विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः तमाम आयुर्वेदिक इलाज, यज्ञ और तंत्रमंत्र के बावजूद बीजेपी का हाजमा नहीं हो रहा दुरुस्त

बीजेपी बहुत जल्दी मेंं है, जैसे एक ही टॉयलेट होने पर सुबह-सुबह दैनिक कर्म निपटाने से पहले कभी-कभी विकट स्थिति हम सबके सामने पैदा हो जाती है। तब धीरज रखना ज्यादा बड़े संकट को आमंत्रित करना हो जाता है और बड़े-बूढ़ों का धैर्यवादी सिद्धांत खुद उनके काम नहीं आता।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

वोट तो हम भी अब तक देते आ रहे हैं और आप भी जरूर देते होंगे और देते रहिए भी मगर वोट को दान-पुण्य समझकर देंगे तो दुखी नहीं रहेंगे। वैसे भी वोट देने को हिंदी में 'मतदान' यानी 'मत' का 'दान' कहते हैं। इतनी स्पष्टता के बावजूद हम जैसे कुछ मूरख समझते हैं कि हम 'मत' का 'दान' नहीं बल्कि जनतंत्र को मजबूत करने का महान और क्रांतिकारी दायित्व निभा रहे हैं!

हम भूल जाते हैं कि लोकतंत्र की जो महान परंपरा गयाराम नामक 'महान' हरियाणवी विधायक ने दिन में तीन बार दलबदल करके आरंभ की थी, वही अब खूब फल और फूल रही है। वोट आप देते हैं, परंपरा गयाराम जी की आगे बढ़ती है। उन्हीं की कृपा से आज 'आयाराम-गयाराम' जैसा मौलिक मुहावरा हिंदी में प्रचलित है।

फिर अपने राज्य की उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री भजनलाल ने पूरी की पूरी पार्टी का दलबदल करवाने की नजीर दशकों पहले पेश की, जिसकी नकल अब जाकर बीजेपी जोरशोर से करके फूली नहीं समा रही है, जैसे कि यह उसका बड़ा ही मौलिक योगदान भारतीय राजनीति को है।

Published: 14 Jul 2019, 7:59 AM IST

तो इस प्रकार भाइयों-बहनों, वोट जरूर देना मगर यह समझकर मत देना कि हम किसी विचारधारा या किसी सिद्धांत को या ज्यादा बेईमान की अपेक्षा कम बेईमान को वोट दे रहे हैं।विचारधारा, सिद्धांत और कम-अधिक बेईमानी सीरियल के दो ताजे ऐपिसोड देखकर आपका रहा-सहा भ्रम भी टूट जाना चाहिए। ये सब अब बीते जमाने के सड़े-गले सिद्धांत हैं और इनकी कोई प्रासंगिकता अब विधायकों-सांसदों के लिए नहीं है।

तो फिलहाल कर्नाटक का राजनीतिक 'कर-नाटक' आप देख रहे हैं, उधर गोवा का नाम अभी वैसे गोवा ही है और ऊपर वाले ने चाहा तो भविष्य में भी गोवा ही रहेगा, मगर वहां भी 'कर-नाटक' हो रहा है। कोई आश्चर्य नहीं, इसका प्रचार-प्रसार अन्य गैरभाजपाई राज्यों में भी यथासंभव शीघ्र हो।

Published: 14 Jul 2019, 7:59 AM IST

बीजेपी बहुत ही जल्दी मेंं है, जैसे कि एक ही टॉयलेट होने पर सुबह-सुबह दैनिक कर्म निपटाने से पहले कभी-कभी विकट स्थिति हम सबके सामने पैदा हो जाती है। तब धीरज रखना ज्यादा बड़े संकट को आमंत्रित करना हो जाता है और बड़े-बूढ़ों का धैर्यवादी सिद्धांत खुद उनके काम नहीं आता! बीजेपी पिछले पांच साल से उसी विकटावस्था में जी रही है और तमाम आयुर्वेदिक इलाज, यज्ञ और तंत्रमंत्र के बावजूद उसका हाजमा दुरुस्त नहीं हुआ है।

