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भीख मांगने वालों को लेकर भी वादे से मुकर गई केंद्र सरकार, हाईकोर्ट में कह दिया- ऐसा कोई इरादा नहीं

केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में कहा था कि वह भीख मांगने वालों के पुनर्वास के लिए इसे अपराध के दायरे से अलग करने वाला एक विधेयक लाएगी। लेकिन बाद में केंद्र सरकार अपने वादे से मुकर गई और उसने कोर्ट को सूचित किया कि उसके पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।

फोटो : Getty Images
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इस माह भारतीयों द्वारा भीख मांगने से संबंधित दो रिपोर्टें सामने आईं। पहली, भारतीय रेलवे ने संकेत दिया कि वह रेलवे अधिनियम से उस दंडात्मक प्रावधान को हटाने की योजना बना रहा है जो रेलवे पुलिस को भिखारियों को एक वर्ष की जेल या 2000 रुपये के जुर्माने या दोनों के दंड के साथ गिरफ्तार करने की अनुमति देता है। दूसरी रिपोर्ट सऊदी अरब के जेद्दा से आई जहां 450 भारतीयों को सड़क पर भीख मांगने पर हिरासत में ले लिया गया। वीडियो क्लिप में उनमें से कुछ फूट-फूटकर रोते दिखाई दिए। महामारी के कारण काम से हटा दिए गए एक भारतीय को यह कहते सुना जा सकता है, “हमने देखा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और श्रीलंका के श्रमिकों को उनके राजनयिक मिशन कैसे वापस अपने देश ले जा रहे हैं लेकिन हम यहां फंसकर रह गए हैं।”

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वैसे तो भारत में भीख मांगने पर रोक लगाने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है लेकिन दिल्ली समेत कम-से-कम 22 राज्यों में सार्वजनिक रूप से भीख मांगने के खिलाफ नियम बनाए गए हैं। ये राज्य पुलिस को अधिकार देते हैं कि वे भिखारियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल या फिर डिटेंशन सेंटर भेज दें। कुछ राज्यों में भिखारियों को देखते ही भगा दिया जाता है तो कुछ राज्यों में उन्हें निर्माण स्थलों-जैसी जगहों पर मुफ्त में काम पर लगा दिया जाता है। ये नियम गरीबों को परेशान करने के लिए बनाए गए हैं। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 में तीन से दस साल तक हिरासत में रखने के दंड का प्रावधान है।

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बेसहारा और बेघर, खानाबदोश समुदायों के लोगों, सड़क पर करतब दिखाने वालों और प्रवासी मजदूरों को नियमित रूप से परेशान किया जाता है और उनसे जबरन वसूली की जाती है। उन्हें धमकाया जाता है कि अगर वे गिरफ्तारी से बचना चाहते हैं तो पैसे देने होंगे।

हर्ष मंदर के नेतृत्व में लंबी लड़ाई और कॉलिन गोंजाल्वेज के दमदार तर्क के बाद 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। अदालत ने कहा, “लोग सड़कों पर भीख इसलिए नहीं मांगते हैं कि वे ऐसा करना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता।” अदालत ने यहां तक कहा कि, “राज्य अपने नागरिकों को एक सभ्य जीवन देने के अपने दायित्व से पीछे नहीं हट सकते और जिंदा रहने के लिए जरूरी चीजों के लिए भीख मांग रहे लोगों को गिरफ्तार करके, हिरासत में लेकर और उन्हें जेल में डालकर ऐसे लोगों की तकलीफ को और बढ़ा नहीं सकते।”

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अदालत का यह आदेश नौकरशाही से सामाजिक कार्यकर्ता बने हर्ष मंदर और सरोकारी वकील कॉलिन गोंजाल्वेज की ओर से लड़ी गई लंबी लड़ाई के बाद आया। मंदर कहते हैं, “भीख मांगने पर रोक लगाने वाला कानून देश के उन गरीब और निराश्रितों के खिलाफ सर्वाधिक दमनकारी कानूनों में से एक है जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं।” तब केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा था कि वह ऐसे लोगों के पुनर्वास के उद्देश्य से भीख मांगने को अपराध के दायरे से अलग करने वाला एक विधेयक लाएगी। हालांकि उसके बाद केंद्र सरकार अपने वादे से मुकर गई और उसने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि भीख मांगने को गैर-आपराधिक बनाने का उसके पास कोई प्रस्ताव नहीं है।

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केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा और वकील हर्ष आहूजा ने कहा, “हम इसे (भीख मांगना) गैरआपराधिक नहीं बना रहे। इसका इरादा छोड़ दिया गया है। केंद्र सरकार ने भीख मांगने पर कोई कानून नहीं बनाया है और राज्यों के पास शक्ति है कि वे इस तरह का कदम उठा सकें।” दूसरे शब्दों में, सड़कों पर बड़ी संख्या में भीख मांगने वाले लोगों की ओर से केंद्र सरकार ने अपनी आंखें मूंद ली हैं और सारा दारोमदार राज्यों पर छोड़ दिया है।

अकेले दिल्ली में आधिकारिक तौर पर बेघरों की संख्या लगभग 50,000 है। वैसे, यह संख्या इसका तीन गुना तक हो सकती है और ये वे लोग हैं जिन्हें किसी भी बड़े आपराधिक वारदात या किसी वीआईपी की यात्रा के दौरान पुलिस वाले उठाकर सीखचों के पीछे डाल देते हैं।

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आइए, जरा देखें कि कानून के मुताबिक भीख मांगने को कैसे परिभाषित किया गया है:

  • सार्वजनिक स्थान पर पैसे, कपड़े या अन्य चीजों के लिए याचना करना या इन चीजों को प्राप्त करना, बेशक इसके लिए गाना गाया जाए, नाचा जाए, कोई करतब दिखाया जाए, भविष्य बताया जाए या फिर छोटी-मोटी कोई चीज को बेचकर ही ऐसा किया जा रहा हो।

  • पैसे, कपड़े या अन्य चीजों को प्राप्त करने या इसके लिए याचना करने के उद्देश्य से किसी निजी परिसर में प्रवेश करना।

  • पैसे, कपड़े या किसी अन्य चीज को पाने के लिए घाव, चोट, विकलांगता आदि को दिखाना।

  • जीवन निर्वहन का कोई दिखने वाला साधन न होने पर कोई व्यक्ति सार्वजनिक जगह पर मंडराता हो और जिसे देखकर ऐसा लगता हो कि वह पैसे, कपड़े या किसी और चीज के लिए ही यहां-वहां भटक रहा हो।

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