं। चाहे जो परेशानी हो, समाज की सेवा तो करना ही है।"

बढ़ती गर्मी के बीच रोजेदारों के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाना बड़ी चुनौती बना हुआ है, क्योंकि वे दिन में पानी या किसी तरल पदार्थ का सेवन नहीं कर सकती हैं। उनका गला सूखने लगता है, मगर वे अपने काम से पीछे नहीं हट रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अनवर जहां कहती हैं, "गर्मी है, भूख और प्यास ज्यादा लगती है, मगर हम कुछ खा-पी नहीं सकते, क्योंकि रोजे में हैं। फिर भी अपनी जिम्मेदारी तो निभाना ही है।"

इन रोजेदार कोरोना योद्धाओं की हर कोई सराहना कर रहा है। डॉ. पी एस त्रिपाठी भी मानते हैं कि इन महिलाओं का काम चिकित्सकों से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इन महिलाओं को क्षेत्र, गली और मुहल्लों के बारे में ज्यादा जानकारी है। उन्होंने कहा, "हमारा काम धूप में निकलने का नहीं है, मगर उन महिलाओं को तो धूप में ही निकलना होता है। जितनी मेहनत ये महिलाएं कर रही हैं, उतनी मेहनत हम नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें हम सलाम करते हैं।"

भोपाल की स्थिति पर गौर करें तो यहां कोरोना मरीजों की संख्या 605 हो गई है और 20 मरीजों की जान जा चुकी है। दूसरी ओर, गर्मी का असर बढ़ रहा है, जिसके चलते सड़क पर निकलना आसान नहीं है। फिर भी रोजेदार महिलाएं कोरोना योद्धा की भूमिका निभाने में हिचक नहीं दिखा रही हैं। गुरुवार को भोपाल का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया था।

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