विचार

अरावली संकटः कोर्ट की कमेटी पर भरोसा तो नहीं, उम्मीद जरूर है

अरावली ने मरुभूमि के विस्तार को थामने में निर्णायक भूमिका निभाई है। मानसून के पानी भरे बादलों को दिशा देने में इसके मध्यम ऊंचाई वाले पहाड़ों की भूमिका रही है और ये पहाड़ियां गायब होती रहीं, तो उत्तर-पश्चिम भारत में बरसात के स्वभाव में बदलाव आ सकता है।

अरावली संकटः कोर्ट की कमेटी पर भरोसा तो नहीं, उम्मीद जरूर है
अरावली संकटः कोर्ट की कमेटी पर भरोसा तो नहीं, उम्मीद जरूर है फोटोः सोशल मीडिया

चार राज्यों के 37 जिलों में फैली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली पर सुप्रीम कोर्ट ने जो 9 सदस्यीय कमेटी बनाई है, उस पर बहुत भरोसा तो नहीं है लेकिन यह उम्मीद की जा सकती है कि शायद अरावली को बचाने का कोई प्रयास शुरू हो सकता है। दरअसल, संकट काफी गहरा है। गुजरात के खेड ब्रह्म से शुरू होकर कोई 692 किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वतमाला का विसर्जन देश के सबसे ताकतवर स्थान दिल्ली के रायसीना हिल्स पर होता है जहां राष्ट्रपति भवन है।

अरावली पर्वतमाला को कोई 65 करोड़ साल पुराना माना जाता है। बीते चार दशक में इसका बड़ा हिस्सा पूरी तरह न केवल नदारद हो गया, बल्कि कई जगह उत्तुंग शिखर की जगह डेढ सौ फुट गहरी खाई हो गई। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि बीसवीं सदी के अंत में अरावली के 80 प्रतिशत हिस्से पर हरियाली थी जो आज बमुश्किल सात फीसदी रह गई। इस कारण पहाड़ों की सरिताएं और छोटे झरने भी लुप्त हो गए हैं। तेंदुए, हिरण और चिंकारा भोजन के लिए मानव बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं और मानव-जानवर टकराव के वाकये बढ़ रहे हैं। अंधड़ बढ़ने से भी जानवरों के बस्ती में घुसने की घटनाएं बढ़ती हैं।

Published: undefined

अभी तक अरावली ने मरुभूमि के विस्तार को थामने में निर्णायक भूमिका निभाई है। यही नहीं, मानसून के पानी भरे बादलों को दिशा देने में इस पर्वत श्रृंखला के मध्यम ऊंचाई वाले पहाड़ों की भूमिका रही है और ये पहाड़ियां गायब होती रहीं, तो उत्तर-पश्चिम भारत में बरसात के स्वभाव में बदलाव आ सकता है। पहले से ही बढ़ते तापमान से तंग इन इलाकों में ’गरम-द्वीप’ का विस्तार छोटे कस्बों तक हो सकता है। रेत की आंधियां कृषि भूमि को बंजर बना देंगी, जिससे किसानों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी।

अंतरराष्ट्रीय जर्नल ’अर्थ साइंस इंफोरमैटिक्स’ में प्रकाशित एक शोध में पहले ही चेतावनी दी जा चुकी है कि अरावली पर्वतमाला में पहाड़ियों के गायब होने से राजस्थान में रेत के तूफान में वृद्धि हुई है। भरतपुर, धौलपुर, जयपुर और चित्तौड़गढ़ जैसी जगहों को सामान्य से अधिक रेतीले तूफानों का सामना करना पड़ रहा है। यहां अरावली पर्वतमाला पर अवैध खनन, भूमि अतिक्रमण और हरियाली उजाड़ने की अधिक मार पड़ी है। केन्द्रीय विश्वविद्यालय, राजस्थान के पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एल के शर्मा और पीएचडी स्कॉलर आलोक राज द्वारा किए गए इस अध्ययन का शीर्षक है- ’एसेसमेंट ऑफ लैंड यूज डायनामिक्स ऑफ द अरावली यूजिंग इंटीग्रेटेड’।  

