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जिनपिंग को नरसंहार के लिए जिम्मेदार ठहराने की उठी मांग, चीन के उइगर समुदाय ने लगाई गुहार

मांग की गई है कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन चीन पर दबाव बनाएं और उइगरों के खिलाफ नरसंहार की जांच के लिए आवश्यक कदम उठाएं। इन अपराधों को अंजाम देने वालों को एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के कठघरे में लाया जाना चाहिए।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

चीन में उइगर तुर्क और अन्य मुस्लिम समुदायों ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से चीन पर दबाव डालने और उइगर लोगों के नरसंहार के कृत्यों की जांच कराने का आग्रह किया है। 'पूर्वी तुर्किस्तान में नरसंहार' शीर्षक वाली रिपोर्ट में चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के बावजूद चीन सरकार अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए उइगर तुर्क और अन्य मुस्लिम समुदायों के उत्पीड़न को जारी रखे हुए है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) व्यवस्थित रूप से उइगरों पर अत्याचार और दबाव बनाकर पहले उन्हें आत्मसात होने के लिए मजबूर कर रही है और फिर उन्हें नष्ट कर दे रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजिंग प्रशासन ने 'नरसंहार की रोकथाम' समझौते का उल्लंघन किया है जिसपर उसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष हस्ताक्षर किया था। रिपोर्ट में कहा गया है, "पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र के सचिव चेन क्वांगू और अन्य अधिकारी इन अपराधों के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह हैं।"

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इस रिपोर्ट को कैंपेन फॉर उइगर्स द्वारा तैयार किया गया है, जो पूर्वी तुर्किस्तान (जिसे चीन में झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र कहा जाता है) में उइगर और अन्य तुर्क लोगों के मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। कैंपेन फॉर उइगर्स ने मांग की है कि क्षेत्र में चीन की नीतियों की निगरानी के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग बनाना आवश्यक है जो इस क्षेत्र में चीन के कार्यों का प्रभावी ढंग से निरीक्षण करने के लिए आवश्यक उपाय करे।

वहीं म्यांमार से पलायन के लिए मजबूर होने वाले अराकानी मुसलमानों के नरसंहार के मामले को गाम्बिया ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाया है। यह मामला गाम्बिया (एक मुस्लिम बहुसंख्यक राष्ट्र) ने इस्लामिक सहयोग संगठन की ओर से दायर किया है। इस संस्था ने रिपोर्ट में कहा है कि इस्लामिक सहयोग संगठन को पूर्वी तुर्किस्तान में हुए नरसंहार के मामले में कार्रवाई करनी चाहिए।

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रिपोर्ट में मांग की गई है कि चीन को सभी मानवाधिकार के उल्लंघन के लिए, खासकर कन्संट्रेशन शिविरों में किए गए उल्लंघनों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुर्भाग्य से, जैसा हम देख रहे हैं, उइगर लोगों का हाल अधिकृत फिलिस्तीन के लोगों जैसा है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय मामला है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, सभी देशों को, विशेष रूप से इस्लामी दुनिया को कदम उठाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है, "यह महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन चीन पर दबाव बनाएं और उइगरों के खिलाफ नरसंहार के कृत्यों की जांच के लिए आवश्यक कदम उठाएं। इन अपराधों को एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग द्वारा आगे लाया जाना चाहिए और इन्हें अंजाम देने वाले अपराधियों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के कठघरे में लाया जाना चाहिए।"

