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उत्तराखंड: सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बहाने नाकामियों पर परदा डालने की कोशिश, सभी जिलों में गैर-हिंदू आबादी का सर्वे

उत्तराखंड में भी अगले साल चुनाव है और सरकार की नाकामियां जगजाहिर हैं। ऐसे में उत्तरखांड की पुष्कर धामी सरकार भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण इन नाकामियों पर परदा डालने की जुगत कर रही है। इसी कवायद में सभी जिलों में गैर हिंदू आबादी का सर्वे शुरु कराया गया है।

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Getty Images Vishal Bhatnagar

उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बने अगले 9 नवंबर को 21 साल पूरे हो जाएंगे। स्वाभाविक है, यहां की राजनीति अपने पुराने प्रदेश से प्रभावित रहती है। लेकिन यहां भी बीजेपी को अपने कामकाज के बल पर सत्ता में लौटने की उम्मीद नहीं है। इसीलिए वह यहां भी सांपदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रही है।

रोजगार और आमदनी न होने की वजह से उत्तराखंड से पलायन की बात सब जानते हैं। सबको मालूम है कि गांव-के-गांव इस वजह से खाली हो गए हैं। कई जगह तो इक्का-दुक्का लोग ही बच गए हैं और वह भी किसी मजबूरी में। अभी चुनावों से करीब छह माह पहले बीजेपी सरकार को अचानक ‘दिव्य ज्ञान’ हुआ कि देवभूमि उत्तराखंड में गैर हिन्दू आबादी तेजी से बढ़ रही और ऐसा साजिशन हो रहा है। पुष्कर सिंह धामी सरकार ने आनन-फानन में सभी 13 जिलों के जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर गैर हिन्दू आबादी बढ़ने के कारणों और इसकी पीछे की साजिश पता लगाने के आदेश जारी कर दिए। सरकार की ओर से गैर हिन्दू आबादी के तौर पर मुसलमानों और ईसाइयों को गिना गया है। रुड़की में चर्च पर और पथरी क्षेत्र में समुदाय विशेष के लोगों के घरों पर हुए हमलों से समझा जा सकता है कि बीजेपी-समर्थक इसे कैसे आगे बढ़ाएंगे।

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सरकार का तर्क है कि संत समाज काफी समय से आरोप लगा रहा था कि सनातन धर्म के देवी-देवताओं की पवित्र भूमि और देवस्थानों को ये लोग साजिशन अपवित्र करते हुए जनसांख्यिकी घनत्व में बदलाव कर दे रहे हैं। अगर यह सच होता तो सरकार को पहाड़ी जिलों पर अधिक ध्यान देना चाहिए था क्योंकि पलायन के कारण वहां ही स्थानीय आबादी कम हो रही है। पर, सरकार का ध्यान तीन मैदानी जिलों पर ज्यादा है। इसकी वजह भी है।

राज्य की कुल 70 विधानसभा सीटों में से सीधे तौर पर 30 सीट इन्हीं 3 जिलों और उससे सटे इलाकों में हैं। और ये 30 सीटें एक तरह से सरकार बनने का भविष्य तय करती हैं। इन तीन जिलों में मिश्रित आबादी है। कुमाऊं के उधमसिंह नगर और उससे लगे इलाकों में सिख आबादी बहुतायत में है, पर मुस्लिम आबादी भी ठीकठाक है। देहरादून की 8 और हरिद्वार की 11 विधानसभाओं में ज्यादातर पर गैर हिन्दू आबादी की एकजुटता हार-जीत तय करने में प्रभावी मानी जाती है। बीजेपी का जोर इन इलाकों में हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण करने पर है।

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वैसे, हिन्दू-मुसलमान के नाम पर राजनीति चमकाने की कोशिश हो तो काफी दिनों से रही है। कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर यह मैसेज खूब चला कि 500 करोड़ के फर्जी छात्रवृत्ति मामले पकड़े जाने पर सैकड़ों मदरसे बंद हो गए। यह तो सच है कि इस तरह का घोटाला पकड़ा गया लेकिन इस मामले में गिरफ्तार होने वाले अधिकांश हिन्दू हैं। दरअसल, मदरसों के साथ-साथ तमाम संस्कृत कॉलेज और डिग्री कॉलेज भी इस घोटाले में शामिल पाए गए। अब इस मुद्दे की चर्चा करने को भी कोई तैयार नहीं।

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वैसे, एक और बात सरकार की नीयत पर प्रश्नचिह्न लगाती है। नियम यह है कि मीट की बिक्री कहीं भी तब ही हो सकती है जब वहां स्लॉटर हाउस हो। लेकिन पूरे उत्तराखंड में एक भी स्लॉटर हाउस नहीं है। और तो और, ‘धर्मनगरी’ हरिद्वार तक में सरकारी अनुमति से मांस और शराब की खुली बिक्री हो रही है जबकि वर्ष 1916 में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ हुए समझौते के तहत तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने हरिद्वार के धार्मिक महत्व को देखते हुए नगरपालिका सीमा क्षेत्र में इसकी बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया था। उस समय और उसके बाद की सरकारों में नियमों का सख्ती के साथ पालन हुआ। पर जब बीजेपी सरकार ने नगरपालिका का स्टेटस नगर निगम कर दिया, तब से इस नियम के पालन में भी बदलाव हो गया। यही नहीं, धार्मिक जिलों और स्थानों पर सरकार शराब बिक्री के लाइसेंस भी धड़ल्ले से जारी कर रही है। इन सबसे उसे पवित्रता भंग होने का खतरा नहीं है!

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