दिल्ली, राजस्थान के गैर मरुस्थलीय जिलों और हरियाणा का अस्तित्व भी अरावली पर टिका है और इसको नुकसान का मतलब है, अन्न के कटोरे पंजाब तक बालू के धोरों का विस्तार। रेत के बवंडर खेती और हरियाली वाले इलाकों तक न पहुंचें, इसके लिए  सुरक्षा-परत या शील्ड का काम हरियाली और जल-धाराओं से संपन्न अरावली पर्वतमाला सदियों से करती रही है। इसरो का एक शोध बताता है कि थार रेगिस्तान अब राजस्थान से बाहर निकल कर कई राज्यों में जड़ें जमा रहा है।

Published: undefined

भारत के राजस्थान से लेकर पाकिस्तान और उससे आगे तक फैले भीषण रेगिस्तान से हर दिन लाखों टन रेत उड़ती है। खासकर गर्मी में यह धूल पूरे परिवेश में छा जाती है। मानवीय जीवन पर इसका दुष्परिणाम ठंड में दिखने वाले स्मॉग से अधिक होता है। विडंबना है कि बीते चार दशकों में यहां मानवीय हस्तक्षेप और खनन इतना बढ़ा कि कई स्थानों पर पहाड़ की श्रृंखला की जगह गहरी खाई हो गई और एक बड़ा कारण यह भी है कि अब उपजाऊ जमीन पर रेत की परत का विस्तार हो रहा है।

अरावली दो तरह से देश के बड़े हिस्से को गर्मी और अंधड़ से बचाता रहा है। इसके ऊंचे शिखर हवा के साथ बह कर आने वाले पी एम 2.5 कणों  को रोकते हैं तो 30 मीटर तक की नीची पहाड़ियां भारी रेत और धूल के कणों को रोकती हैं। जबकि एफएसआइ की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 से 30 मीटर ऊंची छोटी पहाड़ियां भी तेज हवाओं को उसके साथ आने वाली रेत को थामने में सक्षम होती हैं। चूंकि अरावली का 90 प्रतिशत हिस्सा 100 मीटर से कम ऊंचाई का है और अब वहां खनन होगा, तो रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल सीधे दिल्ली और इंडो-गैंगेटिक मैदानों (एनसीआर) तक पहुंचेगी।

’अर्थ साइंस इंफोरमैटिक्स’ में छपी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले दो दशकों में कई अन्य पहाड़ियों के अलावा, ऊपरी अरावली पर्वतमाला की हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में कम और मध्य ऊंचाई की कम-से-कम 31 पहाड़ियां पूरी तरह गायब हो गई हैं। अध्ययन से यह भी पता चला कि 1975 से 2019 के बीच अरावली की 3,676 वर्ग किलोमीटर भूमि बंजर हो गई। इस अवधि में अरावली के वन क्षेत्र में 5772.7 वर्ग किलोमीटर (7. 63 प्रतिशत) की कमी आई है। और यदि यही हाल रहा, तो 2059 तक कुल 16360.8 वर्ग किलोमीटर (21. 64 प्रतिशत) वन भूमि पर कंक्रीट के जंगल उगे दिखेंगे।

Published: undefined

यहां वैध-अवैध खनन नंगी आंखों से दिखता है। पिछले कुछ सालों के दौरान हरियाणा में सोहना से आगे तीन पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। होडल के नजदीक, नारनौल में नांगल दरगु के नजदीक, महेंद्रगढ़ में ख्वासपुर के नजदीक की पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। रात के अंधेरे में अवैध रूप से खनन की सबसे अधिक शिकायत नूंह जिले से आती हैं। वैसे, पत्थरों की चोरी की शिकायत सभी जिलों में है।

अरावली पर खनन से रोक का पहला आदेश 07 मई 1992 को जारी किया गया था। फिर सन 2003 में एमसी मेहता की जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में आई। कई-कई आदेश आते रहे लेकिन समाज और सरकार के लिए पहाड़ जब जमीन या धनार्जन का माध्यम रह गए हैं, तो पहाड़ों के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को लगातार जूझना ही पड़ रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2018 में जब सरकार से पूछा कि राजस्थान की कुल 128 पहाड़ियों में से 31 को क्या हनुमानजी उठा कर ले गए, तब भी कुछ नहीं हुआ। सितंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया कि वह 48 घंटे में अरावली पहाड़ियों के 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में चल रहे अवैध खनन पर रोक लगाए। दरअसल, राजस्थान के करीब 19 जिलों में अरावली पर्वतमाला निकलती है और यहां 45 हजार से ज्यादा वैध-अवैध खदानें हैं। इनमें से लाल बलुआ पत्थर का खनन बड़ी निर्ममता से होता है और उसका परिवहन दिल्ली की निर्माण जरूरतों के लिए अनिवार्य है। अभी तक अरावली को लेकर रिचर्ड मरफी का सिद्धांत लागू था। इसके मुताबिक सौ मीटर से ऊंची पहाड़ी को अरावली हिल माना गया और वहां खनन को निषिद्ध कर दिया गया था।