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पूर्वी तुर्किस्तान को चीन में आधिकारिक तौर पर झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र कहा जाता है। यह हाल के वर्षों में मानव अधिकारों के भीषण उल्लंघन की एक जगह बन गया है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यहां आर्थिक, राजनीतिक और भूराजनीतिक हितों के कारण मुस्लिम समुदायों, विशेषकर उइगर तुर्कों पर अत्याचार को बढ़ा रही है। विशेष रूप से यह सब 2014 से शुरू हुआ है। तभी से उइगरों की जातीय पहचान और आबादी को मिटाने के उद्देश्य से व्यवस्थित रूप से इन्हें बहुसंख्यक चीनियों में आत्मसात करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में पूर्वी तुर्किस्तान में जो घटनाएं हुई हैं, वे 1948 में हस्ताक्षर किए गए 'कन्वेंशन ऑन द प्रिवेंशन एंड पनिशमेंट ऑफ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड' में सूचीबद्ध नरसंहार की परिभाषा से पूरी तरह मिलती जुलती हैं।

चीन सरकार ने उइगर मुसलमानों के दैनिक जीवन को नियंत्रित करने के लिए ग्यारह लाख हान चीनी कैडर पूर्वी तुर्किस्तान भेजे हैं। उनका काम उइगर घरों में रहना है। यदि आवश्यक हो तो उनके साथ एक ही बिस्तर साझा करना और उनके दैनिक जीवन के सभी पहलुओं को नियंत्रित करना है। चीन सरकार द्वारा शुरू 'डबल रिलेटिव प्रोग्राम' में हान चीनी कैडर हर दो महीने में कम से कम एक बार इस इलाके की यात्रा करते हैं और लगभग एक सप्ताह तक यहां रहते हैं। प्रवास के दौरान वे लगातार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा का प्रचार-प्रसार करते हैं और लोगों की जासूसी भी करते हैं।

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यह कैडर मुसलमानों को सूअर का मांस खाने और शराब पीने तक पर बाध्य करते हैं जो इस्लाम में हराम है। यदि कोई उइगर हलाल मांस का अनुरोध करता है और शराब नहीं पीता है तो उसे संदिग्ध घोषित कर शिविरों में भेज दिया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस डबल रिलेटिव प्रोग्राम का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि महिलाएं, जिनके पति शिविरों में हैं, उन्हें चीनी कैडरों के साथ एक ही बिस्तर साझा करना होता है।

कैंपेन फार उइगर के कार्यकारी निदेशक रूशन अब्बास का कहना है कि यह स्थिति 'सरकार प्रायोजित सामूहिक दुष्कर्म' की वजह बनी है। युवा उइगर लड़कियों को हान चीनी पुरुषों से शादी करने के लिए मजबूर करना पूर्वी तुर्किस्तान में जनसांख्यिकीय को बदलने की दिशा में एक कदम है। यह चीनी उइगर घरों में स्थायी मेहमान के रूप में रहने आते हैं और वहां की युवा लड़कियों से शादी करते हैं। माता-पिता शादी पर आपत्ति नहीं कर पाते क्योंकि अगर वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें शिविरों में भेज दिया जाता है।

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बीजिंग प्रशासन हान चीनियों को इन विवाहों के लिए धन, रोजगार और मुफ्त घर प्रदान करता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस जबरन विवाह के उम्मीदवारों की भर्ती के लिए कम्युनिस्ट पार्टी फिल्मों, विज्ञापनों और अन्य प्रसारण माध्यमों से सफलतापूर्वक प्रचार प्रसार करती है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किया गया एक अन्य अपराध पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों का जबरन श्रम सुविधाओं में काम करने के लिए चीन में स्थानांतरण है। जिस तरह नाजियों ने यहूदियों को काम करने के लिए मजबूर किया, उसी तरह उइगरों को भी कैदियों जैसी वर्दी में कारखानों में काम करने के लिए भेजा जाता है।

ऑस्ट्रेलिया के स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार की गई उइगर्स फॉर सेल रिपोर्ट में कई खास जानकारियां दी गई हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि 80,000 से अधिक उइगर शिविरों से ले जाए गए और नाइकी, जीएपी और एप्पल जैसी विश्व प्रसिद्ध पश्चिमी कंपनियों के लिए माल का उत्पादन करने के लिए कारखानों में भेजे गए। अपुष्ट आंकड़ों में इन कंपनियों की संख्या को 500 से अधिक बताया गया है।

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