दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कथित तौर पर नोटों की गड्डियां मिलने से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। अधिवक्ता मैथ्यू नेदुम्पारा द्वारा दाखिल इस याचिका में दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
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भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से संपर्क करने को कहा है ताकि मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सके। याचिका में यह भी कहा गया है कि इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन जजों की समिति बनाने का कोई औचित्य नहीं है और इसकी जांच पुलिस को करनी चाहिए।
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याचिका में न्यायपालिका के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार रोकने के लिए प्रभावी और सार्थक कार्रवाई की जरूरत बताई गई है। इसके तहत सरकार को न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 को दोबारा लाने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो पहले ही लैप्स हो चुका है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखने के लिए निष्पक्ष जांच तथा कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
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इसके साथ ही यह मामला संसद से सड़क तक चर्चा का विषय बन गया है। खासकर विपक्ष के नेताओं ने इस मामले को काफी जोर-शोर से उठाया है, उनकी मांग है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस.एन. ढींगरा ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि अगर यह बरामदगी वास्तविक है, तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देना चाहिए था।
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जस्टिस ढींगरा ने कहा, "यह भ्रष्टाचार का एक ज्वलंत उदाहरण है। हमारी न्यायपालिका में कितना भ्रष्टाचार है, आप इसे इस मामले से समझ सकते हैं। इसके अलावा, कोई नहीं जानता कि और कितने जज हैं, जिनके पास ऐसी नकदी होगी।" उन्होंने यह भी कहा कि जज होने का मतलब यह नहीं है कि वह कानून से ऊपर हैं। पुलिस को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और केवल उनका ट्रांसफर करना समस्या का हल नहीं है।
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उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवासीय बंगले में आग लगने से एक बड़ा खुलासा हुआ था। इस घटना ने न्यायिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया था। जज के घर से भारी मात्रा में नोटों की अधजली गड्डियों की बरामदगी हुई थी। इस घटना ने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को भी तत्काल कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। इस मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया।
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