
अरावली पर्वतमाला में पहाड़ों की परिभाषा में बदलाव को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को आरोप लगाया कि मोदी सरकार राजस्थान के पर्यावरण और संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रही है। गहलोत ने केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव द्वारा अरावली क्षेत्र में केवल 0.19 प्रतिशत नए खनन संबंधी बयान पर कहा कि यह फैसला पर्यावरण को बर्बाद करने वाला है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बयान में कहा, ''केंद्र सरकार 'आंकड़ों की बाजीगरी' कर राजस्थान के पर्यावरण और संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रही है।'' गहलोत के अनुसार केंद्रीय मंत्री यादव का यह दावा कि खनन केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में होगा जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा है, क्योंकि वैध की आड़ में जो अवैध खनन होगा उसे रोकना किसी सरकार के बस की बात नहीं है।
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पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार यह दावा कर रही है कि 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्रफल का मात्र 0.19 प्रतिशत खनन के लिए उपयोग होगा। लेकिन असलियत यह है कि इस 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर में केवल पहाड़ नहीं हैं, बल्कि सरकार ने 34 जिलों के पूरे क्षेत्रफल (जिसमें शहर, गांव, खेत और मैदान भी शामिल हैं) को 'अरावली क्षेत्र' मान लिया है।
उन्होंने कहा कि वास्तविक अरावली पर्वत श्रृंखला इतनी विस्तृत नहीं है। खनन केवल पहाड़ों पर होगा। 34 जिलों के कुल क्षेत्रफल के अनुपात में 0.19 प्रतिशत सुनने में कम लगता है, लेकिन जब इसे जमीन पर उतारेंगे तो यह विनाशकारी होगा। गहलोत ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि सरकार के 0.19 प्रतिशत का मतलब 273.6 वर्ग किलोमीटर यानी लगभग 68,000 एकड़ जमीन है। अगर छोटी खदानों (1 हेक्टेयर/2.5 एकड़) के पट्टे दिए जाते हैं, तो यहां 27,200 खदानें वैध तरीके से ही आवंटित हो जाएंगी।
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि खनन का असर सिर्फ खदान तक सीमित नहीं रहता। सड़कों का निर्माण, डंपिंग यार्ड, क्रशर और उड़ती धूल आसपास की लाखों एकड़ उपजाऊ जमीन और खेती तथा पूरे पर्यावरण को बर्बाद कर देगी। इसी तरह गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा खान और खनिज विकास व विनियमन अधिनियम (एमएमडीआर एक्ट) में किए गए दो संशोधनों को राज्यों की स्वायत्तता पर हमला एवं अरावली को बर्बाद करने की साजिश बताया है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र ने यह नियम बनाकर राज्यों की शक्ति छीन ली है कि यदि राज्य सरकार समय पर नीलामी नहीं कर पाती, तो केंद्र सरकार खुद नीलामी कर देगी। उन्होंने कहा, ''यह राज्यों के प्राकृतिक संसाधनों पर जबरन कब्जे जैसा है। ऐसे में अगर अरावली में खनन पर कोई राज्य सरकार सहमति नहीं देगी तब भी केंद्र सरकार वहां खनन शुरू करवा सकती है।''
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गहलोत ने आरोप लगाया कि 'माइनर' और 'मेजर' खनिज की परिभाषा बदलकर और संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से छेड़छाड़ कर अरावली को खत्म करने की तैयारी की जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, एमएमडीआर एक्ट में बदलाव कर राज्यों की शक्ति सीमित करना, निजी कंपनियों को खनन का अधिकार देना, सीईसी को कमजोर करना, सरिस्का के संरक्षित क्षेत्र में केवल तीन दिन में बदलाव का मॉडल बनाना अरावली को बर्बाद करने के लिए शुरू किया गया है।
उन्होंने कहा, ''हमारा आरोप अभी भी यही है कि 0.19 प्रतिशत नहीं, 90 प्रतिशत अरावली को बर्बाद करने की साजिश की गई है।'' गहलोत ने कहा, ''हम राजस्थान के पर्यावरण, यहां की खेती और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को 'कॉर्पोरेट मुनाफे' की भेंट नहीं चढ़ने देंगे। सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह अरावली को बचाना चाहती है या उसे बेचना चाहती है।''
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