विचार

जोशीमठ से लेकर धराली और थराली तक, हुआ करें हादसे, कोई सबक नहीं लेते हम

‘चार धाम परियोजना’ किस्म का विकास मॉडल खतरनाक। तमाम चेतावनियों को दरकिनार कर धर्मस्थलों का इस तरह विकास बर्बादी का सबब

उत्तराखंड में अब ऐसे दृश्य आम हो गए हैं जब भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं के बाद तबाही मच जाती है (फोटो - Getty Images)
उत्तराखंड में अब ऐसे दृश्य आम हो गए हैं जब भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं के बाद तबाही मच जाती है (फोटो - Getty Images) -

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यकीन दिलाना चाहते हैं कि पिछले एक दशक में हिन्दुस्तान के धर्मस्थलों को अद्भुत दिव्यता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है। इस दौरान हिन्दुस्तान ने न केवल अपनी ‘आध्यात्मिक आत्मा’ को ‘पुनः खोजा’ है, बल्कि गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के चार धामों को जीवंत तीर्थस्थलों में बदला है। अरे भक्तों, जरा उन आंकड़ों पर नजर दौड़ा लो, जो सरकार ने ही हमें बताए हैं! 2024 के दौरान सिर्फ धार्मिक पर्यटन से सरकार को लगभग 56 अरब डॉलर की कमाई हुई!

अच्छी बात है, लेकिन यह कमाई किस कीमत पर की गई? क्या इन धार्मिक केन्द्रों के ‘विकास’ से स्थानीय लोगों का जीवन बदला है या गढ़वाल की पहाड़ियों, जहां चार धाम स्थित हैं, का पर्यावरण सुधरा है? धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने से परिवहन और आतिथ्य क्षेत्र को भले मदद मिली हो, इन जगहों और इनके आसपास रहने वाले लोग तो सरकार के नैरेटिव से बिल्कुल अलग तस्वीर पेश कर रहे हैं। 

विकास के नाम पर यहां बेलगाम और अंधाधुंध निर्माण को बढ़ा दिया गया और यह सब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की देखरेख में हुआ क्योंकि केदारनाथ और बद्रीनाथ के ‘कायाकल्प’ में नरेन्द्र मोदी की निजी दिलचस्पी थी। दोनों जगहों के सौंदर्यीकरण के लिए 2,000 करोड़ रुपये का पैकेज अहमदाबाद स्थित एक वास्तुशिल्प फर्म, आईएनआई डिजाइन स्टूडियो को दिया गया।

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केदारनाथ पुनर्निर्माण के दो चरण हैं। पहले चरण में मंदिर और केदारपुरी उपनगरों को जोड़ने वाली 70 फुट चौड़ी कंक्रीट की सड़क से मंदिर और केदारपुरी को जोड़ना था। इसके अलावा, सरस्वती नदी के किनारे 850 फुट लंबी त्रि-स्तरीय रिटेनिंग दीवार और मंदाकिनी नदी के किनारे 350 फुट का सुरक्षा कवच बनाया गया। ये दोनों नदियां केदारनाथ के किनारे बहती हैं। 

विशेषज्ञ समझ नहीं पा रहे कि इसपर हंसें या रोएं। वे सवाल करते हैं, ‘क्या धराली में खीर गंगा के किनारे बनाया गया बांध उफनते पानी और मलबे के दबाव (5 अगस्त को) को झेलने में सक्षम था?’ वहां नाहक ही करोड़ों खर्च कर दिए गए।

केदारनाथ मंदिर में विभिन्न अनुष्ठान करने वाले तीन हजार पुजारियों की और भी आपत्तियां हैं। ज्यादातर पुजारियों ने बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी)- जिसके अध्यक्ष आरएसएस से जुड़े अजय अजेंद्र हैं- ने गर्भगृह की दीवारों पर सोने की परत चढ़ाने के फैसले का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि चांदी भगवान शैव की तपस्वी परंपराओं को देखते हुए सही होगी।

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चार धाम महापंचायत के उपाध्यक्ष संतोष त्रिवेदी कहते हैं, ‘हमारी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया और बीकेटीसी ने दीवारों पर सोने की परत चढ़ा दी। हैरानी है कि यह काम 2022 में मंदिर के कपाट बंद होने से ठीक एक दिन पहले किया गया। इसलिए ज्यादातर पुजारी देख ही नहीं सके कि क्या हो रहा है।’ सबसे बड़ी बात यह कि सोना गायब हो गया। 16 जून 2022 को त्रिवेदी ने मंदिर में प्रवेश करने पर सोने की जगह पीतल पाया। उन्होंने एक वायरल वीडियो में दावा कियाः ‘रातोंरात 100 करोड़ रुपये का सोना पीतल में बदल गया,’ और ‘गायब सोने’ की जिम्मेदारी सीधे बीकेटीसी पर डाल दी।

एक अन्य वरिष्ठ पुजारी शुक्ला जी इस पूरे पुनर्विकास कार्य से बेहद खफा हैं। वह कहते हैंः ‘केदारनाथ की गरिमा को नष्ट कर दिया गया है। तीर्थयात्रा केन्द्र अमीर और गरीब, दोनों का समान तरीके से स्वागत करते थे, लेकिन आज तीर्थयात्रियों को साफ-सुथरे और सस्ते आवास प्रदान करने वाली पुरानी धर्मशालाओं को तोड़ा जा रहा है और उनकी जगह पांच मंजिला होटल बनाए जा रहे हैं जिनका किराया 20,000 रुपये प्रति रात तक है।’ इसके अलावा, उन्हें इस बात पर भी नाराजगी है कि शहर के भू-धंसाव के खतरे पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके बजाय, चेतक हेलीकॉप्टरों से केदारनाथ में बुलडोजर पहुंचाए जाते हैं जो मंदिर के ऊपर की जमीन को समतल करने के लिए चौबीसों घंटे काम करते हैं। वह सवाल करते हैंः ‘क्या सरकार डीजल के धुएं के प्रति अंधी है, क्योंकि इससे तो ग्लेशियरों का पिघलना तेज होगा?’ 

