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मतदाता सूची दुरुस्त करना या चुनाव की फिक्सिंग

बिहार में शुरु होने वाले 'विशेष सघन परिशोधन' से कई नई चिंताएं उभरी हैं। ऐसे समय जब बिहार में भारी बारिश की चेतावनी जारी हो चुकी है, हर घर पहुंच कर मतदाता सूची की समीक्षा बहुत संभव नहीं होगी। लेकिन इस समीक्षा में जो होना है, वह और भी बड़ी चिंता का विषय है।

दिल्ली स्थित चुनाव आयोग का मुख्यालय
दिल्ली स्थित चुनाव आयोग का मुख्यालय 

चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को भेजे गए चर्चा के निमंत्रण से विवादों का नया दौर शुरू हो गया है। आयोग यह चर्चा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर उनकी आपत्तियों पर करना चाहता है। जबकि मतदाता सूची और मतदान के आंकड़ों में भारी गड़बड़ियों का हवाला देते हुए कांग्रेस पार्टी मतदान के वीडियो के साथ ही मतदाताओं का ऐसा डेटा मांग रही है जिसका मशीनी आकलन हो सके।

इस टकराव ने एक बार फिर आयोग की तटस्थता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस के एंपावर्ड एक्शन ग्रुप ऑफ लीडर्स एंड एक्सपर्ट यानी ईगल नाम से बनाए गए आठ सदस्यीय समूह ने आयोग से मिलने से तब तक के लिए इनकार कर दिया है जब तक उन्हें यह डेटा और वीडियो नहीं मिल जाते।

याद रहे कि आयोग ने दिसंबर 2024 में नियमों में बदलाव कर दिया था ताकि यह डेटा और दस्तावेज लोगों को उपलब्ध न हो सकें। फिर 18 जून को उसने एक सर्कुलर के जरिये मतदान केंद्रो, स्ट्रांगरूम्स और मतगणना केंद्रों के सीसीटीवी वीडियो नतीजों की घोषणा के 45 दिनों के भीतर नष्ट करने का फैसला सुना दिया। अपवाद तब हो सकता है जब हाईकोर्ट में चुनाव नतीजों को लेकर कोई याचिका लंबित हो। पहले इन्हें एक साल तक नष्ट न करने का प्रावधान था।

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राहुल गांधी ने 21 जून को इसे लेकर एक्स पर काफी तीखी प्रतिक्रिया दी- 'मतदाता सूची? यह मशीन पर आकलन करने वाले फार्मेट में नहीं मिलेगी। सीसीटीवी फुटेज? कानून बदल कर छुपा लिए गए। मतदान के वीडियो और फोटो? अब उन्हें एक साल के बजाय 45 दिन में ही डिलीट कर दिया जाएगा। जिसे जवाब देने हैं, वह सबूत मिटाने में लगा है।'

राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव इसमें एक और बात जोड़ते हैं, 'लोकतंत्र खुलेपन से चलता है। आयोग ने सीसीटीवी वीडियो संभाल कर रखने का समय एक साल से घटाकर 45 दिन कर दिया। इससे सिर्फ लोगों का शक बढ़ा है और चुनाव प्रक्रिया पर विश्वास घटा है।'

राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने बाकायदा यह आरोप लगाया था कि 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में गंभीर गड़बड़ियां हुईं। उन्होंने मतदाता सूची में कुल 40 लाख नाम जोड़ने पर सवाल उठाया। सूची में दरअसल 48 लाख नए नाम जोड़े गए और आठ लाख हटा दिए गए। इसके अलावा 'मतदान के दिन शाम पांच बजे के बाद मतदान में अकथनीय बढ़ोतरी हुई।' शाम पांच बजे तक मतदान का प्रतिशत 58 था जबकि अगले दिन जो आंकड़े मिले, उसमें यह 66 प्रतिशत था।

