विचार

खरी-खरी: यूपी चुनाव में बांध तोड़कर निकला बीजेपी विरोधी गुस्से का सैलाब

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के प्रति जो आक्रोश फूट पड़ा है, उसको सही दिशा देकर बीजेपी की पराजय को निश्चित बनाने की भरपूर चेष्टा होनी चाहिए। इसी में देश एवं समाज की सफलता एवं विजय है।

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भला एक सप्ताह पूर्व यह कौन सोच सकता था कि बीजेपी के गढ़ उत्तर प्रदेश में भगवा पार्टी के प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार एक समस्या बन जाएगा। परंतु अब यह स्थिति है कि प्रदेश में बीजेपी प्रत्याशी अपने चुनाव क्षेत्र से खदेड़े जा रहे हैं। पिछले सप्ताह दो वीडियो वायरल हुए जिनमें बीजेपी प्रत्याशियों की स्वयं उनके ही चुनावी क्षेत्र में जनता ने उनकी दुर्गति बना दी। और तो और, स्वयं प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को सिराथू में पुलिस उत्तेजित भीड़ से किसी प्रकार ‘बाइज्जत’ निकाल पाई। दूसरी घटना में मेरठ के एक क्षेत्र में बीजेपी प्रत्याशी को खदेड़ दिया गया। इस लेख के लिखे जाते समय संभल के बीजेपी प्रत्याशी को उनके चुनाव क्षेत्र में घुसने नहीं दिया गया। ऐसी ही खबर मुजफ्फरनगर से आई। यह स्थिति है चुनाव के आरंभ में। आगे-आगे देखिए होता है क्या! लब्बोलुबाब यह कि उत्तर प्रदेश में अब जमीन डोल रही है। और जमीन पर बीजेपी के विरोध-आक्रोश का एक सैलाब है जो अब बांध तोड़कर बह निकला है। हमने बहुत से चुनाव देखे और कवर किए। परंतु यह स्थिति केवल सन 1977 में इमर्जेंसी के बाद के चुनाव के समय देखी थी।

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परंतु बीजेपी के विरुद्ध उत्तर प्रदेश में यह आक्रोश क्यों! जमीन पर पिछले पांच वर्ष में जनता की जो दुर्दशा हुई, उसकी कल्पना करना मुश्किल है। अभी पिछले सप्ताह एक सर्वे आया है जिसके अनुसार, देश की सबसे गरीब 20 प्रतिशत जनता की कमाई 56 प्रतिशत घट गई और सबसे अमीर 13 प्रतिशत लोगों की आमदनी 43 प्रतिशत बढ़ गई, अर्थात गरीब और गरीब हो गया जबकि मुट्ठी भर अमीर और अमीर हो गए। यह है मोदी-योगी मॉडल जो उत्तर प्रदेश में चल रहा था। जाहिर है कि प्रदेश में एक बड़ी जनसंख्या के पास दो वक्त की रोटी का भी आसरा नहीं बचा। उस पर से बेरोजगारी और कमरतोड़ महंगाई। फिर कहीं कोई कोविड का शिकार हो गया तो दवा-इलाज का पैसा कहां से आए। तब ही तो उत्तर प्रदेश में कोविड की दूसरी लहर में लाशें गंगा में बहा दी गईं। स्पष्ट है कि मरने वालों के परिजनों के पास अंतिम क्रियाकर्म तक करने के भी पैसे नहीं थे। तब ही तो लाश गंगा को सौंप दी। उत्तर प्रदेश में लोगों की यह दुर्दशा थी कि लोग न चैन से जी सकते थे और न ही शांति से मर सकते थे। ऐसे में यदि प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के विरुद्ध आक्रोश फूट पड़ाहै, तो कोई बहुत आश्चर्यजनक बात नहीं है।

