विचार

कृषि कानून: अपने बयानों से सरकार की राह में कांटे पैदा कर रहे मंत्री, PM की साख बचाना अब BJP का मिशन!

किसान केंद्र सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं, तो इसकी बड़ी वाजिब वजह है। दरअसल, मोदी और उनके मंत्रियों ने समय-समय पर तरह- तरह की बातें कहकर हालात खुद ही जटिल बना दिए हैं।

फोटो: Getty Images
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यह उम्मीद करनी चाहिए कि नए साल में किसानों के साथ कोई समझौता हो जाएगा। बस, मंत्रियों के सामने पहाड़ सा काम यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा कैसे बचा लिया जाए। पिछली बैठकों से अलग, इस बार 30 दिसंबर को हुई बैठक के दौरान सरकारी पक्ष इसीलिए किसी भी तरह समझौता कर आंदोलनकारी किसानों को मनाने में लगा हुआ था। बैठक में भाग लेने वाले एक किसान नेता ने कहा भीः ‘कानूनों की वापसी के अतिरिक्त अन्य विकल्पों को लेकर मंत्री बार-बार बात कहते रहे।’ साफ है कि सरकार खुद गहरी चिंता में है। फिर भी, किसान केंद्र सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं, तो इसकी बड़ी वाजिब वजह है। दरअसल, मोदी और उनके मंत्रियों ने समय-समय पर तरह- तरह की बातें कहकर हालात खुद ही जटिल बना दिए हैं।

कोई विचार-विमर्श नहीं: प्रधानमंत्री की गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताते रहने वाले मोदी की वेबसाइट के अनुसार, मोदी ने 2020 में विभिन्न अवसरों पर 209 भाषण दिए। लेकिन 17 सितंबर का तीन कृषि कानून पास किए जाने से पहले उन्होंने किसी भी भाषण में इन कानूनों के बारे में नहीं बताया। जब किसानों का आंदोलन दिल्ली के मुहाने तक पहुंच गया और पानी सिर से ऊपर गुजरने को आया, तब मोदी कहने लगे कि व्यापक विचार-विमर्श के बाद ये कानून तैयार किए गए हैं। जबकि कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण मंत्रालय ने एक आरटीआई में जानकारी दी है कि उनके पास इन कानूनों को लेकर किए गए किसी विचार-विमर्श की कोई सूचना नहीं है। वैसे, आंदोलनरत किसानों से भी मोदी ने कोई बात नहीं की है।

फायदे की बात तो बताएं: 3 अक्टूबर को सोलंग में अभिनंदन कार्यक्रम में मोदी ने इन कानूनों को छोटे किसानों के लिए फायदेमंद बताया क्योंकि वे अपनी फसल देश में कहीं भी और किसी को भी बेच सकते हैं। उन्होंने उदाहरण भी दिया, ‘कुल्लू, शिमला या किन्नौर में उत्पादकों से 40-50 रुपये प्रतिकिलो की दर से खरीदा जाने वाला सेब दिल्ली में 150 रुपये प्रतिकिलो की दर से बिकता है। यह जो लगभग 100 रुपये का अंतर है, वह कहां जाता है?’ दो बातें देखनी चाहिए। एक, किसी फसल को कहीं भी बेचने की सुविधा तो पहले से ही उपलब्ध है। पंजाब के फाजिल्का के छोटे किसान रूपिंदर कुमार कहते भी हैं: ‘यह सुविधा तो पहले से ही उपलब्ध है।

इसे लेकर नए कानून की जरूरत ही क्या थी?’ दो, नए कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है जिससे यह सुनिश्चित हो कि कोई कंपनी किस न्यूनतम मूल्य पर कोई उत्पाद खरीदेगी और इसका मतलब है कि अब भी पता नहीं चलेगा कि फायदे का अंतर क्या होगा, सरप्लस होने पर उसे कौन रखेगा और इससे उपभोक्ता को क्या फायदा होगा। वैस भी, यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि इन्हीं सब वजहों से हिमाचल के सेब उगाने वाले किसान भी आंदोलन कर रहे किसानों में शामिल हैं।

सरकार को रोका किसने थाः 12 दिसंबर को फिक्की के समारोह में और 15 दिसंबर को गुजरात तथा 18 दिसंबर को मध्यप्रदेश के किसानों को संबोधित करते हुए मोदी ने दो बातें खास तौर पर कहीं: पहला- मुझे नहीं लगता कि संसद से पारित इन कृषि सुधारों में ऐसा कुछ है जिसपर अविश्वास हो या इनके असत्य होने की बात मन में आए; और दूसरा- किसानों को उन्नत और आधुनिक टेक्नोलॉजी का फायदा मिलेगा। अविश्वास और असत्य के लिए तो, खैर, कई उदाहरण हैं: मसलन, हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख आना, नोटबंदी से काले धन का खत्म हो जाना, हर साल दो करोड़ लोगों के रोजगार की व्यवस्था, कोरोना से 21 दिनों में काबू पा लेना आदि। जहां तक टेक्नोलॉजी आदि के उपयोग के अवसर की बात है, सरकार को यह भी बताना चाहिए कि उसे या निजी कंपनियों को किसानों के आसपास ही प्रोसेसिंग यूनिट और कोल्डस्टोरेज- जैसे इन्फ्रास्ट्राक्चर विकसित करने से किसने रोक रखा था? किसान तो खुद ही वर्षों से इसकी मांग करते रहे हैं।

