
कांग्रेस ने अरावली के मुद्दे को लेकर मंगलवार को मोदी सरकार पर फिर निशाना साधा और सवाल किया कि वह इस पर्वतमाला को पुनः परिभाषित करने को लेकर इतना आमादा क्यों है?
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि इस मामले पर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के ‘स्पष्टीकरण’ ने और भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
भूपेन्द्र यादव ने सोमवार को कांग्रेस पर अरावली की नई परिभाषा के मुद्दे पर ‘गलत सूचना’ और ‘झूठ’ फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि पर्वत शृंखला के केवल 0.19 प्रतिशत हिस्से में ही कानूनी रूप से खनन किया जा सकता है।
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रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘अरावली मुद्दे पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा हाल में दिया गया “स्पष्टीकरण” और भी अधिक सवाल और शंकाएं खड़ी करता है। मंत्री का कहना है कि अरावली के कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र ही वर्तमान में खनन पट्टों के अंतर्गत है। लेकिन यह भी लगभग 68,000 एकड़ भूमि बनती है, जो अपने आप में बहुत बड़ा क्षेत्र है।’’
उन्होंने दावा किया कि 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर का यह आंकड़ा भी भ्रामक है।
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रमेश का कहना है, ‘‘इसमें चार राज्यों के 34 जिलों का पूरा भौगोलिक क्षेत्र शामिल कर लिया गया है, जिन्हें मंत्रालय ने “अरावली जिले” माना है। यह गलत आधार है।’’
कांग्रेस नेता के मुताबिक, सही आधार तो उन जिलों के भीतर वास्तविक अरावली पर्वत शृंखला के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र होना चाहिए। रमेश ने कहा कि यदि वास्तविक अरावली क्षेत्र को आधार बनाया जाए, तो 0.19 प्रतिशत का आंकड़ा बहुत कम आकलन साबित होगा।
उन्होंने यह भी कहा, ‘‘जिन 34 जिलों में से 15 जिलों के आंकड़े सत्यापित किए जा सकते हैं, उनमें अरावली क्षेत्र कुल भूमि का लगभग 33 प्रतिशत है। इस बारे में बिल्कुल भी स्पष्टता नहीं है कि नई परिभाषा के तहत इन अरावली क्षेत्रों में से कितना हिस्सा संरक्षण से बाहर कर दिया जाएगा और खनन व अन्य विकास कार्यों के लिए खोल दिया जाएगा।’’
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रमेश का कहना है, ‘‘यदि मंत्री के सुझाव के अनुसार स्थानीय स्थितियों को आधार बनाया जाता है, तो 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली कई पहाड़ियां भी संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी।’’
उन्होंने कहा कि संशोधित परिभाषा के कारण दिल्ली-एनसीआर में अरावली की अधिकांश पहाड़ी पट्टियां रियल एस्टेट विकास के लिए खोल दी जाएंगी, जिससे पर्यावरणीय दबाव और अधिक बढ़ेगा।
रमेश ने कहा, ‘‘मंत्री, जो खनन को अनुमति देने के लिए सरिस्का टाइगर रिज़र्व की सीमाओं को पुनः परिभाषित करने की पहल कर रहे हैं, इस बुनियादी तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि एक परस्पर जुड़े हुए पारिस्थितिकी तंत्र के विखंडन से उसका पारिस्थितिक दायरा गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है। अन्य स्थानों पर ऐसा विखंडन पहले ही भारी तबाही मचा रहा है।’’
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रमेश ने इस बात पर जोर दिया, ‘‘अरावली हमारी प्राकृतिक विरासत का हिस्सा हैं और उनका पारिस्थितिकी महत्व अत्यंत व्यापक है। उन्हें बड़े पैमाने पर पुनर्स्थापन और सार्थक संरक्षण की आवश्यकता है।’’
उन्होंने सवाल किया कि फिर मोदी सरकार उन्हें फिर से परिभाषित करने पर क्यों आमादा है? किस उद्देश्य से? किसके लाभ के लिए? और भारतीय वन सर्वेक्षण जैसी पेशेवर संस्था की सिफारिशों को जानबूझकर क्यों नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?’’
पीटीआई के इनपुट के साथ
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