विचार

7 बरस-इंडिया बेबस: अब तो मोदी-शाह के घर गुजरात में ही लोग कह रहे, 'मेरा साहेब नंगा...'

आम तौर पर कृष्ण और राधा को समर्पित गीतों की ही रचना करने वाली गुजराती कवयित्री पारुल खक्कर की ‘शव वाहिनी गंगा’ रचना ने तो देश भर में ही मोदी-शाह को एक्सपोज कर दिया है। इसका हिंदी, पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेजी, मलयालम समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

गुजराती अखबारों की तस्वीर
गुजराती अखबारों की तस्वीर 

पारुल खक्कर की कविता ‘शव वाहिनी गंगा’ ही वह कांटा नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी को चुभ रहा है, आम तौर पर केंद्र और राज्य सरकारों पर टेढ़ी नजर न डालने वाले गुजरात के अखबार भी इन दिनों लोगों की व्यथा बताते हुए इनकी बखिया उधेड़ रहे हैं।

गुजराती में गुजरात समाचार सबसे अधिक बिकने वाला दैनिक अखबार है। अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, भुज, भावनगर, जामनगर और, यहां तक कि, मुंबई से भी उसके संस्करण हैं। अभी हाल में उसके सम्पादकीय का शीर्षक थाः ‘प्रधानमंत्री का उगता सूरज अस्त हो रहा है’। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट की जो वजहें इसमें बताई गईं, वे हैं: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कोरोना महामारी से निपटने में भारी लापरवाही, मोदी का आत्ममुग्ध और अहंकार भरा व्यवहार, उनके सनक भरे फैसले, महामारी के रामबाण के तौर पर अवैज्ञानिक और दकियानूसी रिवाजों को प्रोत्साहन।

वैसे, आम तौर पर कृष्ण और राधा को समर्पित गीतों की ही रचना करने वाली गुजराती कवयित्री पारुल खक्कर की ‘शव वाहिनी गंगा’ रचना ने तो देश भर में ही मोदी-शाह को एक्सपोज कर दिया है। इसका हिंदी, पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेजी, मलयालम समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

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ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसी अखबार ने महामारी के संकट में सरकारी कुप्रबंधन का खुलासा करना आरंभ किया है। सभी प्रमुख बल्कि मध्यम और छोटे स्तर के गुजराती अखबार भी ऐसी ग्राउंड रिपोर्ट छाप रहे हैं जो सरकारी दावों के बरक्स लोगों की दिक्कतों को सामने ला रहे हैं। सभी प्रमुख शहरों से निकलने और काफी प्रसार वाले एक अन्य दैनिक‘गुजरात संदेश’ ने भी लिखा है कि गुजरात सरकार कोविड-19 से मरने वाले लोगों की संख्या छिपा रही है।

दैनिक भास्कर तो देश भर में जगह-जगह से ग्राउंड रिपोर्ट कर उस सच्चाई को सामने ला ही रहा है जो केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारें छिपाने-दबाने का हर संभव प्रयास कर रही हैं, उसके गुजराती संस्करण दिव्य भास्कर ने खुलासा किया है कि इस साल 71 दिनों में 1.23 लाख मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए गए जबकि सरकार ने इस अवधि में कोविड- 19 से मरने वालों की संख्या सिर्फ 4,218 दर्ज की है। अखबार ने यह भी बताया है कि 58,000 मृत्युप्रमाण पत्र 1 मार्च से 10 मई, 2020 के बीच जारी किए गए जबकि इस साल इसी अवधि में मरने वालों की संख्या दोगुनी है। नवसारी, वलसाड, सूरत, भरूच, वडोदरा, अहमदाबाद, गांधीनगर, राजकोट, भावनगर, जामनगर और भुज में कोरोना प्रोटाकॉल के तहत सामूहिक तौर पर किए गए अंतिम संस्कार को लेकर भी गुजराती अखबारों ने ग्राउंड रिपोर्ट छापी हैं।

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वैसे, सरकारी अस्पताल रोगियों की मौत की वजह हाइपर टेंशन, हार्ट अटैक या किडनी के काम करना बंद करना बता रहे हैं और इसी बहाने कोरोना से मौत की संख्या कम बताई जा रही है। दिव्य भास्कर ने मरने वाले लोगों के रिश्तेदारों से बातचीत के आधार पर सर्वे कर बताया है कि अस्पताल वैसी मेडिकल रिपोर्ट देने से मना कर रहे हैं जिसमें मृत्यु की वजह और किए गए इलाज के विवरण हों। विभिन्न अखबारों में इस तरह की रिपोर्ट की वजह से ही गुजरात हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर स्वयं कार्यवाही की और जांच की संख्या, दवाओं की उपलब्धता और गंभीर मरीजों को भर्ती करने में अस्पतालों की लालफीता शाही पर राज्य सरकार को लताड़ लगाई।

अखबार इस वक्त सरकार को एक्सपोज करने में जरा भी नहीं चूक रहे। जब रेमडेसिविर की किल्लत हो गई थी, तब राज्य भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल सूरत में अपने पार्टी कार्यालय से रेमडेसिविर के वायल बांट रहे थे। इस पर दिव्य भास्कर ने पेज-1 की मुख्य हेडलाइन में उनका मोबाइल नंबर ही छाप दिया ताकि लोग उनसे सीधे संपर्क करें। जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी में कई ऐसे लोगों के नाम सामने आए जिनके भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से रिश्ते जगजाहिर हैं। अखबारों ने उनके नाम साफ- साफ छापे।

इतना ही नहीं। कुछ गांवों में खेतों में बेड लगा दिए गए। वहां नर्सिंग या पैरा मेडिकल स्टाफ तो नहीं थे लेकिन पंचायत पदाधिकारियों और होमगार्ड जवानों को तैनात कर दिया गया। गुजराती अखबारों ने वहां की तस्वीरें छाप दीं। एक ने तो ऐसे एक ही एम्बुलेंस के छायाचित्र छापे जिन्हें राज्य सरकार ने एक ही दिन दो शहरों में तैनात किए जाने का दावा किया था।

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