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बद्रीनाथ के पुनर्विकास ने स्थानीय लोगों को भी हलकान कर रखा है और इनमें से ज्यादातर दुकानदार हैं। दो साल पहले दुकानदार दिनेश चंद्र डिमरी द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो की एक श्रृंखला ने बद्रीनाथ मंदिर के आसपास पार्क और पार्किंग के लिए जगह बनाने के लिए की गई तोड़फोड़ का खुलासा किया था। विकास से किसी को परहेज नहीं लेकिन इस तरह बुलडोजर चलाने के बजाय उन्हें मास्टर प्लान में क्यों नहीं रखा गया?

कंक्रीट के अत्यधिक उपयोग से बद्रीनाथ का हाल जोशीमठ जैसा होने का डर है। रामचौरी वानिकी महाविद्यालय के भूविज्ञानी डॉ. एस.पी. सती आगाह करते हैं कि भारी मशीनरी और पहाड़ों की ढलानों की व्यापक कटाई से धंसाव बढ़ता है। सती ने कहा, ‘बद्रीनाथ शहर हिमनदों की ढलानों पर स्थित है जो ढीली और अस्थिर हैं।’

खुदाई के कारण प्राकृतिक झरने और गैर-हिमनद नदियां सूख रही हैं जो पीने के पानी का प्रमुख स्रोत थीं। सामाजिक कार्यकर्ता और मैगसेसे पुरस्कार विजेता चंडी प्रसाद भट्ट बताते हैं कि ‘सौंदर्यीकरण’ अभियान ने ‘पंच धाराएं’ भी सुखा दी हैं, जिनका खासा धार्मिक महत्व है। गंगोत्री में भी स्थिति अलग नहीं। मुख्य पहुंच मार्ग कट गया है और धराली और हर्षिल में हाल ही में हुई आपदा में 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई।

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इस जून में, पर्यावरणविदों ने गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के अंदर स्थापित एक सॉलिड वेस्ट इनसिनरेटर (ठोस अपशिष्ट जलाने वाला) चालू करने के खिलाफ आवाज उठाई। यह उद्यान एक ग्लेशियर के पास स्थित है और भागीरथी पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (बीईएसजेड) में आता है। केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय की ‘प्रसाद’ (तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान) योजना के तहत 3.1 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित इस भस्मक का उद्देश्य चार धाम यात्रा के दौरान हर साल गंगोत्री आने वाले आठ लाख तीर्थयात्रियों द्वारा उत्पन्न 500 किलोग्राम जैविक कचरे का निपटान करना था। गढ़वाल में चार धाम सर्किट में बेरोकटोक पर्यटन के विनाशकारी नतीजों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी अब उसी मॉडल को कुमाऊं तक फैलाना चाहते हैं। 

भाजपा कुमाऊं के ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण मंदिरों का नियंत्रण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से छीनने का सुनियोजित प्रयास कर रही है। दो साल पहले उत्तराखंड सरकार ने अल्मोड़ा के 15 प्रमुख मंदिरों के विकास के लिए मानसखंड मंदिर माला मिशन की घोषणा की थी।

आजादी के बाद से बागनाथ, बागेश्वर, जागेश्वर, सूर्यदेव और नंदादेवी मंदिर एएसआई की देखरेख में रहे हैं। एएसआई के मुताबिक, कुमाऊं के राजा लक्ष्मी चंद द्वारा 1450 में निर्मित बागनाथ में संस्कृत शिलालेख हैं जो उत्तर गुप्त काल से 2,500 साल पुराने हैं। ऐसा लगता है कि इस दुर्लभ ऐतिहासिकता को संरक्षित करने की जिम्मेदारी अब एएसआई के पास नहीं है। मूर्तियों को नारंगी रंग से रंग दिया गया है और परिसर में पूजा की जाती है। 

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एएसआई ने तय किया था कि स्मारक के 200 मीटर के दायरे में कोई भी संरचना नहीं बनाई जाएगी। क्या जागेश्वर मंदिर परिसर का मास्टरप्लान इस नियम का पालन करेगा? अधिकारियों को इन जगहों के आसपास रहने वालों के घरों को ढहाने और उनकी जमीनें छीनने से कौन रोकेगा? यह परियोजना, जिसे केदारनाथ और बद्रीनाथ की तर्ज पर विकसित किया जाना है, पहले ही अहमदाबाद की उसी कंपनी को सौंपी जा चुकी है।

पर्यटन मंत्रालय का दावा है, ‘इस नए भारत में, पर्यटन मौसमी नहीं, सभ्यतागत है। यह वह जगह है जहां दर्शन और विकास आपसे में मिलते हैं, जहां तीर्थयात्रा प्रगति से मिलती है, और जहां त्योहार बुनियादी ढांचे से मिलते हैं।’

प्रकृति के प्रकोप का दंश झेलने वाले स्थानीय लोग ऐसे झूठे प्रचार से आजिज आ चुके हैं। उनके लिए तीर्थयात्रा का मतलब कमाई और विकास का मतलब विनाश होकर रह गया है। प्रकृति के क्रोध को झेलने के लिए मजबूर स्थानीय लोगों के लिए विकास के इस दुःस्वपन्न के खत्म होने का इंतजार भारी पड़ रहा है। 

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