विचार

साफ-सुथरा नैरेटिव आकार ले रहा है भारत जोड़ो यात्रा से

कांग्रेस ने यूपीए सरकार के दौरान भी कई बेहतरीन काम किए जैसे मनरेगा, काम का अधिकार, मिड-डे मील वगैरह। लेकिन धारणा बन गई कि यह ऐसी पार्टी है जो गरीबों और दलितों से दूर हो रही है, भ्रष्टाचार में लिप्त है और किसानों के बजाय सत्ता के दलालों के फेर में पड़ी हुई है।

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की तस्वीर
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की तस्वीर 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय विट्ठलराव एन. गाडगिल से एक बार सवाल किया गया कि कांग्रेस की देश में कहां तक पहुंच है, तो इसका जवाब उन्होंने एक ही वाक्य में दे दिया था। उन्होंने कहा था कि आप किसी भी गांव में जाएं, वहां आपको तीन चीजें अनिवार्य रूप से मिलेंगी- डाकघर, पुलिस और कांग्रेस पार्टी। निश्चचित रूप से यह बहुत पहले की बात है। लेकिन जब तक कांग्रेस में जमीनी स्तर का वह जुड़ाव जिंदा रहा, पार्टी के पास लोगों को समझने, अपना आधार बनाने और अपना एजेंडा लोगों तक पहुंचाने की एक सुदृढ़ व्यवस्था थी। समय के साथ यह जुड़ाव घटता गया। यह बात भी सच है कि डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान ही बीजेपी देश की बड़ी पार्टी बनकर उभरी।

Published: undefined

पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह ने जो आर्थिक उदारीकरण शुरू किए थे, देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके लिए उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना सबसे जरूरी था। उस दौरान ही उदारीकरण, निजीकरण और सार्वभौमीकरण केन्द्र में आ गए। आज जब कांग्रेस अपने आप को खोल रही है, पार्टी की कमान लोकतांत्रिक तरीके से चुने नेता को सौंपने जा रही है तो कुछ आख्यानों को याद रखना जरूरी है। यह भारत की सबसे पुरानी पार्टी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। पार्टी को बदलाव की जरूरत है, आंतरिक लोकतंत्र इसमें तमाम अच्छी चीजें लाएगा।

कांग्रेस ने यूपीए सरकार के दौरान भी कई बेहतरीन काम किए जैसे मनरेगा, काम का अधिकार, मिड-डे मील वगैरह। लेकिन धारणा बन गई कि यह ऐसी पार्टी है जो गरीबों और दलितों से दूर हो रही है, भ्रष्टाचार में लिप्त है और किसानों के बजाय सत्ता के दलालों के फेर में पड़ी हुई है। इसका नतीजा यह रहा कि यह पार्टी देश के राजनीतिक परिदृश्य में बिल्कुल नीचे पहुंच गई।

Published: undefined

आज मीडिया में तथाकथित विद्रोही कांग्रेस नेताओं को महत्व दिया जा रहा है जिन्हें जी-23 कहा जा रहा है। इन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस आधार पर चुनौती दी कि गड़बड़ी उसकी वजह से है लेकिन इन जी-23 नेताओं ने इस बात को सुविधानुसार नजरअंदाज कर दिया कि उनमें से अधिकतर का आम लोगों से कोई वास्ता ही नहीं। इनमें से ज्यादातर नेता कांग्रेस के उस काल की पौध हैं जब पार्टी लोगों से दूर हो गई थी या कम-से-कम इसी रूप में देखी जाती थी। इन लोगों को जनता का वोट नहीं मिलने जा रहा। जब सब ठीक चल रहा हो, तभी जी-23 के ये नेता खुद भी चल सकते हैं।

