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बिहार: किस जिले में सबसे ज्यादा कम हुए वोटर और कहां हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी, समझिए इसका सियासी समीकरण

जिन जिलों में वोटरों की संख्या कम हुई है उनमें सीमांचल के किशनगंज और लालू यादव का गृह जिला गोपालगंज शामिल है, जबकि पटना जैसे शहरी इलाकों वाले जिलों में वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ है।

चुनाव आयोग ने 30 सितंबर को बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी
चुनाव आयोग ने 30 सितंबर को बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी 

बिहार के लिए चुनाव आयोग ने फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी है। लिस्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि कई ऐसे जिले हैं जहां पिछली वोटर लिस्ट के मुकाबले वोटरों की संख्या में कमी आई है, जबकि कुछ ऐसे जिले हैं जिनमें मतदाताओं के आंकड़े में उछाल दर्ज हुआ है। जिन जिलों में वोटरों की संख्या कम हुई है उनमें सीमांचल के किशनगंज और लालू यादव का गृह जिला गोपालगंज शामिल है, जबकि पटना जैसे शहरी इलाकों वाले जिलों में वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ है।

चुनाव आयोग ने बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी है। इसके मुताबिक बिहार में कुल 7.42 करोड़ वोटर हैं। यह आंकड़ा तीन महीने के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के बाद सामने आया है। एसआईआर शुरु होने से पहले यानी 24 जून 2025 तक चुनाव आयोग के ही मुताबिक बिहार में 7.89 करोड़ वोटर थे। इस तरह तीन महीने की कवायद के बाद बिहार से 47 लाख के आसपास वोटर कम हो गए हैं।

आयोग ने बताया है कि 1 अगस्त को जो ड्राफ्ट लिस्ट जारी की गई थी, उसमें कुल 65 लाख वोटरों के नाम कटे थे, लेकिन इसके बाद एक महीने के दौरान 3.66 लाख वोटरों के और नाम कटे, वहीं 21.53 लाख वोटरों के नाम जोड़े गए। हालांकि चुनाव आयोग ने यह नहीं बताया है कि इनमें कितने नए वोटर हैं, यानी जो पहली बार वोटर बने हैं, और जो 21.53 लाख वोटर जुड़े हैं, उनमें से कितने ऐसे हैं जिनके नाम ड्राफ्ट लिस्ट से कटने के बाद फिर से जोड़े गए हैं।

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फाइनल लिस्ट जारी होने के बाद बिहार के कई ऐसे जिले हैं जहां मतदाताओं की संख्या पहले के मुकाबले कम हो गई है। खास बात यह है कि ये वे जिले जिन्हें बांग्लादेश और नेपाल की सीमा के नजदीक माना जाता है और इन जिलों में घुसपैठियों को लेकर काफी चर्चा हो रही थी। जिन जिलों में वोटर कम हुए हैं उनमें पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, किशनगंज और पूर्णिया शामिल हैं। इन सात जिलों में कहीं भी मतदाताओं की संख्या बढ़ नहीं है। इसके अलावा गोपालगंज, भागलपुर जिलों में भी वोटरों की संख्या में कमी हुई है।

जिलेवार स्थिति देखें तो 24 जून 2025 को जब एसआईआर शुरु हुआ तो गोपालगंज जिले में कुल 20,55,845 वोटर थे। 30 सितंबर को जारी फाइनल लिस्ट के मुताबिक गोपालगंज में अब 18,06,465 वोटर हैं। यानी करीब ढाई लाख वोटरों के नाम कट गए हैं। इस तरह देखें तो यहां 12 फीसदी से ज्यादा वोटर कम हुए हैं।

गोपालगंज आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का गृह जिला है, लेकिन उनकी पार्टी आरजेडी का बहुत ज्यादा प्रभाव इस जिले में नहीं रहा है। 1951 से अब तक यहां हुए 19 चुनाव में आरजेडी सिर्फ एक बार जीती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां से जेडीयू विजयी रही थी। जिले की जनसंख्या संरचना भी चुनावी समीकरणों में अहम भूमिका निभाती है। जिले में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 11.93%, अनुसूचित जनजाति 2.05%, और मुस्लिम मतदाता लगभग 22.6% हैं। जिले में अधिकांश ग्रामीण मतदाता (84.7%) हैं, जबकि शहरी मतदाता सिर्फ 15.3% हैं।

