विचार

मोदी सरकार के सौ दिन का हालः रोजगार-व्यापार की ऐसी-तैसी, जेल में विपक्षी नेता और निशाने पर मीडिया

विपक्ष के बड़े नेताओं की आवाज दबाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल हो रहा है। कई विपक्षी नेताओं को सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के जरिये निशाना बनाया जा रहा है। इनमें से कई जेल पहुंचा दिए गए हैं, जबकि उनके खिलाफ अभी तक आरोप भी साफ नहीं है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे हो गए हैं। इन सौ दिनों की उपलब्धि यही है कि देश में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है। नया निवेश आ नहीं रहा। गाड़ी और मकान बन-बनकर तैयार हैं, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे, नतीजा लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है। फिर भी मंदी के इस दौर में बीजेपी की सियासत में बढ़त का माहौल है। एक के बाद एक राज्य में धड़ाधड़ विपक्षी नेता भगवा खेमे में शामिल हो रहे हैं, या यह कहें कि साम-दाम-दंड-भेद की भाजपाई रणनीति के कारण पाला बदलने को मजबूर हो रहे हैं। विपक्ष की आवाज बनने वालों को जेल में ठूंसा जा रहा है और मीडिया में असहमत होने वालों को निशाने पर लिया जा रहा है।

कहां गायब हो गई नौकरियां

देश में बेरोजगारी का बुरा हाल है। थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक अगस्त, 2019 में बेरोजगारी 8.4 फीसदी रही, जो तीन साल का उच्चतम स्तर है। इस माह के दौरान शहरी बेरोजगारी दर 9.6 फीसदी रही जबकि गांवों में यह 7.8 फीसदी थी। जबकि पिछले साल अगस्त के दौरान बेरोजगारी दर 7-8 फीसदी के बीच रही थी। 2016 के सितंबर से बेरोजगारी दर ऊपर जा रही है।

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सीएमआईई ने आगाह किया है कि श्रम शक्ति की भागीदारी और उपलब्ध रोजगार की संख्या का अंतर बढ़ता जा रहा है जो चिंताजनक तस्वीर पेश करता है। सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “निवेश का माहौल कमजोर बना हुआ है। बड़े और आधुनिक उद्यमों में नया निवेश जरूरी है, जिससे रोजगार चाहने वालों की बढ़ती आबादी के लिए श्रम बाजार में जगह बन सके। जबकि कंपनियों के सालाना वित्तीय बयानों में कहीं नए निवेश की बात नहीं दिखती। इसी कारण अच्छी नौकरियों के मामले में वृद्धि बेहद कम है।”

ऑटो सेक्टर परेशान

अगस्त महीने के दौरान ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिक्री और कम हो गई। इससे साफ है कि उपभोक्ता अब भी नए वाहन खरीदने से कतरा रहा है। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) के आंकड़े इस सेक्टर की बुरी हालत दिखाते हैं। अगस्त 2019 में यात्री वाहनों की बिक्री 1,15957 रही, जबकि पिछले साल इसी माह के दौरान यह 1,96,847 थी, यानी 41 फीसदी की गिरावट। काबिले गौर है कि मई, 2019 में 2,39,347 वाहनों की बिक्री हुई थी। कमर्शियल वाहनों के क्षेत्र में बिक्री 39 फीसदी कम रही। अगस्त, 2019 में 51,897 गाड़ियां बिकीं, जबकि पिछले साल अगस्त में 94, 668 गाड़ियों की बिक्री हुई थी। इस साल मई में 68,847 गाड़ियों की बिक्री हुई। सियाम के मुताबिक नई सरकार के कार्यभार संभालने के बाद से इस क्षेत्र में 3.5 लाख से अधिक नौकरियां कम हुई हैं और इस दौरान 300 से ज्यादा डीलरों ने अपने शोरूम बंद कर दिए हैं।