एमएसपी को लेकर गलत दावेः मोदी का यह भी दावा है कि उनकी सरकार ने यूपीए की तुलना में न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) अधिक बढ़ाया है और एमएसपी तय करने के लिए स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले को अपनाया है। भक्त इसे लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के आंकड़े भी हाजिर कर रहे हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर यह भी दावा करते हैं कि स्वामीनाथन कमिटी की 201 में से 200 सिफारिशों को मोदी के नेतृत्व में लागू कर दिया गया है। खेती-किसानी और ग्रामीण क्षेत्र की वर्षों से रिपोर्ट करने वाले प्रसिद्ध पत्रकार पी साईनाथ ने आंदोलन कर रहे किसानों के बीच पहुंचकर इन दावों की परतें खोल कर रख दीं। उनका कहना हैः ‘भाजपा ने 2014 के घोषणापत्र में कहा था कि सत्ता में आने पर 12 महीने के अंदर स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करेंगे। लेकिन सत्ता में आने पर कुछ किया तो नहीं ही, ऊपर से कोर्ट में एफिडेविट दे दिया कि“हम यह सब नहीं कर सकते हैं- यह अच्छी चीज नहीं है, इससे पूरा मार्केट खराब हो जाएगा”।

2016 में तो सरकार ने इससे भी इनकार कर दिया कि ऐसा कोई वादा किया भी गया था। उस समय के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने सार्वजनिक तौर पर पूरी तरह झूठ ही बोल दिया कि हमने ऐसा कोई वादा किया ही नहीं था। 2017 में सरकार ने साफ कह दिया कि स्वामीनाथन को भूल जाओ। फिर, 2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली में अपने बजट भाषण में कह दिया कि जो वादे किए थे, उन्हें पूरा कर दिया गया है। इसमें किया क्या था? उत्पादन लागत तीन-चार तरीके में ले सकते हैं न! स्वामीनाथन ने कहा है कि पूरी उत्पादन लागत। इन्होंने कहा कि सिर्फ जो आप बीज और फर्टिलाइजर पर देते हैं और कुछ बिजली में हम कर देंगे।’

भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत समेत कई कृषि और आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि एमएसपी में वृद्धि दर कुल बजट की तुलना में बढ़ाए जाने की बात कही गई है। लेकिन टिकैत का कहना है कि एमएसपी में वृद्धि दर के आंकड़े बताते हैं कि फसलों के हिसाब से यूपीए शासनकल में औसत वृद्धि दर 8 से 12 प्रतिशत रही जबकि मोदी के नेतृत्व वाली सरकारों में यह 1 से 5 प्रतिशत रही।

अधूरी जानकारी पेश कीः 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत 9 करोड़ किसानों के खाते में 18,000 करोड़ रुपये डालने के लिए आयोजित समारोह में विपक्ष, खास तौर से पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारों, पर हमला करते हुए मोदी ने कहा कि ‘वे लोग कृषि उत्पाद बाजार समिति(एपीएमसी) की बात करते हैं लेकिन केरल में कोई एपीएमसी और मंडी नहीं है।’ दरअसल, मोदी यह कहना चाह रहे थे कि मंडी को लेकर कही जा रही बातों में कोई दम नहीं है। लेकिन मोदी ने इस तथ्य पर कुछ नहीं कहा कि कृषि समवर्ती सूची का विषय है और हर राज्य के पास अपनी विशिष्ट स्थिति के अनुरूप अपनी नीतियां बनाने का विकल्प मौजूद है। लेकिन नए कानूनों के तहत पूरे देश में एक समान व्यवस्था की बात कही गई है।

यह क्यों भूल रहेः 2011 में गठित नेशनल कंज्यूमर अफेयर्स ग्रुप की बातों को मोदी क्यों नहीं याद कर रहे, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा। मोदी कंज्यूमर अफेसर्स ग्रुप ऑफ चीफ मिनिस्टर्स एंड ब्यूरोक्रेट्स के चेयरमैन थे। प्रसिद्ध पत्रकार साईनाथ के अनुसार, इस रिपोर्ट में खुद मोदी जी ने कहा है कि एमएसपी से नीचे किसान और व्यापारी के बीच कोई भी और किसी भी तरह का लेनदेन नहीं होने का कानून चाहिए।

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