उत्तराखंड की प्रमुख जलधारा और पर्यटन स्थल नैनी झील, अपने पुराने और टूटे-फूटे एयरेशन (ऑक्सीजन सपोर्ट) सिस्टम की वजह से संकट में आ गई है। पिछले 18 सालों से झील को कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन प्रदान करने वाला यह सिस्टम अब पूरी तरह से जर्जर हो चुका है।
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2007 में स्थापना की गई यह तकनीक दो फ्लोमीटर और पाइपलाइन सिस्टम पर आधारित थी, जो जल में ऑक्सीजन संतुलन बनाए रखता था और जलीय जीवन को जीवित रखता था।
इन उपकरणों की उम्र औसतन 5-10 साल मानी जाती है, जो क्रमशः 2017 और 2013 में खत्म हो चुकी है। अब एक फ्लोमीटर में चार और दूसरे में दो पाइप पूरी तरह बंद हो गए हैं, बाकी भी कमजोर हो चुके हैं और कई जगह फटने से ऑक्सीजन रिस रहा है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर तुरंत नया एयरेशन सिस्टम स्थापित नहीं किया गया, तो झील में ऑक्सीजन स्तर और गिर सकता है, जिससे जलीय जीव मरेगें, पानी की गुणवत्ता बिगड़ जाएगी, जिससे तगड़ा झटका लगेगा।
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झील विकास प्राधिकरण के सचिव विजय नाथ शुक्ल के मुताबिक, समस्या को लेकर शासन को प्रस्ताव भेजा गया था, जिसके जवाब शासन को भेजे जा चुके हैं। समाधान जल्द मिलने की उम्मीद है।
जिलाधिकारी वंदना सिंह ने कहा कि तकनीकी एजेंसियों की सहायता से खराब उपकरणों को बदलने या ठीक करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसे जल्द लागू किया जाएगा।
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आइए अब जानते हैं कि आखिर एयरेशन सिस्टम क्या होता है। एयरेशन सिस्टम का मतलब है, पानी में हवा (ऑक्सीजन) मिलाने वाला सिस्टम।
जैसे इंसानों को सांस लेने के लिए हवा चाहिए, वैसे ही पानी में रहने वाले मछली, पौधे और दूसरे जीवों को ऑक्सीजन चाहिए।
कई बार झील, तालाब या टैंक में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
एयरेशन सिस्टम मशीनों, पाइप और पंप के जरिए पानी में बारीक बुलबुले या हवा पहुंचाता है, ताकि पानी में घुली हुई ऑक्सीजन का स्तर बढ़ सके।
इसका इस्तेमाल झीलों, एक्वेरियम, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और मछली पालन में किया जाता है ताकि पानी साफ और जीवों के लिए सुरक्षित रहे।
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