
आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ गाजियाबाद पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR में अब भारतीय दंड संहिता की धारा 152 को भी जोड़ दी गई है। बता दें कि यह धारा भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कामों को अपराध मानती है। यूपी पुलिस ने पहली धारा 152 BNS और दूसरी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 लगाई है। यूपी पुलिस यह जानकारी इलाहाबाद हाई कोर्ट को दी है।
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क्या है पूरा मामला?
25 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने जांच अधिकारी को अगली सुनवाई तक एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। इस हलफनामे में उन्हें यह साफ-साफ बताना था कि मोहम्मद जुबैर के खिलाफ किन-किन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। कोर्ट में जवाब देते हुए जांच अधिकारियों ने बताया कि एफआईआर में दो नई धाराएं जोड़ी गई हैं।152 भारतीय दंड संहिता (BNS) और दूसरी धारा 66।
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कौन-कौन सी धारा लगी है
गौरतलब है कि मोहम्मद जुबैर के खिलाफ शुरुआत में भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। इन धाराओं में धारा 196 (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), धारा 228 (झूठे सबूत जुटाना), धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य), धारा 356(3) (मानहानि) और धारा 351(2) (आपराधिक धमकी के लिए सजा) शामिल हैं।
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हाई कोर्ट पहुंचे मोहम्मद जुबैर
अब इस मामले में मोहम्मद जुबैर ने एफआईआर रद्द करने और सुरक्षा की मांग करते हुए हाई कोर्ट पहुंच गए हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि उनके सोशल मीडिया पर यति नरसिंहानंद के खिलाफ हिंसा का आह्वान नहीं किया था। उन्होंने केवल पुलिस अधिकारियों को उनकी हरकतों के बारे में सतर्क किया था और जो पहले से वीडियो वायरल हो रहा था। जुबैर ने आगे यह भी कहा कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वीडियो साझा करके कार्रवाई की मांग मानहानि नहीं है।
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