विचार

बिहार: चुनावों के बीच सियासी फिज़ा में उठता सवाल, बहुमत से दूर रहा एनडीए तो नीतीश छोड़ देंगे बीजेपी का साथ

ऐन लोकसभा चुनावों के बीच में बिहार के राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहा है कि अगर एनडीए बहुमत हासिल करने में नाकाम रहा और उसकी सीट संख्या 200 के आसपास सिमट गई तो एनडीए में बीजेपी के दोनों सहयोगी जेडीयू और एलजेपी का रुख क्या रहेगा। 

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

बिहार का लगभग आधा चुनाव हो चुका है। चौथे दौर तक 40 में से 19 सीटों पर मतदान पूरा हो गया है। इसके साथ ही यह चर्चा शुरु हो गई है कि चुनाव बाद बिहार की राजनीतिक तस्वीर क्या बनने वाली है।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

सबसे बड़ा सवाल जो उठ रहा है अगर एनडीए बहुमत हासिल करने में नाकाम रहा और उसकी सीट संख्या 200 के आसपास सिमट गई तो एनडीए में बीजेपी के दोनों सहयोगी जेडीयू और एलजेपी का रुख क्या रहेगा। चर्चा है कि नीतीश कुमार की वजह से जेडीयू को तो कुछ सीटें हाथ लग जाएंगी, लेकिन एलजेपी के सामने अस्तित्व का संकट आ जाएगा।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

जैसा कि आशंका है कि लोक जनशक्ति पार्टी के सुप्रीमो राम विलास पासवान के दोनों भाई और बेटा हाजीपुर, समस्तीपुर और जमुई से हार गए, तो बिहार में पासवान परिवार की राजनीति का अंत हो जाएगा। और अगर ऐसा होता है तो दलितों के मसीहा के तौर पर खुद के पेश करते रहे राम विलास को असम से राज्यसभा भेजने का चुनाव से पहले किया गया वादा भी तोड़ा जा सकता है।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

दरअसल पिछले साल दिसंबर में बीजेपी और जेडीयू के बीच तय समझौते में बिहार की 40 में से 17-17 सीटों पर जेडीयू-बीजेपी और 6 पर एलजेपी को चुनाव लड़ने पर मुहर लगी थी। यह भी कहा गया था कि राम विलास पासवान को राज्यसभा में भेजा जाएगा।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

बिहार की अलग-अलग लोकसभा सीटों से जो खबरें आ रही हैं ससे संकेत मिलते हैं कि एलजेपी अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। राजनीतिक विश्लेषण बताते हैं कि बहुत अच्छा प्रदर्शन रहा तो एलजेपी एक या दो सीट जीत सकती है, और बुरे हालात में इसका सफाया हो सकता है।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले यह एकदम उलट स्थिति है, जब एलजेपी ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा था और 6 पर जीत हासिल की थी। वहीं उस समय एनडीए में रही आरएलएसपी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीनों सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने 22 सीटों पर बाजी मारी थी।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब राम विलास पासवान ऐसे हालात का सामना कर रहे हैं। और इन हालात के लिए किसी और को नहीं बल्कि खुद राम विलास पासवान को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। 2009 के चुनाव में एलजेपी के हिस्से में एक भी सीट नहीं आई थी, साथ ही कांग्रेस-आरजेडी-एलजेपी गठबंधन का सफाया हो गया था। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए ने सत्ता में वापसी की थी। लेकिन बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने कुल 32 सीटें जीती थीं। इनमें से 20 पर जेडीयू और 12 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी।

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इसके बाद रामविलास पासवान ने लालू प्रसाद यादव से मदद मांगी थी और उन्होंने पासवान को राज्यसभा भेजा था। हालांकि बिहार से राज्यसभा सीट के लिए कई लोग कतार में थे, जिनमें आरजेडी के राम कृपाल यादव भी थे।

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वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी का एक तरह से सफाया हो गया था। हालांकि इस चुनाव में आरजेडी भी सिर्फ 22 सीटें ही जीत पाई थी, जबकि एनडीए ने 243 में से 206 पर जीत हासिल की थी।

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दरअसल राम विलास पासवान इतनी बार पाला बदल चुके हैं कि शायद उन्हें खुद भी याद नहीं होगा। फरवरी 2014 के तीसरे सप्ताह तक कोई सोच भी नहीं सकता था कि पासवान मोदी कैंप में चले जाएंगे। लेकिन गिरिराज सिंह जैसे नेताओं के विरोध के बावजूद बीजेपी ने उन्हें अपने खेमे में जगह दे दी थी।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

लेकिन, इस बार सवाल यही बार-बार उठ रहा है कि अगर एनडीए बहुमत से दूर रहा तो जेडीयू का क्या करेगा। राजनीतिक पंडितों को लगता है कि नीतीश एक बार फिर यू-टर्न मार सकते हैं। वैसे भी 2009 में वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के नाम पर यूपीए का समर्थन कर बैठे थे, इस बार भी वह ऐसा ही कर सकते हैं।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

प्रशांत किशोर के जेडीयू उपाध्यक्ष बनने के बाद पार्टी ने अपने दरवाजे कांग्रेस और दूसरे विपक्षी नेताओं के लिए खुले ही रखे हैं। प्रशांत किशोर कई मौकों पर कह भी चुके हैं कि उन्होंने तो चुनाव से पहले ही बीजेपी की पांच सीटें कम कर दीं। 2014 में बीजेपी ने 22 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार वह चुनाव सिर्फ 17 पर लड़ रही है। यह संख्या और कम ही होने की संभावना है क्योंकि सभी 17 सीटों पर तो बीजेपी को जीत नहीं हासिल होने वाली।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

फिर भी बीजेपी में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो दिन में सपने देख रहे हैं। मसलन अभी दो दिन पहले पटना से बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दावा किया कि बीजेपी 400 सीटें जीतेगी।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

दावे और प्रति दावों का दौर जारी है। लेकिन हकीकत यह है कि बिहार में बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता दोनों मायूस दिखने लगे हैं, क्योंकि जेडीयू और एलजेपी की तरह उनकी पार्टी के पास तो पाला बदलने की भी गुंजाइश नहीं है।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

वैसे भी बीजेपी और जेडीयू के बीच खटपट अब सार्वजनिक मंचों पर दिखने लगी है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वंदे मातरम नारे पर नीतीश कुमार चुप रहे थे। पीएम ने कई बार नारा दोहराया लेकिन नीतीश टस्स से मस नहीं नहीं हुए। नीतीश के इस रवैये को राजनीतिक विश्लेषक एनडीए की 2009 की पंजाब रैली से जोड़ रहे हैं जब नीतीश ने काफी बेदिली से हाथ जोड़े थे।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

इसके बाद ही वोटों की गिनती शुरु होने से पहले वाली शाम को नीतीश ने यह कहकर सबको चौंका दिया था कि वह उस गठबंधन का समर्थन करेंगे जो बिहार के विशेष राज्य का दर्जा देगा। नीतीश के इस बयान से बीजेपी नेता सकते में आ गए थे। यह अलग बात है कि नतीजों में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए की सत्ता में वापसी हुई थी और नीतीश को बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में ही रहना पड़ा था।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

लेकिन यह साथ ज्यादा नहीं चला और सिर्फ 13 महीने बाद उन्होंने अपने इरादे साफ कर दिए जब नरेंद्री मोदी और आडवाणी समेत कई नेताओं के लिए आयोजित डिनर को रद्द कर दिया गया। 4 महीने बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव फिर से बीजेपी के साथ लड़ा था। लेकिन 3 साल बाद ही उन्होंने बीजेपी के सभी 11 मंत्रियों को बरखास्त कर दिया और बीजेपी से नाता तोड़ लिया।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

इन सब बातों के मद्देनजर नीतीश का अगला कदम क्या होगा, राजनीतिक पंडित भी इसका अनुमान नहीं लगा पा रहे।

Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST

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Published: 04 May 2019, 3:07 PM IST