प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से लेकर सीएम योगी के शहर गोरखपुर तक में आम चुनाव से ऐन पहले वादों की पटरी पर मेट्रो को सरपट दौड़ा दिया गया था, लेकिन अब यह पटरी से उतर गई है। जून में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष आवास और शहरी नियोजन विभाग के अधिकारियों ने जो बातें रखीं, उसके बाद साफ हो गया है कि वाराणसी और गोरखपुर में मेट्रो चलाना संभव नहीं है। अब मेट्रो कार्पोरेशन लाइट मेट्रो, एयरबस या फिर रोप-वे का विकल्प दे रहा है। बीते 12 जुलाई को गोरखपुर और वाराणसी के आला अफसरों के साथ लखनऊ में मेट्रो के विकल्प की संभावनाएं तलाशी जानी थीं, लेकिन बैठक में अफसर ही नहीं पहुंचे।
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पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पूर्व मुख्यमंत्रीअखिलेश यादव ने मेट्रो का सपना वर्ष 2015 में ही दिखाया था। सपा सरकार में पांच करोड़ रुपये खर्च कर रेल इंडिया टेक्निकल व इकोनामिक सर्विसेज (राइट्स) ने 13 हजार करोड़ रुपये का डीपीआर तैयार कर दिसंबर 2016 में ही केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेज दिया था। मेट्रो को 22 किमी भूमिगत और 7.4 किमी तक एलीवेटेड (ऊपरगामी) लाइन पर दौड़ाने की डिजाइन बनी। केंद्र सरकार ने सपा सरकार में बने प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
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अक्टूबर, 2017 में तय हुआ कि गोरखपुर, वाराणसी समेत यूपी के सात शहरों की डीपीआर नई मेट्रो नीति के आधार पर बनेगी। राइटस को नए सिरे से गोरखपुर और वाराणसी में डीपीआर तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। आम चुनाव से ऐन पहले मेट्रोमैन श्रीधरन की देखरेख में हुए सर्वे के बाद दोनों शहरों में मेट्रो के सपने को पंख लग गए। लेकिन, पिछले जून महीने में मुख्यमंत्री की मौजूदगी में आवास एवं शहरी नियोजन विभाग की बैठक में वाराणसी, गोरखपुर समेत सात शहरों में मेट्रो के संचालन पर चर्चा के निष्कर्ष निराश करने वाले हैं।
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दरअसल, राइटस के सर्वे के बाद साफ हो गया कि गोरखपुर और वाराणसी में मेट्रो की संभावना नहीं है। अलबत्ता, रोप-वे, लाइट मेट्रो या एयरबस के विकल्प को तलाशा जा सकता है। राइट्स ने अपने सर्वे में वाराणसी की भौगोलिक स्थिति को मेट्रो के लिए अनफिट बताया है तो वहीं गोरखपुर में सवारी की किल्लत बताकर मेट्रो की जरूरत को खारिज कर दिया है। सर्वे रिपोर्ट से साफ है कि दोनों शहरों में मेट्रो चलाना घाटे का सौदा है।
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गोरखपुर के जिलाधिकारी के बिजयेन्द्र पाण्डियन का कहना है कि12 जुलाई को लखनऊ में मेट्रो कार्पोरेशन की अहम बैठक थी। इसमें लाइट मेट्रो (दो बोगी वाली मेट्रो) प्रोजेक्ट पर सहमति की उम्मीद थी। अब बैठक 24 जुलाई के बाद प्रस्तावित है। कांग्रेस के पूर्वांचल संगठन प्रभारी अजय कुमार लल्लू का कहना है कि चुनावी लाभ के लिए सीएम और पीएम के शहर में पिछले चार वर्षों से मेट्रो कागजों में दौड़ाई जा रही है। 10 करोड़ से अधिक खर्च करने के बाद मेट्रो को खारिज करना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
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जब मेट्रो की फिजिबिलिटी नहीं थी तो गोरखपुर और वाराणसी के लोगों को मेट्रो का सपना नहीं दिखाया जाना चाहिए था। गोरखपुर के पूर्व मेयर पवन बथवाल कहते हैं कि गोरखपुर में सिटी बस चलाने की योजना एक दशक से चल रही है। जब इलेक्ट्रिक बस नहीं चला पा रहे तो मेट्रो का सपना दिखना गलत है। सपा सरकार में मंत्री रहे राधेश्याम सिंह कहते हैं कि अखिलेश यादव ने लखनऊ में मेट्रो की सौगात दी। वाराणसी में मेट्रो के डीपीआर को केंद्र द्वारा इसलिए खारिज कर दिया गया कि कहीं इसका श्रेय सपा को न मिल जाए।
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मेट्रो चलाने को लेकर गोरखपुर और वाराणसी में राइट्स ने कम्प्रेहेन्सिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) तैयार किया था। इसमें अगले 20 साल की जनसंख्या और यातायात की जरूरतों को लेकर सर्वे हुआ था। गोरखपुर में पिछले वर्ष मई महीने में प्रस्तुत रिपोर्ट में ही मेट्रो को खारिज कर लाइट मेट्रो की आवश्यकता बताई गई थी। रिपोर्ट में साफ था कि मेट्रो की जरूरत भर की सवारी की उपलब्धता नहीं है। वहीं वाराणसी में राइट्स के कम्प्रहेंसिव मोबिलिटी प्लान में रोप-वे और गंगा- वरुणा में जल परिवहन पर जोर दिया गया था। राइट्स की तरफ से वरुणा के दोनों तरफ रिवर फ्रंटपर रोप-वे चलाने का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन पीएम और सीएम के शहर में मेट्रो को खरिज करने वाली रिपोर्ट को जिम्मेदार ठंडे बस्ते में डाले रहे।
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वाराणसी में प्रस्तावित डीपीआर में मेट्रो के दो कॉरिडोर हैं। पहला, बाबतपुर एयरपोर्ट से लेकर वाराणसी कैंट स्टेशन और बीएचयू तक तथा दूसरा, सारनाथ, काशी रेलवे स्टेशन और फेरी सर्विस के लिए प्रस्तावित खिड़किया घाट होते हुए मुगलसरासय तक। दोनों कॉरिडोर पर मेट्रो दौड़ाने की लागत करीब 13 हजार करोड़ आंकी गई है। वहीं गोरखपुर में प्रस्तावित रूट पर दो बोगियों वाले लाइट मेट्रो को चलाने का प्रस्ताव है। पहला कॉरिडोर श्याम नगर से सूबा बाजार तक 16.95 किमी का होगा। इसमें 16 स्टेशन बनाए जाएंगे। वहीं गुलरिहा से कचहरी तक 10.46 किमी रूट पर 11 मेट्रो स्टेशन प्रस्तावित हैं। इस पर राइट्स ने 4800 करोड़ रुपये खर्च का आंकलन किया है।
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