विचार

राजधानी की मजदूर बस्तियों में बुनियादी जरूरतों का भयंकर अभाव, रोजी-रोटी तक पर संकट से आक्रोश

निर्माण कार्यों में कई बार स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण अनेक महिला मजदूरों को आसपास की कोठियों और फ्लैटों में घरेलूकर्मी का काम करना पड़ता है, लेकिन चार घरों में झाडू-पोंछा, कपड़े धोकर पूरे महीने में वे 5 हजार रुपए ही कमा पाती हैं और कभी-कभी तो उससे भी कम।

फोटोः भारत डोगरा
फोटोः भारत डोगरा 

दिल्ली में हैदरपुर निर्माण कैंप की स्थापना लगभग तीन दशक पहले तब हुई थी, जब प्रशान्त विहार की झोपड़ी बस्ती को तोड़ा गया था। इतना समय बीत जाने के बाद भी यहां बुनियादी जरूरतों की स्थिति बहुत चिंताजनक है। पानी खारा है और बहुत थोड़ा ही सा पानी टैंकर से आता है। ऐसे में यहां के लोगों को पानी के लिए दूर-दूर भटकना पड़ता है। देर रात को भी असुरक्षित स्थिति में महिलाओं को पानी लेने जाना पड़ता है।

यहां के रहने वाले ओम प्रकाश ने बताया कि न तो सीवर है, न घरों में शौचालय हैं। सार्वजनिक शौचालय दूर है और वहां इंतजार भी बहुत करना पड़ता है। इस कारण शौच के लिए कहां जाएं, इसकी गंभीर समस्या आज तक यहां बनी हुई है। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए यह समस्या अधिक गंभीर है। खुले में शौच जाने की जगह अब बची नहीं है और घर में शौचालय बने नहीं हैं। इस कारण यह स्थिति विकट बनी हुई है।

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महेंद्र शर्मा ने बताया कि खुली नालियों के कारण गंदे पानी और कीचड़ फैलने की समस्या बनी रहती है। बारिश होने पर घरों में भी गंदा पानी और कीचड़ प्रवेश कर जाता है। स्नान घर कहीं बने नहीं हैं और प्रायः लगभग खुले में ही लोगों को नहाना पड़ता है। स्थानीय वासी राम इकबाल ने बताया कि प्रदूषण के कारण निर्माण कार्य पर रोक लगी तो अनेक सप्ताह तक रोजी-रोटी ठप हो गई और लोग कर्ज में आ गए। सामान्य समय में 300 रुपए दिहाड़ी पर मजदूरी मिलती है और वह भी महीने में मात्र 15 दिन। तिस पर कभी-कभी ठेकेदार पैसे मार कर गायब हो जाते हैं। अतः बचत तो कुछ है ही नहीं।

मोहम्मद अली ने बताया कि उनकी पत्नी का सरकारी अस्पताल में गलत इलाज हुआ। गलत ऑपरेशन से उस की स्थिति बिगड़ गई और परिवार पर कर्ज बढ़ गया। अन्य लोगों ने भी बताया कि कोई भी गंभीर बीमारी होने पर प्रायः कर्ज हो जाता है और फिर ब्याज भरते रहना पड़ता है। अली ने कहा कि श्रम-विभाग में बहुत चक्कर लगाने पर भी कागजी कार्यवाही पूरी नहीं होती है। इससे वे और अन्य मजदूर बुरी तरह परेशान हैं। अन्य मजदूरों ने भी कहा कि पहले बहुत कठिनाई से मजदूर कार्ड बनवाया। फिर आधार से मिलान कराने को कहा गया। कभी यह दस्तावेज, तो कभी वह प्रमाण पत्र, तो कभी कुछ मांगा गया। इस तरह जो लाभ केवल मजदूर कार्ड के आधार पर मिल जाने चाहिए थे, वे टलते रहे।

