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POSH कानून के तहत नहीं आएंगे राजनीतिक दल, सुप्रीम कोर्ट ने दायरे में लाने की मांग वाली याचिका खारिज की

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों पर पॉश अधिनियम लागू करने से भानुमति का पिटारा खुल जाएगा और यह धमकाने का एक साधन बन जाएगा।

POSH कानून के तहत नहीं आएंगे राजनीतिक दल, सुप्रीम कोर्ट ने दायरे में लाने की मांग वाली याचिका खारिज की
POSH कानून के तहत नहीं आएंगे राजनीतिक दल, सुप्रीम कोर्ट ने दायरे में लाने की मांग वाली याचिका खारिज की फोटोः सोशल मीडिया

सुप्रीम कोर्ट ने पंजीकृत राजनीतिक दलों को पॉश अधिनियम यानी कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के दायरे में लाने के अनुरोध वाली याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को पोश अधिनियम के अधीन करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और वे ब्लैकमेल का साधन बन जाएंगे।

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याचिकाकर्ता योगमाया एम जी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों पर पॉश अधिनियम लागू करने से भानुमति का पिटारा खुल जाएगा और यह धमकाने का एक साधन बन जाएगा।

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पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘‘आप राजनीतिक दलों को कार्यस्थल के बराबर कैसे मान सकते हैं? जब कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है, तो वह रोजगार नहीं होता। यह कोई नौकरी नहीं है, क्योंकि वे अपनी इच्छा से और बिना किसी पारिश्रमिक के राजनीतिक दलों में शामिल होते हैं। राजनीतिक दल कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध कानून के दायरे में कैसे लाए जा सकते हैं?’’

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शीर्ष अदालत 2022 के केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि कर्मचारी-नियोक्ता संबंध के अभाव में राजनीतिक दलों पर आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) गठित करने की कोई बाध्यता नहीं है। शीर्ष अदालत ने पूर्व में भी इसी तरह के अनुरोध वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। बता दें कि पोशअधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाना और एक सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना है।

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