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इन परिस्थितियों में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि बीजेपी के लिए 2022 में दोबारा चुनाव जीत पाना बहुत कठिन है। परंतु बीजेपी ऐसा दल नहीं कि वह जल्द चुनावी हार स्वीकार कर ले। वह साम, दाम, दंड, भेद हर चीज का प्रयोग कर चुनाव जीतने की कोशिश करेगा। चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाया जाएगा। राजनीतिक स्तर पर पार्टी ने दोधारी रणनीति बना ली है। हर चुनाव में हिन्दुत्व राजनीति तो बीजेपी का ब्रह्मास्त्र होता ही है और स्पष्ट है कि इस बार भी होगा ही। इसी के साथ बीजेपी की रणनीति यह भी है कि पिछड़ों, दलितों एवं मुसलमानों के वोट बैंक में फूट डालकर अपना चुनाव जीता जाए, अर्थात मुख्यतः बीजेपी की रणनीति बांटों और राज करो ही रहेगी। इसके लिए पार्टी कमंडल प्लस मंडल रणनीति का प्रयोग कर रही है। कमंडल, अर्थात समाज को हिन्दू-मुस्लिम धर्मों के नाम पर बांटकर हिन्दू वोट बटोरने की चेष्टा है। दूसरी ओर, मंडल का प्रयोग कर जातियों को बांटने की कोशिश है। हिन्दू-मुसलमान बीजेपी का पुराना शस्त्र है। चूंकि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विरुद्ध मंडल राजनीति खड़ी हो गई है, अतः पार्टी का पूरा जोर हिन्दू-मुस्लिम विभाजन पर है। तब ही तो स्वयं मुख्यमंत्री को ‘अब्बाजान’ याद आ रहे हैं एवं प्रधानमंत्री ‘औरंगजेब’ को याद कर रहे हैं। अब वोटर को बीजेपी की इस हिन्दू-मुस्लिम विभाजन की राजनीति से सतर्क रहना होगा। यदि वह मुस्लिम घृणा की राजनीति में बह गया तो फिर आधे पेट जो रोटी मिल रही है, वह भी जाती रहेगी। याद रखिए, बीजेपी हिन्दुओं के हित की सरकार नहीं, हिन्दुत्व हित की सरकार बनाती है। ऐसी सरकार में गरीब हिन्दू और गरीब एवं मुट्ठी भर पैसे वाला हिन्दू और अमीर हो जाता है जैसा कि ऊपर बताए गए सर्वे से सिद्ध होता है।

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सामाजिक विभाजन के बंटवारे के लिए बीजेपी मंडल रणनीति का भी प्रयोग कर रही है। वह हर क्षेत्र से पिछड़ों एवं दलितों को अधिकतम टिकट देकर पिछड़ों एवं दलितों के वोट को बांटना चाहती है। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र में मौर्य वोटर अधिक संख्या में है। उस क्षेत्र में विपक्ष से मजबूत मौर्य प्रत्याशी खड़ा है, तो बीजेपी भी एक मौर्य को उतारकर जातीय आधार पर वोट बांटकर अपना चुनाव निकालने की ताक में है। जातीय राजनीति बीजेपी की है जबकि विपक्ष को सामाजिक न्याय के आधार पर विभिन्न जातियों की एकजुटता उत्पन्न करनी चाहिए, अर्थात बीजेपी विरोधी वोटर को हर प्रकार के विभाजन से बचकर एक बड़ी सामाजिक एकजुटता बनाकर अपने क्षेत्र में धर्म अथवा जाति के बंटवारे से परे हर उस प्रत्याशी को वोट डालना चाहिए जो बीजेपी को हराने की स्थिति में मजबूत हो। धर्म एवं जाति के आधार पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है। विपक्ष एवं वोटर को सामाजिक एकजुटता का मार्ग लेना चाहिए।

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अब सवाल है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोटर का क्या रोल हो सकता है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर लगभग 20 प्रतिशत है। यह बड़ी संख्या है। अतः मुस्लिम वोटर को बहुत सूझ-बूझ से काम लेने की आवश्यकता है। मुस्लिम वोटर की सबसे बड़ी कमजोरी जज्बात है। वह जज्बात में बहकर अपना वोट बांट देता है और इसको बीजेपी भुना लेती है। मुस्लिम हित के नाम पर असदउद्दीन ओवैसी जैसे खुली मुस्लिम हित की राजनीति करने वाले नेता अपने प्रत्याशी खड़े कर देते हैं। वह खुलकर मुस्लिम हितों की बात करते हैं। इसका पहला असर तो यह होता है कि जब मुसलमान इकट्ठा होता है तो फिर प्रतिक्रिया में हिन्दू भी इकट्ठा होता है और बस, बीजेपी की चांदी हो जाती है। बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मामले में यही हुआ था। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से खुली मुस्लिम हित की जज्बाती राजनीति हुई। जवाब में बीजेपी ने राम मंदिर की राजनीति की। अंततः मस्जिद भी गई एवं मारा भी मुसलमान गया। याद रखिए, ओवैसी साहब की जज्बाती राजनीति में फंसे और वोट बांट दिया, तो फिर वह तलवार जो अभी तक सिर पर लटक रही थी, अब वह गर्दन तक पहुंच जाएगी। दूसरी बात जो मुस्लिम वोटर को याद रखनी चाहिए, वह यह कि यदि क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा है, तो उसी के धर्म के नाम पर वोट मत डालिए। वोट उसी को डालिए जो बीजेपी को हरा सकता हो, चाहे वह मुसलमान हो अथवा हिन्दू।

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तीसरा एक बहुत बड़ा वोट बैंक उच्च जातीय लिबरल एवं सेकुलर हिन्दू समाज का भी है। यह समूह सामाजिक न्याय एवं आरक्षण के नाम पर बीजेपी की ओर झुक जाता है। यह चुनाव इन तमाम मुद्दों से ऊपर देश के संविधान की रक्षा का चुनाव है। इस चुनाव में भारत की लिबरल एवं सेकुलर परंपरा की रक्षा करना है। इसके लिए लिबरल हिन्दू समूह की रणनीति भी वही होनी चाहिए जो दूसरे वोट बैंक की है, अर्थात लिबरल एवं सेकुलर वोटर को अपने क्षेत्र में उसी प्रत्याशी को वोट करना चाहिए जो बीजेपी को हराने की स्थिति में हो। इस चुनाव में बीजेपी को हराने का मंत्र केवल यही है कि धर्म, जाति अथवा दूसरे मुद्दों से परे वोट का बंटवारा नहीं होना चाहिए। इस मत का प्रयोग कर हिन्दू, मुसलमान एवं सेकुलर वोटर को आपस में मिलकर बीजेपी के विरुद्ध एकजुटता उत्पन्न करनी होगी। यदि वोट बंटा, तो बीजेपी सफल! यदि वोट एकजुट, तो विपक्ष सफल!

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अंतिम प्रश्न यह है कि यह सामाजिक एकजुटता की चेतना कौन उत्पन्न करेगा। सर्वप्रथम तो विपक्ष को जनता को धर्म एवं जातीय बंटवारे के विरुद्ध सचेत करते रहना चाहिए। परंतु यह काम केवल राजनीतिक दलों का ही नहीं, अपितु सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी है। अतः हर क्षेत्र में उसी इलाके के समाज के चेतनावान नागरिक आपस में मिलकर एक समूह में मुहल्ले-मुहल्ले, घरों में, बैठकों में, छोटी-छोटी मीटिंग कर जनता में धार्मिक एवं सामाजिक एकजुटता की चेतना उत्पन्न करें। उत्तर प्रदेश के चुनाव बहुत ही अहम हो गए हैं। प्रदेश में बीजेपी के प्रति जो आक्रोश फूट पड़ा है, उसको सही दिशा देकर बीजेपी की पराजय को निश्चित बनाने की भरपूर चेष्टा होनी चाहिए। इसी में देश एवं समाज की सफलता एवं विजय है।

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