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साबर डेयरी के नए ई ब्लाक की मजदूर बस्ती में ममता एक निर्माण मजदूर है। ममता ने बताया कि तीन छोटे बच्चों के साथ बहुत कठिनाई से गुजर-बसर करती हैं। पहले स्कूल में ड्रेस, किताबें मिलती थीं, पर इस साल नहीं मिलीं। ममता को विधवा पेंशन पहले मिलती रही है, लेकिन कुछ समय से वह भी नहीं मिली। इस तरह की बातें कुछ अन्य महिला मजदूरों ने भी कही।

ममता, पार्वती और अन्य महिला मजदूरों ने बताया कि यहां सीवर नहीं है। सार्वजनिक शौचालय बहुत दूर है और वहां दूसरे लोगों की भीड़ रहती है। अतः अक्सर खुले में शौच जाने के लिए यहां भी महिलाएं मजबूर रहती हैं। इसकी स्थितियां बहुत कठिन और असुरक्षित होती जा रही हैं। प्रायः अंधेरे में ही वे खुले में शौच के लिए जा सकती हैं।

स्थानीय पानी यहां भी खारा है। नल की टूटी लगी हुई है, पर इसमें पानी नहीं आता है। चार दिन में 100 घरों के लिए एक टैंकर आता है और वह भी बहुत गुहार करने पर। टैंकर से पानी लेने के लिए झगड़े हो जाते हैं। अतः यहां के लोगों को दूर-दूर पानी भरने जाना पड़ता है। खारे पानी से ही प्रायः नहाना पड़ता है, जिससे शरीर में खुजली होती रहती है और बाल में जटाएं पड़ जाती हैं।

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फोटोः भारत डोगरा

अनेक महिला मजदूरों ने बताया कि निर्माण कार्य में कई बार स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तो यह काम छोड़कर कोठियों और फ्लैटों में घरेलूकर्मी का कार्य करना पड़ता है, पर उसमें भी कई समस्याएं हैं। चार घरों में झाडू-पौंछा, कपड़े धोकर महीने में 5 हजार रुपए ही कमा सकती हैं और कभी-कभी तो इससे भी कम। आने-जाने का किराया भी अलग से खर्च हो जाता है। निर्माण मजदूर महिलाएं प्रायः घर से 8 बजे निकलती हैं तो रात को 8 बजे ही वापस लौट पाती हैं। छोटे बच्चों को प्रायः घर पर ही छोड़ना पड़ता है। यहां बच्चों का स्कूल भी दूर पड़ता है।

यहां प्रयासरत सामाजिक कार्यकर्ता देवयानी ने बताया कि निर्माण मजदूर कानूनों के अन्तर्गत यहां कई लाभ मिलने प्राप्त होने आरंभ हुए थे, पर अब इन कानूनों के लेबर कोड में समाहित होने की प्रक्रिया में स्थिति अनिश्चित हो गई है। इस पर सभी उपस्थित मजदूरों ने कहा कि वे इस बदलाव का विरोध करती हैं। उनकी मांग है कि साल 1996 में बने निर्माण मजदूरों की भलाई के कानूनों का ही बेहतर क्रियान्वयन किया जाए।

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इन कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन से जुड़े रहे सुभाष भटनागर ने बताया कि जिन मजदूरों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है, प्रदूषण के कारण कुछ समय के लिए निर्माण कार्यों पर रोक लगने पर उन्हें बेरोजगारी भत्ता मिलना चाहिए। उन्होंने बताया कि मजदूरों की हकदारी के कानून दो दशकों से अधिक के अभियान के बाद बने थे और इन कानूनों व इनसे प्राप्त अधिकारों की रक्षा करना बहुत जरूरी है। अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि दिल्ली निर्माण मजदूर बोर्ड में भ्रष्टाचार आ जाने से भी समस्याएं बढ़ गई हैं और इस भ्रष्टाचार को दूर करना भी जरूरी है।

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