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रियल एस्टेट की मंदी

चालू वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिए रियल एस्टेट सेंटीमेंट इंडेक्स के मुताबिक आर्थिक मंदी का असर प्रॉपर्टी बाजार पर भी पड़ रहा है और एनबीएफसी के संकट, डिफॉल्टर होते बिल्डर, तरलता के संकट और उपभोक्ता मांग में आई जबर्दस्त कमी संकट को और बढ़ा रहा है। भारत के प्रमुख नौ बाजारों के रियल एस्टेट आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले proptiger.com के तिमाही रिपोर्ट- ‘रियल इनसाइट’ के मुताबिक अप्रैल से जून की पहली तिमाही के दौरान फ्लैटों की बिक्री में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इस अवधि के दौरान नए परियोजनाओं के लांच में भी 47 फीसदी की गिरावट रही।

ऐनरॉक रिसर्च के मुताबिक 2019 की दूसरी तिमाही के दौरान फ्लैटों की बिक्री में 13 फीसदी की गिरावट रही और इस अवधि में देश के सात बड़े शहरों में 68,600 यूनिट बिकीं। जबकि पहली तिमाही में 78,520 मकानों की बिक्री हुई और इस दौरान 70,490 नए प्रोजेक्ट लांच किए गए। देश के 30 प्रमुख शहरों में 12.76 लाख फ्लैट तैयार हैं और इन्हें खरीदने वाला कोई नहीं है। हालत यह है कि इन तैयार यूनिटों को बेचने में कोच्चि में 80 माह, जयपुर में 59 माह, लखनऊ में 55 और चेन्नई में 72 माह लग जाएंगे, यानी अभी के स्टॉक को क्लीयर करने में बिल्डरों को 5 से 7 साल लग जाएंगे।

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रियल एस्टेट कंस्लटेंसी फर्मलियासेज फोराज के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान इन 30 शहरों में तैयार लेकिन नहीं बिक रहे फ्लैटों की संख्या11.90 लाख थी जिसमें इस साल 8 फीसदी का इजाफा हो गया है। इससे साफ है कि मौजूदा इन्वेंट्री को क्लीयर करने में बिक्री में चार गुना तेजी आनी होगी जिसकी फिलहाल कोई सूरत नहीं दिखती।

विपक्षी नेताओं को डराने-तोड़ने का दौर

हालिया चुनाव में जबर्दस्त बहुमत पाने वाली बीजेपी ने विपक्षी नेताओं को लेकर अजीब सी नीति अपना रखी है। वह उन्हें डराने-धमकाने से लेकर भगवा ब्रिगेड में शामिल करने के तमाम हथकंडे अपना रही है। कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस के 15 विधायकों के दलबदल से वहां कांग्रेस- जेडीएस गठबंधन की सरकार जाती रही, जबकि सिक्किम में पवन चामलिंग के नेतृत्व वाले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के दस विधायकों के भगवा खेमे में शामिल हो जाने से बीजेपी वहां रातों-रात सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई। टीडीपी के चार राज्ससभा सदस्यों ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया। इनमें से दो के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां विभिन्न मामलों में तफ्तीश कर रही थीं।

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सीबीआई-ईडी और आयकर विभाग बना औजार

विपक्ष के बड़े नेताओं की आवाज दबाने के लिए बीजेपी लगातार केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। पूर्व वित्त और गृहमंत्री पी चिदंबरम तथा उनके पुत्र कार्ति चिदंबरम, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके भतीजे रतुल पुरी, डीके शिवकुमार जैसे लोगों को सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के जरिये निशाना बनाया जा रहा है। कार्ति चिदंबरम और कमलनाथ को छोड़कर सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है, जबकि इनके खिलाफ अभी आरोप भी साफ नहीं हैं।

मीडिया कवरेज के मामले में सरकार की धारा से विपरीत चलने वाले एनडीटीवी नेटवर्क के प्रमोटर प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय को एजेंसियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। सरकार या बीजेपी नेताओं के खिलाफ खबर करने वाले कई स्थानीय पत्रकारों पर मुकदमे दर्ज कर दिए गए हैं। इस तरह के हथकंडे अपनाकर मीडिया में सरकार के खिलाफ थोड़ा-बहुत भी बोलने वालों का मुंह बंद करने की कोशिश की जा रही है।

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