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इसी तरह किशनगंज में पहले के मुकाबले 1,04,488 वोटर कम हो गए हैं। यहां 24 जून 2025 को कुल मतदाताओं की संख्या 12,19,864 थी, जो अब घटकर 11.12 लाख हो गई थी। किशनगंज को सीमांचल का सियासी केंद्र माना जाता है। जिले में मुस्लिम आबादी करीब 68 फीसदी है। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को अच्छी कामयाबी मिली थी, लेकिन बाद में उनके कई विधायक पाला बदलकर आरजेडी में शामिल हो गए थे।

इसके अलावा सारण जिले में पिछली लिस्ट के मुकाबले 2.24 लाख वोटर कम हुए हैं। 24 जून तक इस जिले में 31.27 लाख वोटर थे जो 30 सितंबर को जारी लिस्ट में 29.02 लाख रह गए हैं। सारण में पिछले लोकसभा चुनाव में मुकाबला यदुवंशियों और रघुवंशियों के बीच देखने को मिला था। इस सीट से लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य आरजेडी के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थी और उनका मुकाबला बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी से था। रूडी विजयी हुए थे। वैसे सारण को सम्पूर्ण क्रांति के जनक जय प्रकाश नारायण की कर्मभूमि भी माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में सारण जिले की कुल 6 विधानसभा सीटों में 4 पर आरजेडी की जीत हुई थी, जबकि बीजेपी दो ही सीट जीत पाई थी।

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ऐसे ही समस्तीपुर में 2.18 लाख, पूर्णिया में 1.90 लाख, भोजपुर में 1.41 लाख, बेगूसराय में 1.15 लाख और बक्सर में 68 हजार से ज्यादा वोटर कम हुए हैं। मधुबनी जिले में 2 लाख 66 हजार 900 मतदाताओं की संख्या कम हुई है। सीतामढ़ी में 1,77,474 वोटर, सुपौल में 1,03,675 वोटर घट गए हैं। पूर्वी चंपारण में भी वोटरों की संख्या कम हुई है और यहां पिछली लिस्ट के मुकाबले 7,834 मतदाता कम हो गए हैं।

बात करें ऐसे जिलों की जहां सर्वाधिक वोटर बढ़े हैं उनमें पटना सबसे ऊपर है। फाइनल वोटर लिस्ट में पटना जिले में 1 लाख 63 हजार 600 मतदाता बढ़े हैं। पटना में पहले 46 लाख 51 हजार 694 मतदाता थे। फाइनल रोल में 48 लाख 15 हजार 694 मतदाताओं के नाम हैं। पटना को बीजेपी का गढ़ माना जाता है और बीते करीब तीन दशक से इस जिले की राजनीति पर बीजेपी हावी है।

इसके अलावा दरभंगा जिले में भी वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ है। यहां पिछली बार के मुकाबले 80,947 वोटर बढ़ गए हैं। दरभंगा को भी बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है। 1999 के लोकसभा चुनाव के बाद एक बार को छोड़कर बीजेपी यहां से जीतती रही है। दरभंगा को मखाना का केंद्र भी माना जाता है। जिले की 6 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से दरभंगा ग्रामीण को छोड़कर बाकी पांच सीटों पर एनडीए का कब्जा है। दरभंगा ग्रामीण से पिछली बार आरजेडी को जीत हासिल हुई थी।

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इनके अलावा बिहार की अंतिम वोटर लिस्ट में मुजफ्फरपुर जिले में भी 88 हजार 108 वोटरों का इजाफा हुआ है। मुजफ्फरपुर जिले के विधानसभा क्षेत्रों गायघाट में 9299, औराई में 6688, मीनापुर में 9366, बोचहां में 9476, सकरा में 5836 मतदाता अंतिम सूची में बढ़े हैं। इसी तरह जिले के कुढ़नी में 6631, मुजफ्फरपुर में 9317, कांटी में 7629, बरूराज में 7550, पारू में 7356 और साहेबगंज में 8960 मतदाता बढ़े हैं. 

नवादा में भी फाइनल वोटर लिस्ट में भी मतदाताओं की संख्या बढ़ी है। यहां 30 हजार 491 वोटर अधिक हो गए हैं। ड्राफ्ट रोल के समय जिले में 16 लाख 85 हजार 798 वोटर थे, लेकिन फाइनल वोटर लिस्ट में मतदाताओं की संख्या 17 लाख 16 हजार 289 हो गई है।

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