
उत्तराखंड में निजी संस्थाओं द्वारा वन भूमि पर कब्जे के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ा रुख अपनाया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य प्रशासन और वन विभाग पर गंभीर सवाल खड़े किए।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि यह अत्यंत चौंकाने वाला है कि पूरे घटनाक्रम की जानकारी होते हुए भी राज्य के अधिकारी मूकदर्शक बने हुए हैं। इस मामले में कोर्ट ने फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी गठित करने के आदेश दिए हैं।
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मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान तल्ख तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे लिए यह बेहद चौंकाने वाला है कि उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारियों की आंखों के सामने वन भूमि पर कब्जा हो रहा है और वे मूक दर्शक बने बैठे हैं। इसलिए हम इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हैं।
कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को तत्काल फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी गठित करने के आदेश दिए हैं। यह समिति कथित कब्जों की वास्तविक स्थिति, संबंधित संस्थाओं की भूमिका, प्रशासन के दायित्व और लापरवाही की जांच करेगी।
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अदालत ने स्पष्ट लहजे में कहा कि तथ्य-जांच समिति सीधे सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट में वन भूमि के कब्जे, नुकसान और प्रशासनिक विफलताओं का पूरा ब्यौरा होगा। इसके अलावा, जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय की जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वन भूमि पर अतिक्रमण को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। निजी संस्थाओं या निजी व्यक्तियों द्वारा वन क्षेत्र का व्यावसायिक या अवैध उपयोग संवैधानिक और पर्यावरणीय दोनों मानकों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई सोमवार के लिए तय की है। तब तक समिति के गठन की प्रगति और प्रशासन की प्रतिक्रिया अदालत के सामने रखी जाएगी।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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