विचार

Budget 2023: सरकार को समावेशी और निर्धन पक्षीय बजट करना चाहिए पेश, ताकि न्याय-समता आधारित विकास की खुल सके राह

अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों, अपंगता प्रभावित व्यक्तियों के लिए अनेक विशेष कार्यक्रम चले तो हुए हैं पर उनकी बजटीय स्थिति मजबूत नहीं रही है। ऐसे अनेक कार्यक्रमों को बजट से उम्मीद है।

फोटो: संसद टीवी
फोटो: संसद टीवी 

विश्व स्तर पर चर्चा है कि कोविड और लॉकडाऊन का सबसे प्रतिकूल असर निर्धन वर्ग को झेलना पड़ा है और उनमें बेरोजगारी तेजी से बढ़ी व आय कम हुई है। परिणामस्वरूप वे कर्जग्रस्त भी अधिक हुए और ऊंची दर के ब्याज का बोझ भी उन पर बढ़ गया। यह स्थिति भारत में और भी गंभीर रूप में देखी गई है, क्योंकि यहां विविध कारणों से निर्धन वर्ग की स्थिति कोविड के दौर से पहले भी कठिन ही चल रही थी। जिस स्थिति में प्रवासी मजदूर पैदल चल कर दिल्ली से बुंदेलखंड के अपने गांवों में पहुंचे हैं या अन्य दूर-दूर की पैदल यात्राएं बच्चों और महिलाओं सहित की है, उससे ही पता चल जाता है कि लॉकडाऊन के समय लोगों का दुख-दर्द कितना गहरा था।

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उस स्थिति में विश्व स्तर पर इसकी बहुत चर्चा रही है कि कोविड और लॉकडाऊन के बाद जो रिकवरी या आर्थिक संकट से बाहर निकलने का दौर है वह समावेशी होना चाहिए और निर्धन वर्ग भी संकट से उबर सके इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। शीघ्र प्रस्तुत होने वाले बजट में केन्द्रीय सरकार के पास एक अच्छा अवसर है कि वह ऐसे समावेशी और निर्धन पक्षीय बजट को प्रस्तुत करे। इससे न्याय और समता आधारित विकास के नए अवसर मिलेंगे और मौजूदा बढ़ती विषमताओं के दौर से अलग एक उम्मीद की राह नजर आएगी।

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नैशलन सोशल अस्सिटेंस प्रोग्राम (राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम) के अन्तर्गत वृद्ध नागरिकों, विधवा महिलाओं तथा अपंगता प्रभावित व्यक्तियों के लिए पेंशन प्रदान की जाती है, पर यह पेंशन राहत इस महंगाई के दौर में बहुत ही कम है। यदि कोविड के विशेष पैकेज को छोड़ दिया जाए तो इस पेंशन कार्यक्रम के बजट में बहुत समय से कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, जिसका अर्थ यह है कि महंगाई के असर को मिला कर देखा जाए तो वास्तविक अर्थ में उसके लिए उपलब्ध राशि कम हुई है। दूसरी ओर उन लोगों की संख्या बढ़ी है जिन्हें यह पेंशन चाहिए। इस स्थिति में अनेक पेंशन प्राप्त करने वाले निर्धन व्यक्तियों की पेंशन रुक गई है और अनेक के आवेदन बहुत समय से अटके हुए हैं। अतः इस कार्यक्रम के लिए बजट बढ़ाना बहुत जरूरी हो गया है।

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पोषण कार्यक्रमों में कई तरह के सुधारों की बात कही गई है जैसे मिड-डे मील में ब्रेकफास्ट या नाश्ते को भी जोड़ना, ऊंची कक्षा के छात्रों तक भी इस कार्यक्रम को ले जाना, आंगनवाड़ी को अधिक बेहतर करना पर इन सुधारों की चर्चा के बावजूद, यदि कोविड के विशेष पैकेज को छोड़ दिया जाए तो पोषण कार्यक्रमों के लिए कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है और महंगाई के असर को मिला कर देखा जाए तो इनके बजट में गिरावट आई है। इस स्थिति में जिन सुधारों की चर्चा हो रही है, वे सुधार कैसे आ सकेंगे? अतः पोषण कार्यक्रमों के बजट को बढ़ाना अति आवश्यक है।

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शिक्षा और स्वास्थ्य को विकास के अति महत्त्वपूर्ण क्षेत्र मानते हुए प्रायः यह माना जाता है कि इनका बजट आवश्यकता के अनुकूल रखना बहुत जरूरी है। पर भारत में एक बड़ी समस्या यह रही है कि विश्व स्तर पर इसके जो न्यूनतम मानक हैं कि जीएनपी का कितना प्रतिशत सरकार द्व्रारा शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च हो, भारत में (केन्द्र व राज्य सरकारों का खर्च मिलाकर) इन मानकों तक भी हम नहीं पहुंच पाए हैं। सरकारी स्तर पर भी यह स्वीकार किया जाता है कि यह संतोषजनक स्थिति नहीं है, पर उचित मानकों तक पंहुचने का रोडमैप यदि तैयार भी होता है तो हम उसका पालन नहीं कर पाते हैं। सरकार को अब इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। पर साथ में यह भी जरूरी है कि शिक्षा और स्वास्थ्य को मुनाफाखोरों से मुक्त किया जाए। यह दो क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें राष्ट्रीय हित में मुनाफाखोरों से मुक्त रखना बहुत जरूरी है पर यहां मुनाफाखोरी तेजी से बढ़ी है। हमें स्वास्थ्य और शिक्षा के बजट को बढ़ाते हुए साथ में यह ध्यान में रखना है कि निर्धन परिवार और जनसाधारण को सहज शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध हो। यदि इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो मुनाफाखोर ही बजट में हुई बढ़ोतरी को खा जाएंगे। सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति सुधारने के लिए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, और निर्धन छात्रों की छात्रवृत्तियों के लिए बेहतर सहायता की जरूरत है।

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अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों, अपंगता प्रभावित व्यक्तियों के लिए अनेक विशेष कार्यक्रम चले तो हुए हैं पर उनकी बजटीय स्थिति मजबूत नहीं रही है। ऐसे अनेक कार्यक्रमों को बजट से उम्मीद है कि आखिर इस बजट में तो उन्हें बेहतर संसाधन अवश्य उपलब्ध करवाए जाएंगे क्योंकि उनकी जरूरी मांगें बहुम समय से लंबित हैं।

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इसके अतिरिक्त पर्यावरण और आपदा-प्रबंधन के क्षेत्र में भी बेहतर बजट की बहुत जरूरत है और इसे भी निर्धन वर्ग व जनसाधारण की जरूरतों से अधिक जोड़ना चाहिए ताकि पर्यावरण रक्षा के कार्य भी न्याय व समता आधारित ही रहें। यदि शाश्वत ऊर्जा क्षेत्र में मंगल टरबाईन जैसे अपने ही देश के आविष्कार को भी आगे बढ़ाया जाए तो यह सोने पर सुहागा होगा और प्रशंसनीय भी होगा।

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