पर्यावरणविदों का कहना है कि उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों में हालिया प्राकृतिक आपदाएं मौजूदा विकास नीतियों का परिणाम हैं और इस क्षेत्र में सड़कों की चौड़ाई पांच से छह मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
'उत्तराखंड जल बिरादरी' द्वारा 'हिमालयी आपदा- गंगा और यमुना का विकास या विनाश' विषय पर आयोजित चर्चा में सोमवार को पर्यावरणविद सुरेश भाई ने कहा कि उत्तराखंड समेत कई हिमालयी राज्यों में आई हालिया आपदाएं मानव निर्मित हैं।
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उन्होंने कहा, ‘‘हिमालय में चौड़ी सड़कों की कोई आवश्यकता नहीं है। जब से उत्तराखंड और हिमाचल में चौड़ी सड़कों और बांधों का निर्माण शुरू हुआ है, तब से ये क्षेत्र आपदाओं के केंद्र बन गए हैं।’’
सुरेश भाई ने कहा, ‘‘वर्तमान नीतियां इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। हिमालयी क्षेत्र में सड़कों की चौड़ाई पांच से छह मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।’’
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मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और जल संरक्षणकर्ता राजेंद्र सिंह ने कहा कि हिमालय में बिना योजना के हो रहा विकास संकट की जड़ में है।
‘‘वाटर मैन’’ के नाम से जाने जाने वाले सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि हिमालय के लोग 1988 में अरावली के लोगों द्वारा किए गए जल संरक्षण की तरह कदम उठाएं।
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राजेंद्र सिंह ने कहा, "प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण केवल सरकारों पर नहीं छोड़ा जा सकता। इसका समाधान केवल जन भागीदारी से ही संभव है।"
पद्मश्री से सम्मानित कल्याण सिंह रावत ने कहा कि यदि पौधारोपण आवश्यकता के अनुसार और उद्देश्यपूर्ण ढंग से किया जाए तो यह अधिक प्रभावी होगा। उन्होंने कहा कि उच्च हिमालय से चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ घटते जा रहे हैं और उनकी जगह चीड़ ने ले ली है, जो आपदा को सीधा आमंत्रण दे रहा है।
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