हमें इस बात की पड़ताल करनी चाहिए कि आखिर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन क्यों शुरु हुए और इनकी विश्वव्यापी सुर्खियां क्यों बन रही हैं। सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लोगों को पूरी समझ नहीं है इसलिए ऐसा हो रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि 2014 के बाद से यह पहला ऐसा मुद्दा या मौका है जिसके तीक्ष्ण विरोध देश भर में हो रहे हैं। सवाल है कि आखिर क्यों?
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मेरा मानना है कि सरकार की यह सोच कि विरोध करने वालों को इस कानून की पूरी तरह समझ नहीं है, गलत है। और यह सोचना भी गलत है कि सरकार जो कुछ अभी कर रही है या आने वाले समय के लिए इसने जो कुछ करने की घोषणा की है उससे डरना नहीं चाहिए। दरअसल इसके लिए थोड़ा पीछे जाने की जरूरत है। 2017 में असम सरकार ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक शपथपत्र दाखिल किया। इस शपथपत्र में राज्य के फॉरेन ट्रिब्यूनल में काम करने वाले वकीलों का कार्यकाल दो साल बढ़ाने की बात कही गई।
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सरकार ने शपथ पत्र के साथ जो दस्तावेज पेश किए उससे स्पष्ट हुआ कि जो लोग या कर्मचारी ज्यादा से ज्यादा लोगों को विदेशी घोषित नहीं कर रहे थे, उनका कांट्रेक्ट बढ़ाने से इनकार किया गया। इनमें कार्तिक रे का कांट्रेक्ट भी था जिन्होंने 380 लोगों के दस्तावेज जांचने के द 1.32 फीसदी लोगों को विदेशी घोषित किया था। इस विषय में असम सरकार ने कहा कि ‘सरकार का मोटे तौर पर मानना है कि रे का काम संतोषजनक नहीं है और उन्हें आगे काम पर न रखा जाए।’ इसी तरह दिलीप कुमार बर्मन ने भी 485 में सिर्फ 2.43 फीसदी लोगों को विदेशी घोषित किया और उनका काम भी संतोषजनक नहीं पाया गया। भाभा हजारिका, कमालुद्दीन चौधरी, निलय कांति घोष, नवनिता मित्रा और कुलेंद्र तालुकदार आदि के काम भी इसी तरह सरकार की नजर में संतोषजनक नहीं पाए गए।
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इससे क्या साबित होता है?जिन लोगों के कांट्रेक्ट को बढ़ाया गया उनमें वे लोग थे जिन्होंने अधिक से अधिक लोगों को विदेशी घोषित किया। नाराणयण कुमार नाथ ने 460 लोगों में से 34.57 फीसदी को विदेशी घोषित कर दिया और उनका काम संतोषजनक पाया गया। इसी तरह अभिजीत दास ने 443 में से 39.05 फीसदी को विदेशी घोषित कर दिया और उनका कांट्रेक्ट बढ़ाने की भी संस्तुति सरकार ने की। ऐसे ही हेमंत महंत ने 574 में से 41.67 फीसदी को चेतावनी के साथ काम जारी रखने की बात की। इसके अलावा धीरज कुमार सैकिया ने 345 में से 41.16 फीसदी को, जन्मुनि बोरा ने 330 में से 15.33 फीसदी को. कल्पना बरुआ ने 249 में से 26.91 फीसदी को, रमाकांत खकलारी ने 626 में से 15.65 लोगों को, अजय फुकन ने 239 में से 19.38 फीसदी को और निवेदिता तमुलिनाथ ने 691 में 58.47 फीसदी को विदेशी घोषित किया और इन सभी के काम से संतोष जताते हुए इन्हें काम जारी रखने के लिए कांट्रेक्ट बढ़ाने की संस्तुति दे दी गई।
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इस पैटर्न को देखकर कुछ और कहने की जरूरत नहीं रह जाती, क्योंकि ट्रिब्यूनल में काम करने वाले जिन लोगों ने ज्यादा से लोगों को विदेशी घोषित किया उन्हें ईनाम दिया गया और जिन्होंने ऐसा नहीं किया उनके कांट्रेक्ट रद्द कर दिए गए। जिन लोगों को विदेशी घोषित किया गया उन्हें जेल भेजा जा रहा है। मानवाधिकार आयोग की टीम ने इन लोगों की खैर-खबर ली तो पता चला कि इन परिवारों को स्थाई रूप से अलग कर दिया गया है। महिलाओं और बच्चों को अलग जेल में रखा गया है और पुरुषों को अलग जेल में। इनमें से कई विक्षिप्त हो चुके हैं और उन्हें उन जेलों में रखा जा रहा है जहां सजायाफ्ता अपराधियों को रखा जाता है।
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भारत में अपने ही लोगों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है। सभ्य दुनिया में सरकार को यह साबित करना होता है कि किसी ने कोई अपराध किया है। लेकिन भारत में अब ऐसा हो गया है कि लोगों को खुद साबित करना पड़ रहा है कि उन्हें जेल न भेजा जाए। गृहमंत्री अमित शाह जो कुछ कह रहे हैं कि पूरे देश में एनआरसी लागू होगा, उसका यही अर्थ है।
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आइए अब नागरिकता संशोधन कानून की बात करें। आखिर इस कानून से क्या होगा?यह कानून उन मुसलमानों को जेल में डाल देगा जिनपर विदेशी होने का आरोप लगेगा और जो बीजेपी सरकार को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे कि वे भारतीय नागरिक हैं। बाकी सभी धर्मों के लोगों को यह साबित करने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि नागरिकता कानून के तहत दिसंबर 2014 से पहले अगर वे गैरकानूनी तरीके से भारत में घुसे हैं तो उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी। सिर्फ मुसलमानों को ही यह साबित करना होगा कि वे असलियत में भारतीय नागरिक हैं।
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इस तरह एनआरसी ऐसे भारतीय मुस्लिमों को घेरकर पहचान करेगा और जेल में डाल देगा जो सरकार के उन अधिकारियों को संतुष्ट करने वाले दस्तावेज़ नहीं पेश कर पाएंगे जिनको ज्यादा से ज्यादा लोगों को विदेशी साबित करने की शाबाशी मिली है। यही कारण है कि इस कानून के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा से मुसलमान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और यही कारण की ज्यादातर गैर-मुस्लिम भी इसका विरोध कर रहे हैं कि उनके देश में जो कुछ हो रहा है वह सही नहीं है।
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और सबसे अंत में, यही कारण है कि देश विदेश मंत्री इस सप्ताह देश से बाहर भाग गए हैं, और अमेरिका में उन्होंने उन अमेरिकी सांसदों के साथ अपनी मुलाकात रद्द कर दी जिन्हें साफ पता था कि भारत में क्या हो रहा है और भारत अपने ही लोगों के साथ क्या कर रहा है। विदेशमंत्री को अंदाजा है कि उनकी सरकार जो कुछ कर रही है वे उसे तर्कपूर्ण साबित नहीं कर पाएंगे क्योंकि यह सबकुछ तर्कपूर्ण है ही नहीं।
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