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कांग्रेस के डेटा एनालिटिक्स विभाग के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती ने आयोग को एक चिट्ठी लिखकर इन अनियमितताओं का जिक्र किया, 'हमने डेटा पेश करके यह दिखाया है कि छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के मुकाबले नए मतदाताओं और पड़ने वाले मतों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई... 40 लाख नए मतदात जोड़े गए और 75 लाख ज्यादा वोट पड़े। मतदाताओं की संख्या में 4.3 फीसद और मतदान में 13 फीसद की बढ़ोतरी हुई। ये आंकड़े महाराष्ट्र के ऐतिहासिक रुझान से मेल नहीं खाते।'

राहुल गांधी ने भी चुनाव आयोग की आलोचना के सुर को बढ़ा दिया है और 'वोटों की चोरी' का आरोप लगाया है। उन्होंने मांग की है कि 'महाराष्ट्र की मतदाता सूची की ऐसी डिजिटल काॅपी दी जाए जिसका मशीनी आकलन हो सके और मतदान के दिन के वीडियो फुटेज भी उपलब्ध कराए जाएं', इसके बाद ही कोई बात हो सकती है। कांग्रेस का कहना है कि बिना बूथ स्तर के फार्म 20 के डेटा और सीसीटीवी वीडियो के कोई भी बात निरर्थक होगी। विपक्ष के लिए इस तरह का डेटा कोई औपचारिकता नहीं है, यह न्यायसंगत ठहराए जाने का आधार है।

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बृहस्पतिवार 26 जून को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस मसले को उठाया। उन्होंने राज्य के पूर्बा मेदनीपुर जिले के तटवर्ती नगर दीघा में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, 'आयोग का निशाना अब बंगाल पर है। खासकर बंगाल के लोगों और विस्थापित मजदूरों पर है।' ममता ने कहा, 'मुख्य चुनाव आयुक्त की योजना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।' वह बिहार की मतदाता सूचियों की विस्तृत पुनःसमीक्षा पर सवाल का जवाब दे रही थीं।  

राहुल गांधी ने चुनाव की निष्पक्षता को लेकर बार-बार चेतावनी दी है, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 को उन्होंने 'हमारी राष्ट्रीय संस्था पर कब्जा जमाकर औद्योगिक स्तर पर की गई हेराफेरी' बताया था। उनका तर्क था कि मतदाता सूचियां और निगरानी वीडियो कोई अतिरिक्त विकल्प नहीं, बल्कि जवाबदेही के औजार हैं। 'ये लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए हैं, जब लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा हो, तो ये ताले में बंद कर के रखने के लिए नहीं हैं।'  उनका आरोप है कि चुनाव आयोग न सिर्फ उन्हें छुपा रहा है बल्कि 'सबूतों को नष्ट भी कर रहा है'। 

एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म यानी एडीआर ने भी यही चिंता व्यक्त की है। 'द वाॅयर' में छपे एक बयान में संगठन के सह-संस्थापक जगदीप छोकड़ आयोग के पारदर्शिता के दावों को खोखला बताते हैं। उनका कहना है कि मशीन द्वारा आकलन लायक डेटा न जारी करना आयोग की विश्वसनीयता को कम करता है। 

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आयोग का सबसे विवादास्पद फैसला चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93 में बदलाव है। दिसंबर 2024 में किया गया यह बदलाव मतदान केन्द्रों के सीसीटीवी फुटेज लोगों को उपलब्ध कराने पर रोक लगाता है।

आयोग ने इसे वोटर की निजता की रक्षा और सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के आधार पर उचित ठहराया है जिसमें अदालत ने कहा था कि वोट न डालने वालों की जानकारी को गुप्त रखा जाए। छोकड़ का कहना है कि निजता महत्वपूर्ण है लेकिन यह पारदर्शिता की कीमत पर नहीं हो सकती। वह कहते हैं, 'आयोग की जिम्मेदारी है कि वह निजता और पारदर्शिता में संतुलन बनाए, निजता को समीक्षा से बचने की ढाल न बनाए।'

