
देशभर के अलग-अलग हिस्सों में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के दौरान बूथ लेवल अफसरों को मिल रही धमकियों और असहयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और राज्य सरकारों, दोनों को कड़ी चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा कि अगर प्रशासन और सरकारें इस संवैधानिक जिम्मेदारी में सहयोग नहीं करेंगी, तो स्थिति “अराजकता” की ओर बढ़ सकती है।
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मंगलवार को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने PTI की उन रिपोर्टों पर चिंता जताई, जिनमें बताया गया था कि कई राज्यों, खासतौर पर पश्चिम बंगाल में BLOs को धमकाया जा रहा है और उनके काम में रुकावटें खड़ी की जा रही हैं।
बेंच ने चुनाव आयोग से कहा, “ऐसे सभी मामलों की जानकारी हमें दें, जरूरत पड़ी तो हम आदेश जारी करेंगे।”
चुनाव आयोग ने जवाब में बताया कि हालात बिगड़ते रहे तो उसे पुलिस बल को ड्यूटी पर लेने जैसा कदम उठाना पड़ेगा। EC ने कहा कि संविधान हमें पूरी ताकत देता है।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया कि SIR के दौरान BLOs को धमकाने या रोकने वालों पर कार्रवाई करने की पूरी संवैधानिक शक्ति उसके पास है, और अगर जरूरत पड़ी तो कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस की तैनाती भी की जा सकती है।
कोर्ट ने आयोग से स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह राज्य सरकारों की ढिलाई को सख्ती से संभाले, ताकि मतदाता सूची संशोधन का काम समय पर और बिना किसी दबाव के पूरा हो सके।
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इससे पहले CJI सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने BLOs के अत्यधिक कामकाज पर गंभीर टिप्पणी की थी।
बेंच ने कहा कि कई BLOs तनाव, भारी कार्यभार और दबाव की शिकायतें कर रहे हैं, और कुछ मामलों में मौतों तक की बात सामने आई है।
अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया था कि तुरंत अतिरिक्त कर्मियों की तैनाती करें, BLOs के काम के घंटे कम करें और जहां उचित हो, व्यक्तिगत आधार पर छूट भी दी जाए।
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चुनाव आयोग लगातार यह दावा करता रहा है कि SIR एक संवैधानिक दायित्व है और सटीक, अद्यतन मतदाता सूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रीढ़ है। आयोग का कहना है कि मतदाता सूची की “सफाई” जरूरी है, ताकि फर्जी नाम हट सकें और वास्तविक मतदाता शामिल हो सकें।
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सुप्रीम कोर्ट में दर्ज कई याचिकाओं और जनहित याचिकाओं ने SIR की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार-
भारी दस्तावेजी मांग,
कम समयसीमा,
और घर–घर सत्यापन
इन सबकी वजह से गंभीर विस्थापन और व्यापक मतदाता वंचना का खतरा है।
उनका कहना है कि नई प्रक्रिया पुराने नियमों से अलग है। कई मामलों में “नागरिकता परीक्षा” जैसा बोझ बन जाती है और मतदाता का नाम हटाने से पहले उचित नोटिस और प्रक्रिया भी सुनिश्चित नहीं करती।
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24 जून को चुनाव आयोग ने SIR की शुरुआत की थी। पहला चरण बिहार से हुआ, क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे। इसके बाद आयोग ने संकेत दिया कि अन्य राज्य और केंद्रशासित प्रदेश भी क्रमवार इस प्रक्रिया में शामिल किए जाएंगे।
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