
आपदाएं पंजाब के लिए कोई नई चीज नहीं हैं। मुसीबतें उसके पूरे इतिहास का हिस्सा रही हैं और हर बार उसने इनका मुकाबला पूरे साहस और संकल्प के साथ किया है। इसे समझने के लिए इतिहास में जाने की जरूरत नहीं है, इस समय पंजाब बाढ़ का मुकाबला जैसे कर रहा है वह मुश्किलों से लड़ने की पंजाब की जिजिविशा का सबसे अच्छा उदाहरण है।
बेशक, पंजाब में जो बाढ़ आई है वैसी बाढ़ पंजाब ने इससे पहले कभी नहीं देखी। रावी, व्यास और सतलुज जैसी बड़ी नदियां तो उफान पर हैं ही। हिमाचल और जम्मू कश्मीर से आने वाली नदियां भी अनेक गांवों को जलमग्न कर चुकी हैं। फसलें तबाह हो चुकी हैं, बहुत से पालतू पशु भी बाढ़ की भेंट चढ़ चुके और पंजाबियों का वह समुदाय जिसने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, उसका एक बड़ा हिस्सा इस समय राहत शिविरों में रहने को मजबूर है। उसके बावजूद पंजाब के लोग इन विपरीत हालात का मुकाबला जिस तरह से कर रहे हैं वैसा भी इसके पहले और कहीं नहीं दिखाई दिया।
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कहीं भी बाढ़ आती है तो सबसे पहले सरकार का मुंह देखा जाता है। लेकिन पंजाब ने सरकार के सक्रिय होने का इंतजार नहीं किया। राहत हर तरफ से अपने आप आने लगी। राहत पहुंचाना सिर्फ संकल्प का काम नहीं है। इसके लिए पूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। आमतौर पर ऐसे इन्फ्रास्ट्रक्चर सरकार के पास ही होते हैं। पंजाब में भी शुरू में आम लोगों के पास नहीं थे।
लेकिन बाढ़ आते ही कपूरथला की एक स्टील वर्कशाॅप सक्रिय हुई और ज्यादा राहत सामग्री ले जाने वाली बड़ी नावें वहां बनाई जाने लगीं। इस समय आपको पंजाब में काफी संख्या में सरकारी नावें राहत कार्य में लगी दिख जाएंगी। लेकिन वहां जो लोगों के निजी प्रयास से तैयार नावें दूर दराज फंसे लोगों के पास पहुंच रहीं हैं उनकी संख्या शायद सरकारी से ज्यादा ही होंगी। खालसा एड इंटरनेशनल जैसे संगठन भी सक्रिय हैं। उनके पास राहत का अंतराष्ट्रीय अनुभव तो है ही साथ ही बहुत से जरूरी इक्विपमेंट भी हैं।
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गुरुद्वारों और मंदिरों में लगातार लंगर तैयार हो रहे हैं और लोगों के पास खाना पंहुचाया जा रहा है। जहां बाढ़ पीड़ितों के पास खाना पकाने की व्यवस्थाएं हैं, वहां हर तरह की रसद पहुंच रही है। अपने संसाधनों से लोगों तक मदद पहुंचाने की पंजाब में जो परंपरा है वह इस मौके पर बहुत काम आई है।
मलेर कोटला कस्बे को छोड़ दें तो पंजाब में मुसलमान माइक्रोस्कोपिक माईनारिटी हैं, इसके बावजूद उस समुदाय की तरफ से बड़ी संख्या में मदद जुटाई और लोगों तक पहुंचाई जा रही है। शुरुआत लुधियाना की जामा मस्जिद से हुई। वहां के इमाम उस्मान लुधियानवी ने कई ट्रक राहत सामग्री बाढ़ राहत के लिए भेजी। जालंधर की सुन्नी शाही जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष नईम खान ने न सिर्फ राहत सामग्री भिजवाई बल्कि 5 सितंबर को ईद मिलाद उन नबी के समारोह न करने का फैसला किया। इन कार्यक्रमों के लिए जो बजट रखा गया था, वह भी बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए भेज दिया गया।
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सोशल मीडिया पर आपको ऐसे बहुत से वीडियो मिल जाएंगे जहां जान जोखिम में डालकर बेसहारा पशुओं को न सिर्फ बचाया जा रहा है बल्कि उन तक खाना भी पहुंचाया जा रहा है। आपको बाढ़ग्रस्त पंजाब से कोई ऐसी खबर या रिपोर्ट नहीं दिखेगी जिसमें पीड़ित इंतजार कर रहे हैं और उन तक राहत सामग्री नहीं पहुंच पाई है।
क्रिकेट खिलाड़ी और राज्यसभा सदस्य हरभजन सिंह ने एक वीडियो शेयर किया है जिसका जिक्र जरूरी है। बाढ़ से घिरे एक गांव में राहत सामग्री लेकर कुछ लोग पहुंचते हैं। तभी कहीं दूर से कमर तक पानी में चलता हुआ एक आदमी आता है। उसके एक हाथ में केतली और दूसरे में कुछ गिलास हैं। वह राहत का काम करने वालों के लिए अपने घर से चाय बनाकर लाया है। जो बाढ़ में अपना सब कुछ खो चुके हैं वे संकट के समय भी मेहमानों का खयाल रखने की अपनी परंपरा नहीं भूले हैं। हरभजन सिंह ने कहा कि ‘यही पंजाबियत की भावना‘ है। इस मौके पर पंजाबी मनोरंजन जगत और बाॅलीवुड की सेलेब्रिटीज़ जिस तरह से आगे आई हैं उसका जिक्र भी बहुत जरूरी है।
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पंजाब में सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवान भी राहत कार्य में जुटे हैं। लेकिन ज्यादातर काम अभी भी सरकारी मदद के बिना हो रहा है। मदद के लिए पंजाब सरकार केंद्र का मुंह देख रही है और केंद्र सरकार चुप है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात‘ और फिर पंजाब के मुख्यमंत्री से टेलीफोन पर बात करने से पहले तक किसी भी केंद्रीय मंत्री ने पंजाब की आपदा पर न तो कुछ कहा और न ही पंजाब का दौरा करने की जरूरत ही समझी। बाद में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चैहान पंजाब गए जरूर लेकिन उनकी यह यात्रा उनके साथ चल रहे आधा दर्जन कैमरामैन की वजह से ज्यादा चर्चा में रही। दौरे के बाद उन्होंने पंजाब के लिए कोई ठोस घोषणा भी नहीं की।
देश के लिए सबसे ज्यादा अन्न पैदा करने वाले इस राज्य की ज्यादातर खरीफ की फसल बर्बाद हो चुकी है। किसानी पहले से ही घाटे का सौदा बन चुकी है, इस साल वे रबी की ठीक से बुआई भी कर पाएंगे यह अभी नहीं कहा जा सकता। उन्हें मुआवजे की ही नहीं, कई दूसरे तरह की मदद की भी तत्काल जरूरत है। लेकिन सरकारें जिस तरह से सक्रिय हैं उसमें इसका कोई आश्वासन नहीं दिखाई देता।
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