
भारत निर्वाचन आयोग ने 25 जून, 2025 से 25 जुलाई तक चलने वाले विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के पहले चरण के बाद 1 अगस्त को प्रकाशित मतदाता सूची के प्रारूप में खामियों से इनकार तो नहीं किया है, लेकिन इस बाबत पेश किए जा रहे दावों और आपत्तिओं पर खामोश है। आयोग ने दावा किया था कि बिहार के करीब 65 लाख मतदाता या तो कहीं और चले गए हैं, या उनकी मृत्यु हो गई है या वे एक से ज़्यादा निर्वाचन क्षेत्रों में वोटर हैं।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने रविवार (10 अगस्त, 2025) को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक शपथ पत्र में कहा है कि ऐसा कोई नियम नहीं है जो ऐसे मतदाताओं की सूची जाहिर करने के लिए बाध्य करता हो जिनके नाम या मृत होने या स्थाई रूप से बिहार से बाहर चले जाने या दिए गए पते पर न मिलने के कारण बिहार की मसौदा मतदाता सूची (ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल) से हटा दिए गए हैं। आयोग ने यह भी दावा किया कि वह इन नामों को हटाने का कारण बताने के लिए भी बाध्य नहीं है। इसी बीच चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल की उस कॉपी को भी हटा लिया है जिसे मशीन द्वारा पढ़ा जा सकता था। आयोग ने मूल पीडीएफ प्रति को हटाकर उसकी स्कैन कॉपी अपलोड कर दी है जिसे डिजिटल तौर पर सर्च करना काफी कठिन है।
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इस बीच बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि ऐसा कोई बदलाव नहीं किया गया है, जिसके बाद इस खबर को सामने लाने वाले न्यूज पोर्टव स्क्रॉल डाट इन ने स्पष्ट किया कि उसने अपनी रिपोर्ट में मसौदा सूची हटाने की नहीं, बल्कि उसका फॉर्मेट बदलने की बात कही थी। इसके बाद से बिहार के सीईओ (मुख्य चुनाव अधिकारी) खामोश हैं।
इसके अलावा ऑल्ट न्यूज के अभिषेक ने एक्स पर एक पोस्ट की है। उन्होंने लिखा है कि बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी लोगों को गुमराह कर रहे हैं। निश्चित ही चुनाव आयोग ने मूल पीडीएफ फाइल अपने वोटर सर्विस पोर्टल से हटा दिया है और उसकी जगह उसकी स्कैन कॉपी लगा दी है जिस पर सर्च करना मुश्किल है।
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ऑल्ट न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने हालांकि किसी तरह इस फाइल को सर्च लायक बनाने का तरीका खोज किया। लेकिन उन्होंने आश्चर्य जताया कि आखिर चुनाव आयोग को ऐसा करने की जरूरत क्या थी।
सोमवार (11 अगस्त, 2025) को स्वतंत्र खोजी पत्रकारों के समूह रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने भी दावा किया कि उन्होंने स्वतंत्र डेटा एनालिस्ट की मदद से इस स्कैन की हुई कॉपी को सर्च करने का तरीका खोज लिया है। उन्होंने इस लिस्ट में से बिहार की वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र की लिस्ट की जांच की और पाया कि कम से कम एक हजार नाम पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के मतदाताओं से मिलते हैं। यहां तक कि इनके नाम, उम्र, सूचीबद्ध रिश्तेदार आदि भी अक्षरश: दोनो राज्यों में एक जैसे हैं।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने लिखा कि, “वैसे तो इनके पते अलग हैं। लेकिन हजारों ऐसे मामले हैं जहां मतदाताओं या उनके रिश्तेदारों के नामों में मामूली सा बदलाव कर दिया गया है। कुछ मामलों में तो उम्र को एक से चार साल तक बदला गया है, लेकिन बाकी सबकुछ एक जैसा है।”
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इस बाबत दिल्ली में चुनाव आयोग के मुख्यालय और बिहार में मुख्य चुनाव अधिकारी कार्यालय को भेजी गई लिखित जानकारी के आग्रह पर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव से बात करते हुए चुनाव आयोग के पीआरओ अशोक गोयल ने फोन पर बताया, “आपको एक बात ध्यान रखना चाहिए कि जो भी गड़बड़ी है उसके बारे में आपत्ति या दावा करने की समयावधि अभी खत्म नहीं हुई है।”
वैसे तो चुनाव आयोग के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है और वह चाहता तो इन दावों को पूरी तरह सबूत के साथ खारिज सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। मसलन, चुनाव आयोग चाहता तो चंद घंटों में ही बता सकता था कि वाल्मीकि नगर के 45 वर्षीय छेदी राम कोई और हैं, जिसके रिश्तेदार का नाम सुखराम है और उसका एपिक नंबर (वोटर कार्ड नंबर) UIM3397304 है। लेकिन चुनाव आयोग ऐसे मामलों पर खामोश है जिससे संदेह गहराता जा रहा है।
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सीपीआई (एमएल) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का भी कहना है कि चुनाव आयोग यूं तो अपने प्रेस रिलीज में यह तो बताता है कि किसी भी राजनीतिक दल ने एक भी आपत्ति लिखित में नहीं दी है, लेकिन वह यह नहीं बताता कि सीपीआई-एमएल ने सैकड़ों आपत्तियां और दावे लिखित में चुनाव आयोग को दिए हैं।
सीपीआई-एमएल का कहना है कि जमीनी स्तर पर जांच में उन्हें ऐसे तमाम लोग मिले जिनके नाम जो अपने पतों पर जीवित तौर पर मौजूद हैं, लेकिन उन्हें मसौदा मतदाता सूची से हटा दिया गया है। इसका कारण बताए जाने के उलट कहा जा रहा है कि वे नए सिरे से फॉर्म 6 के जरिए अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए आवेदन करें।
दीपांकर भट्टाचार्य को इसमें बड़ी साजिश नजर आती है जिसके तहत बड़ी संख्या में लोगों को उनके मताधिकार से वंचित करने का खेल किया जा रहा है और उनकी जगह नए वोटरों को शामिल कर संतुलन बनाने की कोशिश हो रही है।
तो क्या मान लें कि बिहार की सूची में दूसरे राज्यों को वोटर शामिल किए जाने वाले हैं, जैसाकि रिपोर्टर्स कलेक्टिव का इंवेस्टिगेशन बताता है?
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