महाराष्ट्र का विवाद अब बिहार में एक बड़े संकट के रूप में सामने आता दिख रहा है। आयोग विपक्ष की आपत्तियों पर गंभीरता नहीं दिखा रहा है और उन्हें राजनीति से प्रेरित बता रहा है जिससे लोगों का अविश्वास और गहराया है।

प्रवीण चक्रवर्ती इसे मुक्तसर ढंग से बताते हैं, 'चुनाव आयोग निजी कंपनी नहीं है, यह एक संवैधानिक संस्था है। इसका काम जनता को स्पष्ट तौर पर आंकड़े बताना है, उलझाऊ बातें बनाना नहीं। अगर सब कुछ साफ है, तो इसे सबूतों के साथ साबित कीजिए।' आईएएस और सेना के अधिकारी रह चुके एमजी देवसहायम दो टूक शब्दों में कहते हैं, 'पूर्ण गोपनीयता चुनाव आयोग का नया ट्रेड मार्क है।'

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यह चिंता किसी एक राज्य या एक चुनाव की नहीं है। चुनाव आयोग का बर्ताव यह मौलिक सवाल उठाता है कि उसका काम चुनाव प्रक्रिया की रक्षा है या चुनावी तथ्यों को सार्वजनिक समीक्षा से रोकना।

बिहार में चलाए जा रहे 'विशेष सघन परिशोधन' से कई नई चिंताएं उभरी हैं। वहां अक्तूबर और नवंबर में चुनाव होने हैं और उससे कुछ ही महीने पहले यह कवायद की जा रही है। इसमें बूथ लेवल ऑफिसर 25 जून 2025 से 26 जुलाई 2025 तक घर-घर जाकर मतदाताओं का सच पता लगाएंगे, जबकि यह समय बिहार में मानूसन का होता है।

यह वह समय है जब बिहार के एक बड़े हिस्से के लिए भारी बारिश की नारंगी चेतावनी जारी हो चुकी है। ऐसे में हर घर पहुंच कर मतदाता सूची की समीक्षा बहुत संभव नहीं होगी। लेकिन इस समीक्षा में जो होना है, वह और भी बड़ी चिंता का विषय है। 

इसके दिशानिर्देशों के हिसाब से सभी नए अर्जीदाताओं और 2003 के बाद सूची में नाम दर्ज कराने वाले मतदाताओं को भारतीय नागरिकता का हलफनामा देना होगा- जन्म से नागरिक हैं या बाद में बने। उन्हें इसके सबूत भी देने होंगे- कब और कहां जन्म हुआ और माता-पिता के बारे में भी सबूत। देवसहायम कहते हैं, 'यह तो मूल रूप से लोगों से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहना है। क्या सीएए और एनआरसी को पिछले दरवाजे से लाया जा रहा है'। 

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उन लोगों का क्या होगा, जो ये दस्तावेज नहीं दे पाएंगे? क्या उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे? इसका मतलब होगा बड़े पैमाने पर लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित कर देना। खासतौर पर बिहार जैसे राज्य में जहां जन्म और मृत्यु पंजीकरण अभी भी 75 फीसद से कम है।

जगदीप छोकड़ कहते हैं, ‘किसी का नाम मतदाता सूची से हटाने का एक नियमबद्ध तरीका है। आप नए नियमों से इसे कैसे दरकिनार कर सकते हैं?‘ हालांकि इसका मकसद यह बताया गया है कि इसके जरिये मतदाता सूचियों की सफाई होगी, पर शक यह है कि इससे बिहार में भी वहीं हो सकता है, जिस तरह की गड़बड़ियों का मुद्दा कांग्रेस ने महाराष्ट्र को लेकर उठाया था।

हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में राहुल गांधी ने चेतावनी दी थी, 'महाराष्ट्र में जो मैच फिक्सिंग हुई है, वही अब बिहार में दोहराई जाएगी, या ऐसे किसी भी राज्य में जहां बीजेपी हार रही हो।' आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी यही बात कही है, 'बीजेपी का भांडा फूट चुका है... पूरी दुनिया जानती है कि महाराष्ट्र में चुनाव कैसे जीता गया।'

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