Published: undefined

लेकिन इस मामले में विवाद उपजने के बाद फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने अरावली की नए सिरे से व्याख्या की। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक, जिस पहाड़ का झुकाव तीन डिग्री तक है, उसे अरावली माना गया और इससे ज्यादा झुकाव पर ही खनन की अनुमति है। जबकि राजस्थान सरकार का कहना था कि 29 डिग्री तक झुकाव को ही अरावली माना जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यदि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के तीन डिग्री के सिद्धांत को माना होता तो प्रदेश के 19 जिलों में खनन को तत्काल प्रभाव से बंद करना पड़ता।

भूमाफिया की नजर दक्षिण हरियाणा की पूरी अरावली पर्वत श्रृंखला पर है लेकिन सबसे अधिक नजर गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूंह इलाके पर है। अधिकतर भूभाग भूमाफिया वर्षों पहले ही खरीद चुके हैं। वन संरक्षण कानून के कमजोर होते ही सभी अपनी जमीन पर गैर वानिकी कार्य शुरू कर देंगे। फिलहाल वे गैर वानिकी कार्य नहीं कर सकते। जहां पर वन संरक्षण कानून लागू होता है, वहां सरकार से संबंधित विकास कार्य ही केवल किए जा सकते हैं, फिर भी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के रहने के लिए इमारत तक नहीं बन सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 के फैसले में कहा था कि पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1900 के तहत आने वाली जमीन को वन भूमि माना जाएगा। इस तर्क के आधार पर ही कोर्ट ने 2018  में फरीदाबाद में आवासीय कॉलोनी कांत एन्क्लेव में सभी इमारतों को गिराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जब अपने सात जून 2021 के आदेश के क्रियान्वयन के लिए सरकारी अफसरों पर सख्ती दिखाई तो फरीदाबाद नगर निगम क्षेत्र में सूरजकुंड से सटे खोरी गांव में 80 एकड़ में फैले कोई दस हजार मकान आनन-फानन में तोड़ दिए गए और कोई साठ हजार लोगों को सड़क पर ला दिया गया। परंतु 22 अक्तूबर 2021 को ही हरियाणा सरकार ने कोर्ट को कहा कि अदालत का 2018 को फैसला कुछ गलत है और इसके पूरी तरह क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार असमर्थ है।

Published: undefined

अभी जब सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर से कम ऊंचाई के पहाड़ों पर खनन की अनुमति दी तो उसी की आड़ में गुपचुप अरावली वन क्षेत्र में बहुत सारे निर्माण को हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) ने वैध बना दिया। केन्द्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी (एफएसी) ने अरावली फॉरेस्ट में 67.68 हेक्टेयर भूमि पर बने सरकारी और अर्द्धसरकारी निर्माणों को सैद्धांतिक रूप से वैधता प्रदान कर दी है। इसके साथ ही ये निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत चल रही तोड़फोड़ की कार्रवाई के दायरे से बाहर हो गए हैं।

एफएसी की यह मंजूरी पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (पीएलपीए) की धारा-4 के तहत अधिसूचित अरावली वन क्षेत्र में पहले से मौजूद निर्माणों को डायवर्जन पॉलिसी के अंतर्गत एक्स पोस्ट फैक्टो क्लियरेंस के रूप में दी गई है। 20 नवंबर से 29 दिसंबर के बीच  सरकार ने न केवल कुछ नए खनन के ठेके उठा दिए, बल्कि रसूखदार लोगों के अरबों रुपये के निर्माण को भी वैध कर दिया। अरावली की पहाड़ी की गोदी में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) 1900 के तहत 17,39,907 हेक्टेयर जमीन है। इस अधिसूचित भूमि में गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल, अंबाला,  पंचकूला, यमुनानगर, रेवाड़ी, भिवानी, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़ और मेवात शामिल हैं। ऊपरी तौर पर, इन सब पर रोक लग गई है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined