प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में शनिवार दोपहर 2 बजे नागरिक समाज की ओर से आयोजित होने वाले 'मतदाता अधिकार सम्मेलन' को पुलिस ने रोक दिया। यह सम्मेलन मैदागिन स्थित 'पराड़कर स्मृति भवन' में होना था। कथित 'वोट चोरी' के खिलाफ यह 'मतदाता अधिकार सम्मेलन' रखा गया था। आयोजन का मकसद हाल ही में बिहार में हुए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर चर्चा करना भी था, जिसे लेकर कई संगठन और नागरिक समाज समूह सवाल उठा रहे हैं।
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सम्मेलन स्थल पर पहुंचे लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने कार्यक्रम को यह कहते हुए रुकवा दिया कि इसके लिए थाने से इजाजत नहीं ली गई थी। इस दौरान पुलिस ने 'पराड़कर स्मृति भवन' को बंद करा दिया और बाहर बैरिकेडिंग लगा दी।
कार्यक्रम स्थल पर मौजूद 'डेमोक्रेटिक चरखा' के सीईओ आमिर अब्बास ने 'नवजीवन' से बातचीत में बताया कि मौके पर मौजूद एएसआई ने उन्हें कहा कि अनुमति न होने के कारण सम्मेलन को रोक दिया गया है। लेकिन बाद में जब आमिर अब्बास ने डीएसपी डॉ. अतुल त्रिपाठी से बात की तो उन्होंने बताया कि भवन मालिक ने खुद ही अपनी इच्छा से कार्यक्रम रद्द किया और पुलिस को बुलवाया।
यहां पर दोनों अधिकारियों के बयानों में साफ विरोधाभास दिखाई दिया। हालांकि, 'पराड़कर स्मृति भवन' के मालिकों और सम्मेलन के आयोजकों ने इस मामले में कोई आधिकारिक टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
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इस सम्मेलन को कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत संबोधित करने वाली थीं। इसके अलावा विद्या आश्रम के संस्थापक सनील सहस्रबुद्धे और 'पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज' (PUCL) के बिहार महासचिव सरफराज भी इसमें शामिल होने वाले थे।
लेकिन पुलिस की कार्रवाई के चलते सम्मेलन आयोजित नहीं हो पाया और मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती कर लोगों को वहां से हटा दिया गया।
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बिहार में हाल ही में हुए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर विवाद खड़ा हुआ है। नागरिक समाज संगठनों ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में बड़ी संख्या में लोगों के नाम वोटर सूची से हटाए गए हैं।
PUCL और ‘'डेमोक्रेटिक चरखा' ने पटना के स्लम इलाकों में एक सर्वेक्षण भी किया था। इसमें करीब 300 घरों में जाकर लोगों से बातचीत की गई। रिपोर्ट में सामने आया कि कई नागरिकों का नाम, जरूरी दस्तावेज जमा करने के बावजूद, मतदाता सूची से गायब है।
यही नहीं, PUCL ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर SIR की प्रक्रिया को 'मनमानी और असंवैधानिक' करार दिया। संगठन ने मांग की थी कि निर्वाचन आयोग पारदर्शिता बरते और जिन लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, उनकी बूथ-वार जानकारी सार्वजनिक करे।
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आयोजकों के मुताबिक, यह सम्मेलन आम नागरिकों को जागरूक करने और SIR जैसी प्रक्रियाओं में हो रही गड़बड़ियों पर चर्चा के लिए रखा गया था। लेकिन पुलिस और भवन मालिकों की आपत्तियों के चलते यह आयोजन रुक गया।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मतदाता अधिकार और पारदर्शिता पर खुलकर चर्चा करना भी अब मुश्किल होता जा रहा है?
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