जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए केंद्र को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय 8 अगस्त को सुनवाई कर सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया। शंकरनारायणन ने दलील दी, ‘‘उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर 8 अगस्त की तारीख दिख रही है। इसे हटाया नहीं जाए।’’ प्रधान न्यायाधीश ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
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वर्ष 2019 में जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद मंगलवार को इस घटना को छह साल पूरे हो गए। उच्चतम न्यायालय ने 11 दिसंबर, 2023 को सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा था। साथ ही आदेश दिया था कि सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाएं और जल्द से जल्द इसका राज्य का दर्जा बहाल किया जाए।
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पिछले साल शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर केंद्र को दो महीने के भीतर जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने यह अर्जी दायर की थी।
अर्जी में कहा गया है, ‘‘राज्य का दर्जा बहाल करने में देरी से जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, जिससे संघवाद की अवधारणा का गंभीर उल्लंघन होगा जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।’’ अर्जी में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव बिना किसी हिंसा, अशांति या सुरक्षा संबंधी चिंता के शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए।
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याचिका में कहा गया है, ‘‘इसलिए, सुरक्षा संबंधी चिंताओं, हिंसा या किसी अन्य अशांति की कोई बाधा नहीं है जो जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने/बहाली में बाधा उत्पन्न करे या उसे रोके, जैसा कि वर्तमान कार्रवाई में भारत संघ द्वारा आश्वासन दिया गया था।’’ याचिका के अनुसार, जम्मू कश्मीर को ‘‘शीघ्र और यथाशीघ्र’’ राज्य का दर्जा बहाल करने के शीर्ष अदालत के निर्देशों के बावजूद केंद्र ने इन निर्देशों के कार्यान्वयन के संबंध में कोई समय-सीमा निर्धारित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
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