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अधूरे वादे और एमएसपी में दिखावटी बढ़ोत्तरी

कभी प्रधानमंत्री समेत भारतीय जनता पार्टी के सभी नेता यह कहा करते थे कि उनकी सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी कर देगी। इसके लिए जो समय सीमा बताई गई थी वह कब की निकल चुकी है लेकिन दोगुनी आमदनी तो छोड़िये किसानों की आमदनी लगातार कम की जा रही है।

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बुधवार को कैबिनेट कमेटी ऑन इकोनॉमिक अफेयर्स ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की जो घोषणा की वह बताती है कि केंद्र सरकार कृषि और किसानों को लेकर वास्तव में कितनी गंभीर है। 

देश में खरीफ की सबसे ज्यादा हिस्से पर खेती की जाने वाली फसल है धान। खरीफ के मौसम में लगभग 47.6 मिलियन हैक्टेयर जमीन पर इसकी खेती होती है। कृषि मजदूरों को सबसे ज्यादा रोजगार भी इसी फसल के मौसम में मिलता है। सरकार ने इस साल जिन फसलों की एमएसपी सबसे कम बढ़ाई है उनमें धान भी एक है। पिछले साल यह एमएसपी 2300 रुपये प्रति क्विंटल थी जो इस बार बढ़ाकर 2369 रुपये प्रति क्विंटल कर दी गई है। यानी कुल तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी। जिस समय मुद्रास्फीति (महंगाई) की सालाना दर पांच फीसदी के आस-पास हो उस समय तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी एक तरह से एक तरह से धान की एमएसपी को घटा देने की तरह ही है।  

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अगर आपको लगता है कि धान की खेती करने वाले किसानों के साथ बहुत नाइंसाफी हुई है तो आपको मूंग दाल की एमएसपी को देखना होगा। मूंग दाल की एमएसपी में जो बढ़ोत्तरी हुई है वह एक फीसदी से भी कम है। 

इस साल की शुरुआत में सरकार ने ‘मिशन फाॅर आत्मनिर्भरता इन पलसेज़‘ नाम का एक अभियान शुरू किया था। इसका मकसद था भारत में दालों के उत्पादन को बढ़ाना। इसके लिए बजट में एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया था। दुनिया में दालों की सबसे ज्यादा खेती और खपत भारत में ही होती है। इसकी मांग उत्पादन से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है इसलिए थोक और खुदरा बाजारों में दालों के दाम काफी तेजी से बढ़े हैं। इस मिशन का मकसद है भारत में दालों की खेती का रकबा बढ़ाना और उसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करना। 

मूंग की एमएसपी यह बता रही है कि सरकार दालों की खेती को प्रोत्साहित करने को लेकर वास्तव में कितनी गंभीर है। बाकी दालों की एमएसपी में बढ़ोतरी इसके मुकाबले थोड़ी ज्यादा है लेकिन वह इतनी नहीं है कि किसान दूसरी फसलों को छोड़कर दालों की खेती को अपनाएं। 

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धान और दालों के मुकाबले मोटे अनाज रागी, ज्वार, बाजारा वगैरह की एमएसपी में बढ़ोत्तरी कुछ बेहतर है। लेकिन इन फसलों का बाजार सीमित है और प्रचार के अलावा इनकी खपत  बढ़ाने के लिए कुछ ठोस काम नहीं हुआ है। 

सबसे ज्यादा एमएसपी नाईजर सीड यानी रामतिल की बढ़ाई गई है। इसमें 820 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से पक्षियों के आहार के रूप में किया जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से इसे लाइफस्टाइल प्रोडक्ट की तरह से बाजार में पेश किया जा रहा है। रामतिल की एमएसपी में बढ़ोत्तरी यह भी बताती है कि सरकार की प्राथमिकता कहां है।

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संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डाॅ. सुनीलम ने नेशनल हेराल्ड के साथ बातचीत में कहा कि, ‘‘किसानों के साथ एक बार फिर धोखा हुआ है। स्वामीनाथन कमेटी ने फसलों की खरीद के लिए सी-2 प्लस 50 फीसदी का जो फार्मूला दिया था उस पर कभी अमल नहीं हुआ। इस बार भी वह नहीं हुआ।‘‘ 

कभी प्रधानमंत्री समेत भारतीय जनता पार्टी के सभी नेता यह कहा करते थे कि उनकी सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी कर देगी। इसके लिए जो समय सीमा बताई गई थी वह कब की निकल चुकी है लेकिन दोगुनी आमदनी तो छोड़िये किसानों की आमदनी लगातार कम की जा रही है।

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