विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः बंगाल कह रहा है, यूपी कहे, उससे पहले चले जाओ!

मान लेना बुलेट ट्रेन चल चुकी, तुम्हारा नया शानदार बंगला बन चुका, तुम उसमें रह चुके, सेंट्रल विस्टा बन चुका, मंदिर का सपना पूरा हो चुका। भारत के चप्पे-चप्पे पर तुम्हारा नाम खुद चुका। यहां तक कि 'न्यू इंडिया' भी बन चुका, पुराना लुप्त हो चुका। अब बस चले जाओ!

फाइल फोटोः पीटीआई
फाइल फोटोः पीटीआई 

हे, तात, तुम अब चले जाओ। गुजरात न जाना चाहो तो अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस चले जाओ।कनाडा के दरवाजे भी खुले हैं। अभी तो वीजा मिल जाएगा, बाद में प्राब्लम आएगी। ये जगहें रहने के लिए पसंद न हों तो मार्गदर्शक मंडल में जाकर पसर जाओ। वह भी तुम्हारा ही बनाया विश्राम गृह है, वहां रहने का सुख पाओ। वहां पिछले सात साल से जो सोये-ऊबे पड़े हैं, वे बाद में जो भी करें, गिरते-पड़ते शुरू में तो तुम्हारा स्वागत ही करेंगे। तुम्हें फूलमालाओं से लाद देंगे!

और तात, तुमने एक बार बताया था कि तुम फकीर हो और तुम्हारे पास एक झोला है और वह शायद अब तक फट भी चुका होगा। उसे लेकर तो तुम पैदल भी जा सकते हो। फकीर को कैसी और किसकी शरम? और झोला तुमसे न उठता हो तो साथ में अमित तो जाएगा ही। वह उठा लेगा। फकीर को पैदल जाने में शर्म आ रही हो तो कोई टैक्सी, आटोवाला रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट तक छोड़ आएगा। इसका वह तुमसे एक पैसा भी नहीं लेगा। कहेगा, आप जा रहे हो, यह देश पर ईश्वर की इतनी बड़ी कृपा है कि सौ रुपये तो मैं अभी अपनी जेब से निकाल कर आपको दे सकता हूं। शाम तक रुको तो दिनभर की कमाई सौंप दूंगा!

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और हां फकीर के पास झोला न हो, नोटों और कपड़ों से भरे पांच सौ सूटकेस हों, तो ट्रकों में भर कर ले जाना। पीएम केयर फंड का इस प्रकार उचित उपयोग हो जाएगा। हां अपने गंधाते कपड़ों का कूड़ा-करकट कृपा करके साथ ले जाना, उन्हें छोड़ने की मेहरबानी मत करना। देश पर वैसे ही तुम्हारी मेहरबानियां बहुत हैं। लेकिन तात, चले जाना। वक्त हो चुका है, घंटी बज चुकी है, फूट लेना!

तात, तुमसे तुम्हारी पार्टी के सांसदों को कहना पड़ जाए, संघ मजबूर हो जाए, कुर्सी को इधर- उधर से भूकंप के धक्के लगने लगें, उससे पहले पतली गली से निकल लेना। कोरोना मरीज और उनके परिवारजन तुमसे विनती करते-करते गुस्से से उबलने लगें, उससे पहले खिसक लेना। अभी जाओगे तो हो सकता है, कुछ मंत्री तुम्हारी विदाई में चार आंसू बहाएं, गले लगें, शुभकामनाएं दें। कुछ भक्त भावुक हो जाएं, इसलिए अभी ही निकल लेना!

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तात, मान लेना कि बुलेट ट्रेन चल चुकी, तुम्हारा नया शानदार बंगला बन चुका, तुम उसमें रह चुके, सेंट्रल विस्टा बन चुका, मंदिर का सपना पूरा हो चुका। भारत के चप्पे-चप्पे पर तुम्हारा नाम खुद चुका। यहां तक कि 'न्यू इंडिया' भी बन चुका, पुराना लुप्त हो चुका। सेल्सफियां तुम सारी ले चुके। दाढ़ी तुम बढ़ा चुके। ऋषि-मुनि और रवीन्द्रनाथ टैगोर जितना बन सकते थे, बन चुके। इसलिए तुम चले जाओ!

तात, मौसम अच्छा नहीं है। तुम्हारे रहने से मौसम और बिगड़ेगा, इसलिए चले जाओ। मन हो तो आखिरी बार वह हवाई जहाज तुम्हें छोड़ आएगा, जो तुमने अमेरिकी राष्ट्रपति जैसे ठाठ दिखाने के लिए खरीदा था। तात, ओ तात, तुम्हारी मात भी अब तुम्हें पुकार रही है, बेटा बहुत कर चुके देश सेवा। बिना फोटो खिंचवाए, घंटे-दो घंटे रोज बैठने के लिए आ जाना!

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हम अपने सारे गम भूल जाएंगे। आक्सीजन के बगैर हमारे जो आत्मीय मर चुके, अस्पताल में बेड न मिलने पर बाहर सड़क पर जो मर चुके, उनके परिजन भी अपना गम भूल जाएंगे, अगर तात तुम अभी चले गए। यह खुशी, हमारे गम हर लेगी। वैसे भी दिल्ली में तुम्हारी मेहरबानी से कोरोना बहुत फैल रहा है, तुम बचो और चले जाओ। हां केदारनाथ के दर्शन अभी खुले होंगे। वहां की गुफा में तपस्या करने फिर चले जाओ। वैसे अक्खा भारत मंदिरों से भरा पड़ा है, जहां चाहो, जाओ। वैसे फकीर तो मस्जिद की सीढ़ियों पर भी सो सकता है। झोला भी सुरक्षित, फकीर भी सुरक्षित, इसलिए तात तुम चले जाओ!

तात, अपने भक्तों की कोरोना से जान बचाने की खातिर ही चले जाओ। अभक्तों की जान भी इस बहाने बच जाएगी, इसका अफसोस किए बगैर चले जाओ। लोगों के खून के आंसुओं की बाढ़ में बेबस होकर बह जाने से पहले अच्छा है, पैदल ही चले जाओ। तात, चमचों के भुलावों में अब और मत आओ, चले जाओ। उनकी स्वार्थप्रेरित चिंता के लपेटे में मत आओ, बस चले जाओ!

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कोई कुछ नहीं कहेगा, कुछ नहीं पूछेगा, सब समझदार हैं, चले जाओ। तात, आखिरी और पहली बार प्रेस कांफ्रेस करके, इतिहास में अपना नाम करके चले जाओ। टीवी पर आखिरी बार छाने की मधुर याद में खोते हुए, अखबारों की अंतिम बार पहली लीड बनने का सुख लूट कर चले जाओ। गोदी चैनल तुम्हारी गोद से उतर कर किसी और की गोद में बैठ कर तुम्हें आंखें दिखाएं, ऐसे दिन देखने से पहले चले जाओ!

तात, अपना भविष्य हैल्थ बनाने में बनाओ। हैल्थ इज वैल्थ, इतना तो तुमने स्कूल में पढ़ा ही होगा। इस धरा पर सौ साल बोझ बनने के लिए चले जाओ। तात, देर हो रही है, चले जाओ। तात, बंगाल कह रहा है। यूपी भी यही कहे, इससे पहले चले जाओ। नफरत का जो तोहफा तुमने हमें दिया है, उसका शुक्रिया लिए बगैर चले जाओ। तात ओ तात, बहुत हो चुका, बस अब चले ही जाओ!

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