अभी भी इलाज की उसी पद्धति पर अड़ी हुई है, जबकि यह रोग एलोपैथिक इलाज से दुरुस्त हो तो हो। हो जाए तो ठीक वरना अभी तक तो नेता ही अपना इलाज करवाने अमेरिका जाते रहे हैं, अब पार्टियों को भी अपना इलाज करवाने वहां जाना पड़ सकता है और बीजेपी यह श्रेय ले उड़ेगी कि 'जो सत्तर साल में नहीं हुआ, वह हमने पांच साल में कर दिखाया है'।

Published: 14 Jul 2019, 7:59 AM IST

तो भाइयों-बहनों दो-चार-दस-बीस या मान लीजिए सौ नेताओं का सिद्धांत यह होता होगा कि हम कांग्रेसी या भाजपाई या सपाई होकर जिए हैं तो मरेंगे भी उसी तरह। कई बार सिद्धांत भी जगत की तरह परिवर्तनशील होते हैं। जिसने कसम खाई थी दो साल पहले कि वह कांग्रेसी है और कांग्रेसी के रूप में ही वह मरेगा, वह 'कर-नाटकी' होकर बीजेपी के साथ जीने और मरने की कसम खाने लग जाता है। सिद्धांत वही है, बस पार्टी बदल गई है और फिर से बदल सकती है।

वैसे सिद्धांत और व्यवहार में फांक मानव स्वभाव है। सिद्धांत तो अनमनीय रहता है, मगर व्यवहार अत्यंत नमनीय हो जाता है। सिद्धांत पर अड़े रहकर आप महात्मा गांधी या भगत सिंह बनने का सपना देख सकते हैं, जिसकी अंतिम परिणति गोली खाना या फांसी पर चढ़ना हो सकता है, मगर जान देने पर भी कोई आपको महात्मा गांधी या भगत सिंह मान लेगा, इसकी गारंटी शून्य प्रतिशत है।

Published: 14 Jul 2019, 7:59 AM IST

वैसे इसे माइनस जीरो परसेंट कहना सत्य के अधिक करीब होगा। मोदी युग में कोई 'देशद्रोही' या 'अरबन नक्सलाइट' तो सहज भाव से बनाया जा सकता है, मगर गांधी और भगत सिंह उसे बनने नहीं दिया जा सकता। अगर बनना ही है तो उसके लिए भारत को अंग्रेजों का गुलाम फिर से बनना होगा और अंग्रेज यह गलती करने को अब तैयार नहीं।अपना खुद का घर वे संभाल लें, यही उनके लिए काफी है।

तो भाइयों-बहनों यह भ्रम बनाए रखिए कि वोट से कुछ होने-बदलने वाला है, क्योंकि भ्रम हमेशा लाभदायक सिद्ध होता है। भ्रम आक्सीजनविहीन राजनीतिक वातावरण में जीने का संबल प्रदान करता है। भ्रम न होता तो क्या हम कभी कविता लिखने और छपाने की हिम्मत कर पाते? अरे कविता को मारिए गोली, व्यंग्य लिख पाते और आज भी लिखे जा रहे हैं या नहीं!

भ्रम न होता तो हम इक्कीस साल की उम्र से आज तक वोट देते चले आते? तो आनंद से भ्रम में रहिए और वोट दीजिए और अगर आपका एकमात्र लक्ष्य स्थिर सरकार बनाना है तो देश में एक ही पार्टी फिलहाल है, उसे वोट दीजिए। वैसे आप वोट किसी भी पार्टी को दीजिए, सरकार अंततः बीजेपी की बनेगी, इस बारे में संदेह मुक्त रहिए। यह भजनलाल के आगे का भजन है, बीजेपी का आविष्कार है।

Published: 14 Jul 2019, 7:59 AM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 14 Jul 2019, 7:59 AM IST