नेपाल के जेन-जी आंदोलन का असर सीमा के इस पार भी देखने को मिल रहा है। भारत-नेपाल सीमा से सटे बाजारों पर इसका खासा असर पड़ा है। यहां व्यापार काफी प्रभावित हुआ है। उत्तराखंड का बनबसा बाजार एक ऐसा ही बाजार है। नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने बनबसा बाजार को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। बीते तीन दिनों से सीमा पर सन्नाटा छा गया है, जिससे स्थानीय व्यापारियों का 90 प्रतिशत से अधिक कारोबार ठप हो चुका है।
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बनबसा बाजार, जो मुख्य रूप से नेपाली ग्राहकों पर निर्भर है, अब पूरी तरह शांत हो गया है। व्यापारियों को प्रतिदिन 40 से 50 लाख रुपये का अनुमानित नुकसान हो रहा है। नेपाली शहर महेंद्रनगर (कंचनपुर) में लगे कर्फ्यू के कारण सीमा पर आवागमन पूरी तरह बंद है, जिसका सीधा असर भारतीय बाजार पर पड़ा है। स्थानीय व्यापारी अब नेपाल में शांति बहाल होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि उनका कारोबार पटरी पर लौट सके।
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नेपाल में सितंबर में शुरू हुए जेन-जी आंदोलन ने देश को हिला दिया। यह आंदोलन शुरुआत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध के खिलाफ था, लेकिन जल्द ही भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म (नेपो किड्स की विलासिता) और आर्थिक असमानता के खिलाफ बड़े प्रदर्शनों में बदल गया। युवा पीढ़ी (13 से 28 वर्ष के बीच) ने काठमांडू और अन्य शहरों में सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। प्रदर्शनों के दौरान पुलिस कार्रवाई में कम से कम 19 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। अब पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है, जो नेपाल की पहली महिला पीएम हैं। नेपाल आर्मी ने सुरक्षा संभाली है और कर्फ्यू में सुबह-शाम छूट दी जा रही है। हालांकि, स्थिति अभी पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है।
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इस अशांति का असर भारत-नेपाल सीमा पर साफ दिख रहा है। बनबसा बाजार चंपावत जिले में स्थित है और नेपाल के महेंद्रनगर से सटा हुआ है। यह बाजार दैनिक आवश्यकताओं जैसे नमक, तेल, चीनी, मसाले, परचून, सब्जी, गुड़ आदि के लिए नेपाली ग्राहकों का प्रमुख केंद्र है।
इसके अलावा, कपड़े, हार्डवेयर, मोटर पार्ट्स, दवाइयां और अन्य महत्वपूर्ण सामान भी यहां से नेपाल निर्यात होते हैं। सामान्य दिनों में बाजार नेपाल के हजारों ग्राहकों से गुलजार रहता है, लेकिन अब नेपाली ग्राहक न आने से 90-95 प्रतिशत दुकानें बंद पड़ी हैं। केवल 10 प्रतिशत स्थानीय भारतीय ग्राहकों पर निर्भरता बची है। व्यापारी दिन में ही दुकानों पर खाली बैठे हैं या गद्दियों पर सो रहे हैं। मीना बाजार पूरी तरह धराशायी हो चुका है, जहां कई दुकानदार शाम 4 बजे ही घर लौट जाते हैं।
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स्थानीय व्यापार मंडल के अनुसार, बनबसा का कारोबार पूरी तरह नेपाल पर आश्रित है। सामान्यतः दैनिक व्यापार 60-70 लाख रुपये तक होता था, जो अब घटकर मात्र 1-2 लाख रह गया है। इससे आर्थिक संकट गहरा गया है। व्यापारियों की चिंता दशहरा और दीपावली जैसे प्रमुख त्योहारों को लेकर है। नेपाल में दशहरा सबसे बड़ा त्योहार है, जब बनबसा बाजार में प्रतिदिन 2.5 से 3 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। यदि स्थिति यूं ही बनी रही, तो त्योहारों पर भी असर पड़ेगा और व्यापारियों की जीविका खतरे में पड़ जाएगी। 1960 से यहां व्यापार चला आ रहा है, लेकिन कोविड काल के बाद यह पहली बार इतना बुरा दौर आया है। नेपाली व्यापारियों के साथ लूटमार की घटनाओं से उनका कारोबार भी प्रभावित हुआ है, जिसका खामियाजा भारतीय पक्ष को भुगतना पड़ रहा है।
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व्यापार मंडल अध्यक्ष भरत भंडारी ने कहा, "नेपाल में स्थिति विषम है। हम 1960 से यहां व्यापार कर रहे हैं। यहां का 90 प्रतिशत कारोबार नेपाल पर निर्भर है। आंदोलन के कारण सब ठप हो गया। नेपाल और हमारा व्यापार आपस में जुड़ा है। वहां लूटमार से नेपाली व्यापारी पीछे हट गए। हमने कोविड जैसी चुनौतियां देखी हैं, लेकिन यह तनाव भरा है। दशहरा-दीपावली पर बिक्री होती है, यदि यूं ही चला तो सब शून्य हो जाएगा। हमारी जीविका यही है।"
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महामंत्री अभिषेक गोयल ने आईएएनएस से बातचीत में बताया, "बनबसा का व्यापार नेपाल पर आश्रित है। बॉर्डर क्षेत्र के बाजार सीमा पर निर्भर रहते हैं। दैनिक 60-70 लाख का व्यापार अब 1-2 लाख पर सिमट गया। आर्थिक नुकसान हो रहा है। उम्मीद है जल्द हालात सामान्य हों, ताकि रोटी-बेटी का संबंध फिर मजबूत हो।"
व्यापारी पंकज कुमार अग्रवाल ने कहा, "हालात बहुत खराब हैं। दुकान में एक ग्राहक भी नहीं। हमारा व्यापार नेपाल पर निर्भर है। वहां की स्थिति का असर यहां पड़ रहा। ईश्वर से प्रार्थना है कि जल्द सामान्य हो, ताकि व्यापार तेज हो।"
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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