Published: undefined

हालांकि जी-23 को पूरी तरह खारिज भी नहीं करना चाहिए लेकिन यह तो ध्यान में रखना ही होगा कि ये सभी उच्च संपर्क वाले नेता हैं, न कि आम लोगों के बीच के कि जनता की नब्ज को पकड़ सकें। कांग्रेस को आज एक ऐसे मुखिया की जरूरत है जो पार्टी में बुनियादी बदलाव कर सके और इसे मौजूदा सरकार के स्पष्ट विकल्प के तौर पर पेश कर सके। कोई संदेह नहीं कि इसके लिए सबसे पहले पूरे देश को फिर से जोड़ना होगा जो राहुल गांधी की 'भारत-जोड़ो' यात्रा की थीम है लेकिन इसके साथ ही अर्थ व्यवस्था, शांति-सौहार्द, अहिंसा और सतत विकास के विष्यों पर भी नई सोच की जरूरत है। और फिर इन्हें एक संदेश के तौर पर जनता के बीच रखना चाहिए, खासकर उत्तरी राज्यों में जहां बीजेपी ने पार्टी से उसकी जमीन हथिया ली है।

शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष पद के आकांक्षी के रूप में उभरे हैं लेकिन वह ऐसे व्यक्ति नहीं जैसे व्यक्ति की पार्टी के शीर्ष पर जरूरत है। वह जी-23 का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसका विरोध महज इसलिए नहीं किया जाना चाहिए कि उसने कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ बात की थी। लेकिन उन्हें उस असफल समूह के सदस्य के रूप में जाना जाना चाहिए जिसने जो भी पाया, वह पार्टी की वजह से था लेकिन उनका पार्टी में योगदान बहुत कम रहा। थरूरवाद ट्वविटर पर तो अच्छा हो सकता है लेकिन उससे वोट नहीं हासिल किए जा सकते, जनता से जुड़ा नहीं जा सकता या एक प्रभावशाली नए आख्यान को एक साथ नहीं जोड़ सकते जो समय की एक सख्त जरूरत है।

Published: undefined

दिलचस्प तरीके से, इस वक्त एक व्यक्ति जो अच्छा काम कर रहे हैं, वह हैं राहुल गांधी जो देशव्यापी पदयात्रा कर रहे हैं। उन्होंने इसे ‘तपस्या ’ कहा है। वह आम लोगों से फिर जुड़ने, उनका मन पढ़ने और यह खोजने का प्रयास कर रहे हैं कि वह और उनकी पार्टी उसे द्वेष और विभाजन को लेकर देश में गहरी गिरावट को किस तरह समझा सकते हैं।

राहुल गांधी की भाषा अच्छी लग रही है, उनके बयान अर्थ भरे हैं और भले ही असली परीक्षा तब होगी जब वह उत्तर भारत में प्रवेश करेंगे, अभी तो यही लगता है कि एक साफ-सुथरा नैरेटिव आकार ले रहा है। यह बहुत आसान तरीके से कहता है कि किसी भी हमवतन पर हमला भारत पर हमला है; तिरंगे का सम्मान जरूर होना चाहिए लेकिन उन मूल्यों का सम्मान भी जरूरी है जिसके लिए इसकी कल्पना की गई थी। ये कुछ स्पष्ट और साफ बातें हैं जो पार्टी और देश के पुर्ननिर्माण में दूर तलक मदद कर सकते हैं। अंत में, पार्टी उन लोगों को आकर्षित करेगी जो लोगों से अच्छे तरीके से जुड़े हुए हैं और वे वोट भी खींचेंगे।

अगर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उसी किस्म से सद्भाव हासिल करती रही जैसी उसे अभी मिल रही है, राहुल गांधी जन्मसिद्ध अधिकार के तौर पर नहीं बल्कि उचित ढंग से सम्मानजनक स्थिति पाने का दावा कर सकते हैं।

(जगदीश रतनानी पत्रकार और एसपीजेआईएमआर में फैकल्टी मेंबर हैं। ये उनके अपने विचार हैं। सौजन्य: The Billion Press)

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined