महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार बन चुकी है। महाराष्ट्र सरकार और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना हमला बोला है। सामना में कहा गया है कि देवेंद्र फडणवीस लंगड़े घोड़े पर सवार होकर आए हैं, ज्यादा दिन टिक नहीं पाएंगे।
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सामना में कहा गया कि बीजेपी समर्थित शिंदे गुट की सरकार ने विधानसभा में बहुमत परीक्षण जीत लिया है। इसमें खुशी या दुख हो, ऐसा कुछ नहीं है। जिन परिस्थितियों में शिंदे सरकार बनी है उसके पीछे के प्रेरणास्थलों को देखें तो महाराष्ट्र में दूसरा कुछ होगा इसका विश्वास नहीं था। हिंगोली के विधायक संतोष बांगर विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव तक शिवसेना के पक्ष में खड़े थे। 24 घंटों में ऐसा क्या हुआ कि विश्वास मत प्रस्ताव के समय ये ‘निष्ठावान’ शिंदे कैंप में शामिल हो गए। शिवसेना में रहने की वजह से इस निष्ठावान विधायक का हिंगोली की जनता ने भव्य स्वागत किया था।
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वही बांगर सोमवार को शिंदे गुट में भाग गए इसलिए विश्वास सिर्फ पानीपत में गिरा था ऐसा नहीं है, बल्कि प्रत्यक्ष महाराष्ट्र में भी कई ‘विश्वासराव’ भाग गए। बहुमत परीक्षण के समय बीजेपी समर्थित शिंदे समूह को 164 विधायकों ने समर्थन दिया और विरोध में 99 मत पड़े। देवेंद्र फडणवीस ने बहुमत परीक्षण सफल बनानेवाली अदृश्य शक्तियों का आभार माना है।
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सामना में कहा गया है कि शिंदे कितने मजबूत, महान नेता हैं इस पर उन्होंने भाषण दिया, परंतु फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से रोकनेवाली अदृश्य शक्ति कौन है? यह सवाल महाराष्ट्र के समक्ष खड़ा है। विधानसभा में बीजेपी और शिंदे गुट ने विश्वास मत प्रस्ताव पास करा लिया, यह चुराया हुआ बहुमत है। यह कोई महाराष्ट्र की 11 करोड़ जनता का विश्वास नहीं है। शिंदे गुट पर विश्वास व्यक्त करने के दौरान बीजेपी के विधायकों का भी दिमाग विचलित हो गया होगा। फडणवीस द्वारा दिए गए अभिनंदन भाषण के दौरान कर्ज मुक्त होने जैसा सीधे-सीधे उनके चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा था। मैं फिर आया और औरों को भी साथ लेकर आया, ऐसा बयान इस मौके पर देवेंद्र फडणवीस ने दिया, जो कि मजेदार है। जिस तरह से वे आए, वह उनके सपने में भी नहीं रहा होगा। पहले के ढाई साल वे आए ही नहीं और अभी भी दिल्ली की जोड़-तोड़ से वे लंगड़े घोड़े पर बैठे हैं।
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एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं, ये उन्हें भूलना नहीं चाहिए। महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हुआ इसमें सिद्धांत, नैतिकता और विचारों का लवलेश भी नजर नहीं आता है। हम ही बालासाहेब ठाकरे के शिवसैनिक, ऐसा एहसास कराकर करीब चालीस लोग विधिमंडल से बाहर निकलते हैं।
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पार्टी के आदेश को नजरअंदाज करके मतदान करते हैं। न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करते हैं, ऐसे गैरकानूनी लोगों के समर्थन से सरकार स्थापित करना और उस सरकार में दूसरे क्रमांक का पद स्वीकार करके अपने से कनिष्ठ नेता की प्रशंसा करना, इसी को फडणवीस की राजनीतिक प्रतिष्ठा का लक्षण समझा जाए क्या? सत्ता का अमरपट्टा कोई भी साथ लेकर नहीं आया है। शिंदे की सरकार इसी तरह की है। सूरत, गुवाहाटी, गोवा से वो सरकार किसी कंकाल की तरह बीजेपी की एंबुलेंस में ही अवतरित हुई। बहुमत परीक्षण जीतने के कारण अगले छह महीने इस सरकार को खतरा नहीं है, ऐसा जिन्हें लगता है वे भ्रम में हैं। बीजेपी के लोग ही इस सरकार को पूर्व निर्धारित अनुसार नीचे गिराएंगे और महाराष्ट्र को मध्यावधि चुनाव की खाई में धकेलेंगे।
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शिंदे के बागी गुट को शुद्ध मकसद से सत्ता पर बैठाने जितना इन लोगों का मन बड़ा नहीं है। 106 विधायकों का मुख्यमंत्री नहीं बनता और ३९ बागियों का मुख्यमंत्री बन जाता है। इसमें गोलमाल है, ऐसी जो चेतावनी पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने दी, इसकी गंभीरता शिंदे गुट में गए लोगों को ध्यान में आज नहीं आएगी क्योंकि उनकी आंखें बंद हैं। लेकिन जब आएगी तब देर हो चुकी होगी। शिवसेना के विरोध और महाराष्ट्रद्रोह इन सूत्रों के अनुसार शिंदे का जीर्णोद्धार हुआ है इसलिए शिंदे के साथ गए विधायकों का भविष्य अंधकारमय है। शिंदे के कहे अनुसार शिवसेना-भाजपा ‘युति’ के मुख्यमंत्री होने की बात, जानबूझकर लोगों में भ्रम फैलाने के लिए कही जा रही है।
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