“आज उस दुर्भाग्यपूर्ण और विचारहीन फैसले की दूसरी बरसी है जो मोदी सरकार ने 2016 में लिया था। नोटबंदी के फैसले ने भारत की अर्थव्यवस्था और समाज के हर वर्ग पर मुसीबतों का पहाड़ ढहा दिया था। उम्र, लिंग, धर्म, पेशा या जाति के भेदभाव के बिना नोटबंदी ने हर किसी की जिंदगी मुहाल कर दी थी।
अकसर कहा जाता है कि वक्त के साथ हर जख्म भर जाता है, लेकिन अफसोस, नोटबंदी के मामले में ऐसा नहीं हो सका। इस चोट के जख्म आज भी ताज़ा हैं और वक्त के साथ गहरे होते जा रहे हैं। नोटबंदी के बाद देश के आर्थिक विकास की दर धराशायी हो गई थी, और इसके प्रभाव अभी भी हर रोज़ सामने आ रहे हैं। देश की अर्थव्यवस्था की नींव और रीढ़ समझे जाने वाले छोटे और मझोले कारोबार आज भी नोटबंदी के सदमे से नहीं उबर पाए हैं।
नोटबंदी ने रोजगार के मौके भी खत्म किए, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसके असर के नतीजतन नई नौकरियों की संभावना लगभग खत्म हो गई। वित्तीय बाजार यानी फाइनेंशियल मार्केट नकदी के संकट से जूझ रहा है और इसका असर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और इंफ्रास्ट्रक्चर को कर्ज देने की गति पर पड़ा है। और अब तो, रुपए में लगातार गिरावट और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों से भी बड़े आर्थिक कदमों पर ब्रेक लगा हुआ है।
वक्त है कि बिगड़ते हालात को काबू में करने के लिए कोई भी गैर परंपरागत और लघु अवधि वाला आर्थक कदम न उठाया जाए, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था और फाइनेंशियल मार्केट पर विपरीत असर पड़ेगा। मोदी सरकार से मेरा आग्रह है कि वह अपनी आर्थिक नीतियों में निश्चितता बहाल करे।
आज दिन है वह सब याद करने का कि कैसे दुस्साहसी कदम देश को लंबे समय के लिए अनिश्चितता के माहौल में झोंक देते हैं। यह दिन यह समझने का भी है कि देश की आर्थिक नीतियां बेहद सावधानी और विचार-विमर्श के बाद ही बनानी चाहिए।”
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आज नोटबंदी के दो साल पूरे हो गए। हमने नोटबंदी के प्रभाव और इसके विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करने के लिए हमने लेखों की एक श्रृंखला शुरू की है। इन लेखों में हमने बताया कि किस तरह नोटबंदी के फैसले से आम लोगों का जीवन दुखों से भर गया और इसके पीछे कौन सा अंतरराष्ट्रीय गठबंधन था। हमने सरकारी आंकड़ों को सामने रख जानने की कोशिश की कि आखिर नोटबंदी के पीछे इरादा क्या था सरकार का? यह सारे लेख आप नीचे दिए लिंक में पढ़ सकते हैं।
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